03-11-2021, 03:55 PM
बहरहाल रवि से दोस्ती नयना के जीवन में एक नई उपलब्धि थी, जिसने जीवन से उसका मोह बढा दिया था। उसमें थकान की जगह खुशमिजाजी आ गयी थी। पहनने ओढने का दिल करता। सजने संवरने की इच्छा के चलते उसने क्रीम, सेन्ट का ढेर लगा लिया और हर रात रविभूषण के बुलावे पर उसका मन बम्बई जाने को मचलने लगा। उसको अपने इस घर में एक और घर नजर आने लगा। बातों की लय में दोस्ती का अनुराग मर्द - औरत की चाहत में बदल चुका था। एक दिलनशीन कैफियत थी। जिसमें नयना डूबती चली जा रही थी। उसके क्षेत्र की अन्य औरतें उसके चेहरे पर आयी ताजग़ी देखकर जब कॉम्प्लीमेन्ट्स देतीं तो स्वयं नयना को लगता कि उम्र के इस दौर में जब औरतें दुनियावी जिम्मेदारी से निबट धर्म की तरफ मुडने लगती हैं या फिर सूखी नदी में तब्दील होने लगती हैं उस समय उसको ऊपरवाले ने कैसा वरदान दिया, जो दिल दोबारा धडक़ा और जीवन में अनुराग ताजा कोंपल की तरह फूटा।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.