10-11-2021, 12:36 PM
ऐसे ही दिन गुज़रने लगे अब मेरे जखम भी काफ़ी भर गये थे ऑर अब मैं चलने-फिरने के क़ाबिल हो गया था... लेकिन 1 बात मुझे हमेशा परेशान करती वो थे मेरे सीने पर गोली के निशान... ज़ख़्म भर गया था लेकिन निशान अभी भी बाक़ी था मैं जब भी नाज़ी या फ़िज़ा से उस निशान के बारे मे पुछ्ता तो वो बात गोल कर जाती ऑर मुझे उस निशान के बारे मे कुछ भी नही बतती मैं बाबा से यह बात नही पूछ सकता था क्योकि उमर के साथ उनकी नज़र बोहोत कमजोर हो चुकी थी इसलिए उन्हे दिखाई भी कम देता था... मैं सारा दिन या तो खिड़की के सामने खड़ा बाहर के नज़ारे देखता या फिर घर मे दोनो लड़कियो को घर का काम करते देखता रहता लेकिन फिर भी फ़िज़ा मुझे घर से बाहर नही जाने देती थी... मुझे पुराना कुछ भी याद नही था मेरी पुरानी जिंदगी अब भी मेरे लिए एक क़ोरा काग़ज़ ही थी... नाज़ी अब मुझे दवाई नही लगाती थी लेकिन फ़िज़ा रोज़ मुझे दवाई लगाने आती थी ऑर ऐसे ही बिना कपड़ो के उपेर कंबल डाल कर सुला जाती... आज दवाई लगाते हुए फ़िज़ा बोहोत खुश थी ऑर बार-बार मुस्कुरा रही थी उसकी इस खुशी का राज़ पुच्छे बिना मैं खुद को रोक नही पाया...
मैं: क्या बात है आज बोहोत खुश लग रही हो आप
फ़िज़ा: जी आज मेरे शोहार आ रहे है 5 महीने बाद
मैं: अर्रे वाह यह तो बोहोत खुशी की बात है...
फ़िज़ा: हंजी (नज़रें झुका कर मुस्कुराते हुए) आप से एक बात कहूँ तो आप बुरा तो नही मानेंगे?
मैं: नही बिल्कुल नही बोलिए क्या कर सकता हूँ मैं आपके लिए?
फ़िज़ा: वो आज मेरे शोहार क़ासिम आ रहे हैं तो अगर आप बुरा ना माने तो आप कुछ दिन उपेर वाली कोठारी मे रह लेंगे... ऑर हो सके तो उनके सामने ना आना...
मैं: (बात मेरी समझ मे नही आई) क्यो उनके सामने आ जाउन्गा तो क्या हो जाएगा?
फ़िज़ा: बस उनके सामने मत आना नही तो वो मुझे ऑर नाज़ी को ग़लत समझेंगे ऑर शक़ करेंगे असल मे वैसे तो वो बोहोत नेक़-दिल है लेकिन ऐसे उनकी गैर-हाजरी मे हम ने एक मर्द को रखा है घर मे तो वो आपके बारे मे ग़लत भी सोच सकते हैं ना इसलिए...
मैं: क्या आपने उनको मेरे बारे मे नही बताया हुआ?
फ़िज़ा: नही मैने आपके बारे मे उनको कुछ भी नही बताया कभी... मुझे ग़लत मत समझना लेकिन मेरी भी मजबूरी थी
मैं: कोई बात नही!!! ठीक है जैसा आप ठीक समझे
फ़िज़ा: मैं अभी आपका बिस्तर कोठारी मे लगा देती हूँ वहाँ मैं आपको खाना भी वही दे जाउन्गी कुछ चाहिए हो तो रोशनदान मे से आवाज़ लगा देना रसोई मे ऑर किसी कमरे मे नही याद रखना भूलना मत ठीक है...
मैं: (मैं सिर हाँ मे हिलाते हुए) फ़िज़ा जी आपके मुझ पर इतने अहसान है अगर आप ना होती तो आज शायद मैं ज़िंदा भी नही होता अगर मैं आपके कुछ काम आ सकूँ तो यह मेरी खुश किस्मती होगी... आप मेरी तरफ से बे-फिकर रहे मेरी वजह से आपको कोई परेशानी नही होगी...
फ़िज़ा: आपका बोहोत-बोहोत शुक्रिया आपने तो एक पल मे मेरी इतनी बड़ी परेशानी ही आसान करदी...
