10-11-2021, 12:50 PM
(This post was last modified: 10-11-2021, 12:51 PM by Snigdha. Edited 1 time in total. Edited 1 time in total.)
सुबह बाबा जल्दी जाग जाते थे ऑर उनकी आवाज़ से मेरी भी आँख खुल जाती थी... मैं दिन के ज़रूरी कामों से फारिग होके फ़िज़ा ऑर नाज़ी के साथ खेत पर काम के लिए निकल गया...
दिन भर हम तीनो खेतो मे काम करते रहे ऑर शाम को जब घर आए तो बाबा ने हम सब को गहरी फिकर मे डाल दिया... क्योंकि क़ासिम कल रात से घर नही आया था ये सुनकर हम तीनो के होश भी उड़ गये क्योंकि लाख लड़ने -झगड़ने के बाद भी वो दिन मे कम से कम एक बार तो घर आ ही जाता था... बाबा की बात सुन कर मुझे भी क़ासिम की चिंता हो रही थी ऑर मैं उसको ढूँढने के बारे मे ही सोच रहा था... कि बाबा ने मुझे कहा...
बाबा: नीर बेटा क़ासिम रात से घर नही आया है... जाने इस ला-परवाह इंसान को कब अक़ल आएगी...
मैं: बाबा आप फिकर ना करे मैं अभी जाता हूँ ऑर क़ासिम को ढूँढ कर लाता हूँ...
फ़िज़ा: मैं भी आपके साथ चलूं?
मैं: नही आप घर मे ही रूको बाबा के पास मैं अभी क़ासिम भाई को लेकर आता हूँ...
फ़िज़ा: आप अपना भी ख़याल रखना
मैं: अच्छा
फिर मैं क़ासिम को गाँव भर मे ढूंढता रहा शाम से रात हो गई थी लेकिन क़ासिम नही मिला था... मैने उसके तमाम अड्डो पर भी देखा जहाँ वो अक्सर शराब पीने ओर जुआ खेलने जाता था लेकिन वहाँ भी किसी को क़ासिम के बारे मे कुछ नही पता था... तभी मुझे एक आदमी मिला जिसने मुझे बताया कि क़ासिम अक्सर कोठे पर भी जाता है... मैने क़ासिम को बरहाल वही ढूँढने जाने का फ़ैसला किया... आज मैं पहली बार ऐसी किसी जगह की तरफ जा रहा था... मेरे दिल मे हज़ारो सवाल थे लेकिन इस वक़्त मुझे क़ासिम को ढूँढना था इसलिए अपने अंदर की बैचैनि को मैने दर-किनार कर दिया ऑर कोठे की तरफ बढ़ गया...
मैं तेज़ कदमो के साथ कोठे की तरफ जा रहा था ऑर दिल मे डर भी था कि कहीं कोई ये बात फ़िज़ा या नाज़ी को ना बता दे कि मैं भी कोठे पर गया था जाने वो मेरे बारे मे क्या सोचेगी... मैं अपनी सोचो मे ही गुम था कि अचानक मुझे एक इमारत नज़र आई जो पूरी तरह जग-मगा रही थी लाइट की रोशनी के साथ मानो सिर्फ़ उस इमारत के लिए अभी भी दिन है बाकी तमाम गाँव की रात हो चुकी है... इमारत से बहुत शोर आ रहा था मेरी समझ मे भी नही आ रहा था कि क़ासिम के बारे मे किससे पुछू... मैने गेट के सामने खड़े एक काले से आदमी से क़ासिम के बारे मे पूछा...
मैं: सुनिए
आदमी: अंदर आ जाओ जनाब बाहर क्यों खड़े हो
मैं: नही मैं बाहर ही ठीक हूँ मुझे बस क़ासिम के बारे मे पुच्छना था वो कही यहाँ तो नही आया
आदमी: (ज़ोर से हँसते हुए) साहब यहाँ तो कितने ही क़ासिम रोज़ आते हैं ओर रोज़ चले जाते हैं... आपको अगर पुच्छना है तो अंदर अमीना बाई से पूछो...
