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Incest दीदी ने पूरी की भाई की इच्छा
#97
"तुम्हारी शादी हो गई है तो क्या हुआ, दीदी? इसका मतलब ये थोड़ी है के तुम्हें सब मालूम पड़ गया है?"

"अच्च्छा! तो फिर बता ही दो मुझे तुम कुच्छ. जो मेरा ज्ञान बढ़ा दे. में भी अब लाज शरम छ्चोड़ देती हूँ और सुन'ती हूँ तुम्हारे अकल के तारे तुम कैसे तोड़ते हो."

"ठीक है, दीदी! अब अगर तुम्हें कुच्छ नई बात नही बताई तो तुम्हारा भाई नही कहलाउन्गा. अच्च्छा! अब जो जो सवाल में तुम'से करूँगा उस'का सच सच जवाब देना. तुम्हें स्त्री काम्त्रिप्त कैसे होती है ये मालूम है क्या?"

"नही मालूम!!"

"नही मालूम?. मेने कहा सच जवाब देना. मेरे साथ मज़ाक नही कर'ना."

"हां ! में मज़ाक नही कर रही हूँ. सच कह रही हूँ!"

"कुच्छ भी मत कहो, दीदी! तुम्हें मालूम नही ये??"

"अब मेने कहा ना.नही? तुम्हें यकीन कर'ना है तो कर लो वारना ये बात यही ख़त्म कर दो."

"अच्च्छा ठीक है, दीदी. तुम्हें मालूम हो या ना हो लेकिन फिर भी में बताता हूँ. और मेरे मूँ'ह से कुच्छ ऐसे शब्द बाहर निकले जो तुम्हें अश्लील या गंदे लगे तो मुझे माफ़ कर देना लेकिन उन शब्दो के बगैर में तुम्हें बता नही सकता."

"ठीक है! ठीक है! चालू करो तुम."

"अच्च्छा! तो स्त्री की योनी के उप्पर एक भाग होता है जिसे शिश्नमुन्द कह'ते है."

"हा! हा! हा! इस शब्द को अश्लील कौन बोलेगा.?" ऐसा कह'कर संगीता दीदी ज़ोर से हंस'ने लगी.

"हँसना नही, दीदी! में सीरियस्ली बता रहा हूँ."

"अच्च्छा! अच्च्छा! ठीक है. बोल आगे."

"तो ये शिश्नमुन्द कॉम्क्रीडा में जब घिस जाता है तब स्त्री ज़्यादा उत्तेजीत हो जाती है और उसकी उत्तेजना बढ़ते बढ़ते एक चरम सीमा तक पहुन्च'ती है और फिर स्त्री की काम्त्रिप्ती हो जाती है."

"झूठ! सरासर झूठ!! तुम कुच्छ भी कह रहे हो. ऐसा कुच्छ नही होता है. स्त्री को कॉम्क्रीडा से कोई आनंद नही मिलता. मिलता है तो सिर्फ़ दर्द!. तकलीफ़!."

"यानी, दीदी. तुम्हें ये मालूम नही है! अगर तुम्हें ये मालूम होता तो तुम ऐसे नही कह'ती."

"हा! ठीक है ये मुझे मालूम नही. लेकिन तुम जो कह रहे हो उस'पर मुझे यकीन नही है."

"दीदी! सचमूच तुम'ने ये सुख लिया नही है?"

"नही!"

"जीजू के साथ कर'ते सम'य तुम्हें ये मज़ा नही मिला??"

"नही!!"

"और तुम्हें मेरी बात का यकीन नही है?"

"नही! नही!! नही!! "

"अब में तुम्हें कैसे यकीन दिला दू, दीदी??. ठीक है!. तुम्हें मेरी बात'पर यकीन नही है तो में तुम्हें कर के दिखाता हूँ." ऐसा कह'ते में उठ गया और संगीता दीदी के पैरो तले आ गया.

"क्या???" संगीता दीदी ने चीखते हुए कहा, "सागर!! . क्या कर रहे हो तुम?? तुम अब हद से बाहर जा रहे हो. चलो! यहाँ आओ. ठहरो!. तुम मेरे पैरो में क्यों बैठ गये हो?.. छ्चोड़ दो!.. छ्चोड़ दो मेरे पाँव. क्या कर रहे हो?. मेरे पाँव क्यों फैला रहे हो?. छी!! . सा. सागर!!. वहाँ मूँह क्यों लगा रहे हो?. अम!!. प्लीज़, सागर!. रुक जाओ. ये क्या गंदी बात कर रहे हो तुम?. में तुम्हारी बहन हूँ. छोड़ दो मेरे पाँव. उठो तुम वहाँ से. प्लीज़!!."

संगीता दीदी की बात ना सुन के में उसके पैरो के बीच में लेट गया और उसके पाँव फैला के मेने सीधा अपना मूँ'ह उसकी चूत पर रख दिया. पहेले तो मेने उसके चूत के छेद को मेरी जीभ से उप्पर नीचे थोड़ी देर चाट लिया. फिर बाद में मैं उसके छेद के उप्पर का चूत'दाना चाट'ने लगा. वो मुझे रुक'ने के लिए कह रही थी और अप'ने पाँव हिलाने की कोशीष कर रही थी लेकिन मेने उसके पाँव जाकड़ लिए थे.
वो मुझसे बिन'ती कर रही थी, मेरे बाल पकड़ के मेरा सर अप'नी छूट से हटाने की कोशीष कर रही थी लेकिन में ज़रा भी ना हिलते उसकी चूत चाट रहा था. थोड़ी देर छटपटाने के बाद जब उसकी समझा में आया के मैं उस'को छोड़'नेवाला नही हूँ तब हताश होकर उस'ने मुझे छ्चोड़ दिया और वो चुप'चाप पड़ी रही. फिर में जोश के साथ मेरे बहन की चूत चाट'ने लगा और उस'का चूत'दाना चूस'ने लगा.