फिर वो बाहर चली गई ऑर मैं बस उसे जाते हुए देखता रहा... मैं वापिस अपने बेड पर लेट गया थोड़ी देर मे मेरा बिस्तर भी कोठरी मे लग गया ऑर मैं उपेर कोठरी मे जाके लेट गया... कोठरी ज़्यादा बड़ी नही थी फिर भी मेरे लिए काफ़ी थी मैं उसमे आराम से लेट सकता था ऑर घूम फिर भी सकता था... वहाँ मेरा बिस्तर भी बड़े स्लीके से लगा हुआ था अब मैं ऐसी जगह पर था जहाँ से मुझे कोई नही देख सकता था लेकिन मैं सारे घर मे देख सकता था क्योकि यह कोठरी घर के एक दम बीच मे थी ऑर घर के हर कमरे मे हवा के लिए खुले हुए रोशनदान से मैं किसी भी कमरे मे झाँक कर देख सकता था... आप यह समझ सकते हैं कि वो सारे घर की एक बंद छत थी...
फ़िज़ा के जाने के कुछ देर बाद मैने बारी-बारी हर रोशनदान को खोलकर देखा ऑर हर कमरे का जायज़ा लेने लगा... पहले रोशनदान से झाँका तो वहाँ बाबा अपनी चारपाई पर बैठे हुए हूक्का पी रहे थे... दूसरे रोशनदान से मैं रसोई मे देख सकता था... तीसरा कमरा शायद नाज़ी का था जहाँ वो बेड पर बैठी शायद काग़ज़ पर किसी की तस्वीर बना रही थी पेन्सिल से... चोथा कमरा मेरा था जहाँ पहले मैं लेटा हुआ था जो अब फ़िज़ा सॉफ कर रही थी शायद यह फ़िज़ा ऑर क़ासिम का था इसलिए... कोठरी के पिछे वाला रोशनदान खोलकर देखा तो वहाँ से मुझे घर के बाहर का सब नज़र आया यहाँ से मैं कौन घर मे आया है कौन बाहर गया है सब कुछ देख सकता था...
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मैं अभी बिस्तेर पर आके लेटा ही था ऑर अपनी ही सोचो मे गुम था कि अचानक एक तांगा घर के बाहर आके रुका ऑर उसमे से एक आदमी हाथ मे लाल अतेची लिए उतरा... शायद यह क़ासिम था जिसके बारे मे फ़िज़ा ने मुझे बताया था... देखने मे क़ासिम कोई खास नही था छोटे से क़द का एक दुबला पतला सा आदमी था फ़िज़ा उसके मुक़ाबले कहीं ज़्यादा सुन्दर थी... वो तांगे से उतरकर घर मे दाखिल हो गया मैं भी वापिस अपनी जगह पर आके वापिस लेट गया ऑर मेरी कब आँख लगी मुझे पता नही चला... शाम को अचानक किसी के चिल्लाने से मेरी नींद खुल गई मैने उठकर देखा तो क़ासिम बोहोत गंदी-गंदी गलियाँ दे रहा था ऑर फ़िज़ा से पैसे माँग रहा था... फ़िज़ा लगातार रोए जा रही थी ऑर उसको कहीं जाने के लिए मना कर रही थी... लेकिन वो बार-बार कहीं जाने की बात कर रहा था ऑर फ़िज़ा से पैसे माँग रहा था अचानक उसने फ़िज़ा को थप्पड़ मारा ऑर गालियाँ देने लगा ऑर कहा कि अपनी औकात मे रहा कर रंडी मेरे मामलो मे टाँग अड़ाई तो उठाके घर से बाहर फेंक दूँगा 5 महीने मे साली की बोहोत ज़ुबान चलने लगी है... तुझे तो आके ठीक करूँगा... ऑर क़ासिम तेज़ क़दमों के साथ घर के बाहर निकल गया... फ़िज़ा वही बेड पर बैठी रो रही थी... यह देखकर मुझे बोहोत बुरा ल्गा लेकिन मैं मजबूर था फ़िज़ा ने ही मुझे घर के नीचे आने से मना किया था इसलिए मैं बस उसको रोते हुए देखता रहा ऑर क़ासिम के बारे मे सोचने लगा... फ़िज़ा हमेशा मेरे सामने क़ासिम की तारीफ करती थी ऑर उसने मुझे क़ासिम एक नेक़-दिल इंसान बताया था उसके इस तरह के बर्ताव ने यह सॉफ कर दिया कि फ़िज़ा ने मुझे क़ासिम के बारे मे झूठ बोला था... काफ़ी देर तक फ़िज़ा कमरे मे रोती रही ऑर मैं उसको देखता रहा...