10-11-2021, 12:51 PM
अपडेट-10
अब मुझे कोई उम्मीद नज़र नही आ रही थी कि जो मुझे क़ासिम के बारे मे बता सके मैं वहाँ से बाहर निकल आया... किसी को भी क़ासिम के बारे मे नही पता था...
मैं पूरी रात उसको ढूँढ-ढूँढ कर थक चुका था ऑर मेरे पैर भी चल-चल कर जवाब दे चुके थे... अब ना तो मुझ मे चलने की हिम्मत थी ना ही क़ासिम का कुछ पता चला था मैने घर वापिस जाने का फ़ैसला किया ओर बो-झिल दिल के साथ वापिस घर आ गया जब घर आया तो घर के बाहर पोलीस की गाड़ी खड़ी थी जिसको देखकर ना-जाने क्यो एक पल के लिए मैं चोंक गया... बाबा ऑर फ़िज़ा थानेदार से कुछ बात कर रहे थे मुझे उनको देख कर कुछ समझ नही आया इसलिए वहाँ जाके सारा मामला पता करना बेहतर समझा... जब मैं वहाँ पहुँचा तो जाने क्यो थानेदार मुझे गौर से देखने लगा जैसे कुछ याद करने की कोशिश कर रहा हो... लेकिन फ़िज़ा ने मुझे आँखों से ही चुप रहने का इशारा किया ऑर मैं बस पास जाके खड़ा हो गया ऑर थानेदार को सलाम किया...
थानेदार: व... सलाम, ये कौन है...
बाबा: जनाब ये मेरा छोटा बेटा है...
थानेदार: (कुछ याद करते हुए) तुमको मैने पहले भी कही देखा है...
मैं: जी नही साब मैं तो आपको पहली बार मिल रहा हूँ...
थानेदार: क्या नाम है तेरा?
बाबा: जनाब इसका नाम नीर है बहुत सीध-साधा लड़का है कोई बुरी आदत नही इसको...
थानेदार: ओह्ह अच्छा-अच्छा बेटा है तुम्हारा... फिर ये कोई ऑर है इसको देख कर किसी की याद आ गई जो एक-दम इसके जैसा था...
इतने मे फ़िज़ा ने नाज़ी को इशारा किया ऑर वो मुझे लेके अंदर चली गई... ये सब क्या हो रहा था मुझे कुछ भी समझ नही आ रहा था... ये थानेदार यहाँ क्यों आया है इतनी रात को, किसी ने भी मुझसे क़ासिम के बारे में क्यो नही पूछा ऐसे ही मेरे अंदर कई सवाल एक साथ खड़े हो गये थे... अचानक मेरी नज़र जीप मे बैठे क़ासिम पर पड़ी तो मैं उसकी ओर जाने लगा लेकिन नाज़ी ने मुझे बाजू से पकड़ लिया ऑर अंदर आने का इशारा किया... मैं बिना कोई सवाल किया चुप-चाप उसके साथ अंदर आ गया...
मैं: ये सब क्या हो रहा है ऑर ये क़ासिम को कहाँ लेके जा रहे हैं, थानेदार मुझे ऐसे क्यो देख रहा था?
नाज़ी: एक तो तुम सवाल बहुत करते हो... अभी कुछ मत बोलो बस अंदर चलो बाबा बात कर रहे हैं ना...
मैं: अच्छा ठीक है (हां मे सिर हिलाते हुए)
कुछ देर बाद थानेदार भी चला गया ऑर उनके साथ क़ासिम भी लेकिन मैं बस खामोश होके अपने सवालो का जवाब जानने के लिए बे-क़रार होके बाबा ऑर फ़िज़ा का इंतज़ार करने लगा... कुछ देर मे बाबा ऑर फ़िज़ा भी घर के अंदर आ गये...
मैं: बाबा ये सब क्या हो रहा है ऑर ये क़ासिम को कहाँ लेके जा रहे हैं?
बाबा: बस बेटा जाने कौन्से गुनाहो की सज़ा मिल रही है मुझ बूढ़े को जो बुढ़ापे मे ये दिन देखने को मिल रहे हैं (अपने सिर पर हाथ रखकर बैठ ते हुए)
मैं: क्या हुआ है बाबा कोई मुझे कुछ बताता क्यो नही...
नाज़ी: वो भाई जान ने हमरी फसल सरपंच को बेच दी थी ऑर उससे पैसे लेके जुए ऑर शराब मे उड़ा दिए थे अब सरपंच अपने पैसे वापिस माँग रहा है लेकिन क़ासिम भाई ने वो सब पैसे खर्च कर दिए इसलिए उस सरपंच ने अपने पैसे निकलवाने के लिए पोलीस को बुला लिया ऑर वो उनको पकड़ के ले गई है...
मैं: तो हम उनके पैसे वापिस कर देते हैं ना उसमे क्या है आख़िर वो इस घर का बेटा है वैसे भी हमारे पास फसल के काफ़ी पैसे बचे हुए हैं
बाबा: नही बेटा क़ासिम के लिए हम बहुत बार पैसे दे चुके हैं अब ज़रूरत नही है शायद जैल मे रहकर ही उससे अक़ल आ जाए...
मैं: बाबा मैं सरपंच से बात करके आता हूँ क़ासिम भाई के लिए शायद वो मान जाए?
बाबा: नही बेटा वो बहुत बे-रहम इंसान है वो नही मानेगा तुम भी इन सब चक्करो मे ना पडो तो बेहतर होगा... (ऑर मायूस क़दमो के साथ अपने कमरे मे चले गये)
मैं: मानेगा बाबा ज़रूर मानेगा नाज़ी मैं अभी आया...
नाज़ी: नही नीर वो बहुत घटिया किस्म का इंसान है जाने दो
मैं: मुझ पर भरोसा है या नही?
नाज़ी: (हाँ मे सिर हिलाते हुए) सबसे ज़्यादा तुम पर ही तो भरोसा है...
मैं: बस फिर चुप रहो मैं अभी आता हूँ