10-11-2021, 12:59 PM
फ़िज़ा ने अपनी दोनो बाहें मेरे गले मे हार की तरफ डाल ली ऑर अपनी एडियाँ थोड़ी सी उपर को उठा ली जिससे उसका ऑर मेरा मुँह एक दम आमने सामने आ जाए... अब उसका बदन मेरी छाती से चिपक सा गया था ऑर उसके बड़े-बड़े मम्मे मेरी छाती के साथ लगे हुए थे ओर दब से गये थे फिर उसने अपनी आँखें बंद की ऑर मेरे होंठों पर अपने रसीले होंठ रख दिए मैने भी अपनी दोनो बाहें उसकी कमर मे डाल ली ऑर उसको अपने साथ चिपका लिया जैसे हम 2 जिस्म नही बल्कि 1 ही जिस्म हो कुछ देर हम ऐसे ही होंठों से होंठ जोड़े खड़े रहे फिर मुझसे उसके होंठों की जलन सहन करना बर्दाश्त के बाहर हो गया इसलिए मैने ही धीरे-धीरे उसके रसभरे होंठों को चूसना शुरू कर दिया फ़िज़ा ने भी मेरा पूरा साथ दिया हम दोनो फिर से रात की तरह मज़े की वादियो मे पहुँच रहे थे ऑर हम दोनो पर खुमारी छाने लगी थी...
अभी हम को कुछ ही पल हुए थे कि बाहर नाज़ी की आवाज़ आई जो कि फ़िज़ा को पुकार रही थी... इसलिए हम को ना चाहते हुए भी एक दूसरे से अलग होना पड़ा... मैं जल्दी से फ़िज़ा से दूर होके कुर्सी के पास जाके बैठ हो गया ऑर फ़िज़ा मेरे बिस्तर की चद्दर तह करने लगी...
नाज़ी: भाभी आप यहाँ हो मैं आपको सारे घर मे ढूँढ रही हूँ...
फ़िज़ा: क्या हुआ मैं यहाँ नीर को उठाने आई थी...
नाज़ी: हुआ तो कुछ नही पर मैने बस यही पुछ्ना था कि आप दोनो अभी तक यही हो आज खेत मे नही जाना क्या...
फ़िज़ा: हाँ हाँ जाना है ना... मैं तो बस नीर को उठाने के लिए ही आई थी बस जा रही हूँ...
नाज़ी: लाओ ये सब मैं कर लूँगी आप बस जाके तेयार हो जाओ फिर नीर को भी तो नहाना होगा ना...
मैं: कोई बात नही पहले फ़िज़ा जी तेयार हो जाए मैं बाद मे तेयार हो जाउन्गा...
फ़िज़ा मुझे एक मुस्कान के साथ देखती हुई एक आँख मारकर बाहर को चली गई ऑर मैं उसको देखता रहा... तभी मुझे ख़याल आया कि बाबा कहाँ है इसलिए मैने नाज़ी से ही पुछ्ना ठीक समझा...
मैं: नाज़ी बाबा कहाँ है सुबह से दिखाई नही दिए...
नाज़ी: पता नही रात के बाद तो मैने भी बाबा को नही देखा...
मैं: (चिंता से) वो आगे भी ऐसे घूमने चले जाते है या आज ही गये हैं...
नाज़ी: वैसे तो वो पहले रोज़ सैर करने जाया करते थे सुबह लेकिन कुछ वक़्त से उनकी तबीयत ठीक नही रहती थी तो हमने उनको मना कर दिया था बाहर घूमने जाने से...
मैं: अच्छा
इतना कहकर नाज़ी भी अपने बाकी काम निबटाने मे लग गई ऑर मैं बाहर बैठक मे बैठा बाबा का इंतज़ार करने लगा...
कुछ ही देर मे मुझे डोर से बाबा आते हुए दिखाई दिए तो मेरा चेहरा भी खुशी से खिल उठा... बाबा हाथ मे एक छड़ी लिए हुए मुस्कुराते हुए मेरे सामने आके खड़े हो गये...
मैं: बाबा आज सुबह-सुबह किसकी पिटाई करने गये थे (मुस्कुराते हुए)
बाबा: (अपनी छड़ी की तरफ देखते हुए ऑर ज़ोर से हँसते हुए) अर्रे पिटाई नही बेटा मैं तो बस अपनी नीम की दान्तुन ढूँढने गया था... इस उम्र मे किसकी पिटाई करूँगा...
मैं: बाबा मुझे कह देते आपको जाने की क्या ज़रूरत थी
बाबा: बेटा अब इतना भी नकारा ना बनाओ मुझे कि कोई भी काम ना करने दो... कुछ काम तो मेरे लिए भी छोड़ दिया करो इससे मेरा भी दिल लगा रहता है नही तो घर मे अकेला बैठा तो दिल ही नही लगता...
मैं: जैसा आप बेहतर समझे बाबा... (मुस्कुराते हुए)
बाबा: अच्छा बेटा तुम सुबह-सुबह कहाँ गये थे... जब मैं उठा तो तुम बिस्तर पर नही थे...
मैं: (सोचते हुए) कही नही बाबा रात को ज़रा खुली हवा मे घूमने का दिल था तो कोठारी मे खड़ा था... (मैं जानता था बाबा सीढ़िया नही चढ़ सकते इसलिए उन्होने कोठरी मे नही देखा होगा इसलिए ये झूठ बोला)
बाबा: अच्छा तभी मैं सोच रहा था कि नीर कहाँ चला गया इतनी रात को...
मैं: (मुस्कुराते हुए) ठीक है बाबा हम शाम को बातें करेंगे अभी खेत जाने के लिए देर हो रही है...
बाबा: अच्छा बेटा...
कुछ ही देर मे फ़िज़ा भी तेयार होके आ गई ऑर मेरे तेयार होने के बाद हम खेत चले गये...
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