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Incest दीदी ने पूरी की भाई की इच्छा
#98
उहा.आहा.उहा.आहा. आइईइ. सगरा." और संगीता दीदी ने आखरी चीख दे दी.. फिर उसके धक्के कम होते गये. उस'ने मेरे बाल छोड़ दिए और अपना बदन ढीला छोड़ के वो पड़ी रही. संगीता दीदी काम्त्रिप्त हो गई थी!! और मेने उसे काम्त्रिप्त किया था, उसके छोटे भाई ने!! मुझे ऐसा लग रहा था के मेने बहुत बड़ा तीर मारा है! अब भी मैं उसकी चूत चाट रहा था और उसे निहार रहा था. धीरे धीरे वो शांत होती गई. उसके बदन पर पसीने की बूंदे जमा हो गई थी.

अप'नी सुधबूध खोए जैसी संगीता दीदी पड़ी थी. बीच में ही उस'ने अपना हाथ उठा के मेरा मूँ'ह अप'नी चूत से हटाने की कोशीष की. मेने उसके चूत के छेद पर आखरी बार जीभ घुमा दी और मेरा सर उठा लिया. उसके चूत के निचले भाग से उस'का चूत'रस निकला था जो मेरे चाट'ने से मेरी जीभ पर आया था. मेरी बहन की चूत का वो रस चाट'कर में धन्य हो गया था!! बड़ी खुशी से मेरे मूँ'ह पर लगा वो चूत रस मेने चाट लिया.

फिर में उठा और आकर संगीता दीदी के बाजू में पहेले जैसे लेट गया. में उसके चेह'रे को निहार रहा था और नीचे उसके नंगे बदन'पर नज़र डालता था. उपर से नीचे से उस'का नंगा बदन कुच्छ अलग ही दिख रहा था. उसके चह'रे पर पहेले तो थकान थी लेकिन बाद में धीरे धीरे उसके चेहरे के भाव बदलते गये. अब उसके चह'रे पर तृप्त भावनाएँ नज़र आने लगी. में काफ़ी दिलचस्पी से उसके चह'रे के बदलते रंगो को देख रहा था.

थोड़ी देर के बाद संगीता दीदी ने अप'नी आँखें खोल दी. हमारी नज़र एक दूसरे से मिली. मेरी तरफ देखके वो शरमाई और दिल से हँसी. उसकी दिलकश हँसी देख'कर में भी दिल से हंसा.

"कैसा लगा, दीदी?"

"बिल'कुल अच्च्छा!! "

"ऐसा सुख पहेले कभी मिला था तुम्हें?"

"कभी भी नही!.. कुच्छ अलग ही भावनाएँ थी.. पह'ली बार मेने ऐसा अनुभाव किया है."

"जीजू ने तुम्हें कभी ऐसा आनंद नही दिया? मेने किया वैसे उन्होने कभी नही किया, दीदी??"

"नही रे, सागर!. उन्होने कभी ऐसे नही किया. उन्हे तो शायद ये बात मालूम भी नही होंगी."

"और तुम्हें, दीदी? तुम्हें मालूम था ये तरीका?"

"मालूम यानी. मेने सुना था के ऐसे भी मूँ'ह से चूस'कर कामसुख लिया जाता है इस दूनीया में."

"फिर तुम्हें कभी लगा नही के जीजू को बता के उनसे ऐसे करवाए?"

"कभी कभी 'इच्छा' होती थी. लेकिन उन'को ये पसंद नही आएगा ये मालूम था इस'लिए उन्हे नही कहा."

"तो फिर अब तुम्हारी 'इच्छा' पूरी हो गई ना, दीदी?"

"हां ! हां !. पूरी हो गई. और मैं तृप्त भी हो गई. कहाँ सीखा तुम'ने ये सब? बहुत ही 'छुपे रुस्तमा' निकले तुम!"

"और कहाँ से सीखूंगा, दीदी?.. उसी किताब से सीखा है मेने ये सब. हां ! लेकिन मुझे सिर्फ़ किताबी बातें मालूम थी लेकिन आज तुम्हारी वजह से मुझे प्रॅक्टिकल अनुभव मिला."

"उस किताब से और क्या क्या सीख लिया है तुम'ने, सागर?" संगीता दीदी ने हंस'कर मज़ाक में पुछा.

"वैसे तो बहुत कुच्छ सीख लिया है. अब अगर उन बातों का प्रॅक्टिकल अनुभव तुम'से मिल'नेवाला हो तो फिर बताता हूँ में तुम्हें सब." मेने उसे आँख मार'ते हुए कहा.

"नही हाँ, सागर!. अब कुच्छ नही कर'ना. हम दोनो ने पहेले ही अप'ने रिश्ते की हद पार कर दी है अब इस'के आगे नही जाना चाहिए. मैं नही अब कुच्छ कर'ने दूँगी तुम्हें."

"मुझे एक बात बताओ, दीदी. अभी जो सुख तुम्हें मिला है वैसा जीजू ने तुम्हें कभी सुख दिया है?"

"नही. फिर भी."

"यही!. यही, दीदी!. इसी बात की कमी है तुम्हारी शादीशूदा जिंदगी में."

"क्या मतलब, सागर?" उस'ने परेशान होकर मुझे पुछा.

"मतलब ये. के जीजू थोड़े पुराने ख्यालात के है इस'लिए उन्हे पूरी तरह से कामसुख लेने और देने के बारे में मालूम नही होगा. और इसीलिए एक बच्चा होने के बाद उनकी दिलचस्पी ख़त्म हो गई. उन्हे लग'ता होगा एक बच्चा बीवी को देने के बाद उनका उसके प्रती कर्तव्य पूरा हो गया. लेकिन वैसा नही होता है. सिर्फ़ घर, खाना-पीना, कपड़ा देना यानी शादीशूदा जिंदगी ऐसा नही होता है. उन्होने तुम्हें काम-जीवन में भी सुख देना चाहिए. वो वैसा नही कर'ते है इस'लिए तुम दुखी रह'ती हो."
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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RE: दीदी ने पूरी की भाई की इच्छा - by neerathemall - 03-11-2021, 04:16 PM



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