10-11-2021, 12:42 PM
दरवाज़े पर लगातार दस्तक हो रही थी लेकिन इस हालत मे फ़िज़ा दरवाज़ा नही खोल सकती थी लिहाजा उसने पहले कपड़े पहने फिर दरवाज़ा खोल दिया मैने रोशनदान से देखा तो ये क़ासिम था जो घर आया था अंदर दाखिल होते ही उसने फ़िज़ा को धक्का मारा ओर अंदर दाखिल हो गया ओर फ़िज़ा को गालियाँ देने लगा कि कहाँ मर गई थी इतनी देर से दरवाज़ा खट-खटा रहा था... चल जा ऑर मेरे लिए खाना बना भूख लगी है मुझे... ये बात मुझे बहुत बुरी लगी क्योंकि क़ासिम फ़िज़ा से ऐसे बात कर रहा था लेकिन मैं कुछ नही कर सकता था...
फ़िज़ा भी सिर झुकाए रसोई मे चली गई... मैने कुछ देर फ़िज़ा को रसोई मे देखा जहाँ वो क़ासिम के लिए खाना परोस रही थी... लेकिन आज एक नयी चीज़ मैने उसमे देखी थी अक्सर जो फ़िज़ा क़ासिम की गालियाँ सुनकर रोने लग जाती थी आज वोई फ़िज़ा मंद-मंद मुस्कुरा रही थी ऑर बार-बार रोशनदान की तरफ देख रही थी... शायद वो मेरे बारे मे सोच रही थी...
कुछ देर मैं फ़िज़ा को देखता रहा फिर बिस्तर पर आके नंगा ही लेट गया... कब नींद ने मुझे अपनी आगोश मे लिया मुझे पता ही नही चला...
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आज मैं काफ़ी देर तक सोता रहा... जब आँख खुली तो उसी कोठारी मे खुद को पाया ऑर रात वाला सारा सीन किसी फिल्म की तरह मेरी आँखो के सामने आ गया लेकिन अभी भी दिल मे कई सवाल थे कि रात ऐसा क्यो हुआ आख़िर फ़िज़ा ने ऐसा क्यो किया... मैं अपनी सोचो मे ही गुम था कि किसी ने कोठारी का दरवाज़ा खट-खाटाया तो मेरा ध्यान खुद पर गया क्योंकि रात के बाद मैं नंगा ही सो गया था मैने जल्दी से सामने पड़े कपड़े पहने ऑर धीमी सी आवाज़ मे आ जाओ कहा... मेरे कहने के साथ ही दरवाजा खुल गया ऑर नाज़ी कोठारी मे आ गई...
नाज़ी: आज तो जनाब बहुत देर तक सोते रहे (मुस्कुराते हुए) ...
मैं: हां वो आज नींद ही नही खुली (सिर पर हाथ फेरते हुए)
नाज़ी: चलो अच्छी बात है वैसे भी आपने कौनसा कहीं जाना है
मैं: आज आप दूध कैसे ले आई रोज़ तो फ़िज़ा जी लाती है ना
नाज़ी: क्यों मेरे हाथ से दूध पी लेने से कुछ हो जाएगा क्या...
मैं: नही ऐसी बात तो नही है
नाज़ी: भाभी आज रसोई के काम मे मशरूफ थी इसलिए उन्होने मुझे दूध दे कर भेज दिया
मैं: अच्छा... वैसे नाज़ जी मुझे आपसे एक बात करनी थी अगर आप सब को बुरा ना लगे तो...
नाज़ी: मुझे भी आपको कुछ बताना है
मैं: जी बोलिए क्या बात है
नाज़ी: वो हम कल से खेत जा रहे हैं फसल की कटाई शुरू करनी है फसल तैयार हो गई है इसलिए...
मैं: ये तो बहुत अच्छी बात है... क्या मैं भी आपकी मदद कर सकता हूँ?
नाज़ी: (हँसते हुए) आप चलने फिरने लग गये हो इसका मतलब ये नही कि आप ठीक हो गये हो अभी कोई काम नही चुप करके आराम करो
मैं: सारा दिन यहाँ पड़े-पड़े क्या करूँ आपकी बड़ी मेहरबानी होगी अगर आप मुझे भी अपने साथ खेतों मे ले जाए वहाँ मैं आप सबको काम करता देखता रहूँगा तो मेरा दिल भी बहल जाएगा ले चलिए ना साथ मुझे भी...
नाज़ी: बात तो आपकी ठीक है लेकिन क़ासिम भाई को हम सबने आपके बारे मे कुछ नही बताया इस तरह आप हमारे साथ चलोगे तो उनको क्या कहेंगी हम की आप कौन हो ओर फिर बाबा भी पता नही आपको साथ ले जाने की इजाज़त देंगे या नही मैं तो ये भी नही जानती
मैं: वैसे क़ासिम भाई कहाँ है
नाज़ी: (मुँह बनाते हुए) होना कहाँ है होंगे अपने आवारा दोस्तो के साथ वो घर पर कभी टिक कर थोड़ी बैठ ते है... बस नाम का ही बेटा दिया है अल्लाह ने हमे अगर वो काम करने वाले होते तो हम को खेतो मे ये सब काम क्यो करना पड़ता सब नसीब की बात है...
मैं: आपने मेरे लिए इतना कुछ किया है एक अहसान ऑर कर दीजिए हो सकता है मैं क़ासिम भाई की थोड़ी बहुत कमी ही पूरी कर दूं वैसे भी आप दोनो लड़किया इतना काम अकेले कैसे करोगी मैं आप दोनो की मदद कर दूँगा खेतो मे... मान जाइए ना
नाज़ी: (कुछ सोचते हुए) ठीक है मैं भाभी से ऑर बाबा से बात करती हूँ तब तक आप ये दूध पी लीजिए...
मैं: ठीक है
फिर नाज़ी नीचे चली गई