थोड़ी देर तो संगीता दीदी चुप'चाप पड़ी रही लेकिन जैसे जैसे में उसकी चूत और दाना ज़्यादा ही जोश से चाटता गया वैसे वैसे उस'से मुझे रिस्पांस मिल'ने लगा. और क्यों नही मिलेगा?? हालत चाहे कोई भी हो लेकिन जब स्त्री की चूत का दाना घिस'ने लग'ता है तब वो ज़रूर उत्तेजीत हो जाती है. इसका मुझे प्रॅक्टिकल अनुभव था.

मेरे कॉलेज की गर्ल फ्रेंड के साथ ये तरीका मेने कई बार अज'माया था और उन्हे एक अलग ही कामसुख मेने दिया था. संगीता दीदी की बातों से तो पता चला ही गया था के उस'ने ये सुख कभी लिया नही था यानी मेरे जीजू ने मेरे बहन की चूत कभी चा'टी ही नही थी. खैर! उनके जैसे पुराने ख्यालात के पुरूष 'मूख-मेंथून' जैसी चीज़ करेंगे ये उम्मीद तो थी ही नही. मुझे तो ये भी यकीन था के उन्होने संगीता दीदी को कभी अपना लंड चूस'ने के लिए भी नही दिया होगा. इस'लिए दीदी को 'उस' बात का भी 'ज्ञान' नही होगा. देखेंगे.. समझ में आएगा वो भी अब थोड़ी देर में.!

में संगीता दीदी का चूत'दाना अप'ने दोनो होंठो में पकड़'कर चूस'ने लगा. चुसते सम'य में अप'ने होठों से उसकी चूत'पर दबाव दे रहा था जिस'से उसके चूत दाने का अच्छी तरह से घर्षण हो रहा था. संगीता दीदी के मूँ'ह से अब हल'कीसी सिसकियाँ बाहर निकल'ने लगी.

बीच बीच में वो

'सागर! मत करो ऐसे' या 'सागर! छ्चोड़ दो मुझे' ऐसे बड़बड़ा रही थी लेकिन मुझे रोक'ने का या अप'नी चूत से हट'ने का कोई भी प्रयास वो नही कर रही थी. मुझे मालूम था के अब वो विरोध कर'नेवाली नही है क्योंकी वो अब गरम हो रही थी. उसकी सोई हुई काम वास'ना अब जाग रही थी.

धीरे धीरे संगीता दीदी अप'नी कमर हिलाने लगी. उसके मूँ'ह से निकल'ती हल'कीसी चींखे और सिसकियाँ साफ साफ सुनाई दे रही थी. मेने उस'का चूत'दाना चुसते चुसते नज़र उप्पर कर के उसकी तरफ देखा. वो अप'नी आँखें ज़ोर से बंद कर के अपना सर इधर उधर हिला रही थी. उसकी काम भावनाएँ अब उस'से संभाली नही जा रही थी. झट से उस'ने अप'नी आँखें खोल दी और नीचे मेरी तरफ देखा.

मुझे उसकी आँखों में काम वास'ना की आग दिखाई दी. उसकी आँखें जैसे नशा किया हो वैसी अधखुली हो रही थी. एक पल के लिए उस'ने मेरी तरफ देखा और उसके मूँ'ह से एक दबी चींख बाहर निकल गई. ज़ोर से मेरे बाल पकड़'कर वो मेरा मूँ'ह अप'नी चूत'पर दबाने लगी और नीचे से वो अप'नी कमर ज़ोर ज़ोर से हिलाते मेरे मुँह'पर धक्के देने लगी. उस'का कमर हिला'ने का जोश ऐसा था के जैसे वो नीचे से मुझे चोद रही हो.

संगीता दीदी का आवेश ऐसा था के मुझे उसकी चूत'पर मूँ'ह रख'ने के लिए तकलीफ़ हो रही थी. बड़ी मुश्कील से में मेरा मूँ'ह उसकी चूत'पर दबाए हुए था और उस'का चूत'दाना चूस'ने की कोशीष मैं कर रहा था. उसके धक्कों का ज़ोर इतना ज़्यादा था के उसकी चूत की उप्परी हड्डी मेरे मूँ'ह को चुभ रही थी. मैं जब उस'का चूत'दाना चूस रहा था तब मेरी दाढ़ी का भाग उसकी चूत के छेद'पर दब रहा था और वहाँ से निकल रहा उस'का चूत'रस मेरे दाढ़ी को लग रहा था. उसकी सिस'कियाँ बढ़ गई. नीचे से उसके धक्के ज़ोर से लग'ने लगे. उसके मूँ'ह से अजीबो ग़रीब आवाज़े आने लगी. उसके धक्को का जोश अप'नी चरम सीमा पर पहुँच गया..
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



thanks
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RE: दीदी ने पूरी की भाई की इच्छा - by neerathemall - 03-11-2021, 04:14 PM



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