मैं: ठीक है आपका बहुत-बहुत शुक्रिया...
उस आदमी ने मुझे अंदर जाने के लिए रास्ता दिया ऑर मैने अपने जोरो से धड़कते दिल के साथ चारो तरफ नज़र दौड़ा कर देखा कि कही मुझे कोई देख तो नही रहा ऑर फिर सीढ़िया चढ़ गया... अंदर बहुत तेज़ गानों का शोर था ऑर लोगो की वाह-वाही की आवाज़े आ रही थी... जैसे ही मैं अंदर पहुँचा तो वहाँ एक बहुत ही सुन्दर सी लड़की छोटे-छोटे कपड़ो मे नाच रही थी ऑर उसके चारो तरफ बैठे लोग उस पर नोटो की बारिश सी कर रहे थे... कोई आदमी उसकी चोली मे नोट डाल रहा था तो कोई उसके घाघरे की डोरी के साथ नोट लटका रहा था... वो लड़की बस मस्त होके गोल-गोल घूमे जा रही थी जैसे उसको किसी के भी हाथ लगाने की कोई परवाह ही ना हो ... अचानक वो लड़की नाचती हुई मेरी ओर आई ऑर खुद को संभाल ना सकी ऑर मुझ पर गिरने को हुई मैने फॉरन आगे बढ़कर उस लड़की को थाम लिया ऑर गिरने से बचाया... जब मैंने उसे नज़र भरके देखा तो वो पसीने से लथ-पथ थी ऑर उसकी साँस भी फूली हुई थी...
मैं: आप ठीक तो है आपको लगी तो नही?
लड़की: हाए... अब जाके तो क़रार आया है आपने जो थाम लिया है...
मैं: (मुझे कुछ समझ नही आया कि क्या जवाब दूं इसलिए बस मुस्कुरा दिया)
लड़की: हाए तुम्हारा बदन कितना कॅसा हुआ है... कौन हो तुम... यहाँ पहली बार देखा है
मैं: मेरा नाम नीर है मैं क़ासिम भाई को ढूँढने के लिए आया हूँ वो तो कल रात से घर नही आया...
लड़की: ओह अच्छा वो क़ासिम... आप अंदर चले जाइए ऑर शबनम से पूछिए वो उसका खास है (आँख मार के)
मैं: शुक्रिया आपकी बहुत मेहरबानी जी
मैं अंदर कमरे मे चला गया जहाँ बहुत सारी लड़कियाँ बैठी हुई थी... मैं वहाँ शबनम का पुच्छने जाने लगा तो एक बुढ़िया ने मुझे रोक दिया कि ओ नवाबजादे अंदर कहाँ घुसा चला आया है ये लड़किया इंतज़ार मे है कोई ऑर बाहर वाली मे से कोई ढूँढ जाके... मुझे उसकी कही हुई बात समझ नही आई इसलिए उसी से पूछा कि मैं शबनम जी को ढूँढ रहा हूँ...
बुढ़िया: शबनम जी (ज़ोर से हँसती हुई) कौन है रे तू चिकने?
मैं: मेरा नाम नीर है ऑर शबनम जी से मिलना है
शबनम: बोल चिकने क्या काम है मैं हूँ शबनम
मैं: जी मैं क़ासिम को ढूँढ रहा था तो बाहर वाली लड़की ने बताया कि आपको मालूम होगा क़ासिम के बारे मे वो रात से घर नही आया है घर मे सब उसकी फिकर कर रहे है...
शबनम: वो तो काफ़ी दिन से यहाँ भी नही आया... वैसे भी उस कंगाल के पास था क्या... ना साले की जेब मे दम था ना हथियार मे (बुरा सा मुँह बना के) ...
मैं: यहाँ नही आया तो कहाँ गया
शबनम: मुझे क्या पता उसकी बीवी को जाके पूछ...