03-11-2021, 03:54 PM
नरेन्द्र से उसकी शादी पसन्द की थी। दोनों ने शादी के पहले एक दूसरे को देखा परखा था, मगर जिन्दगी तो हमेशा से समय से आगे निकल जाने वाली चीज है, न कि ठहरी हुई जन्मपत्री, जिसके सारे शब्द अनेक संकेतों से भरे होते हैं! अपने काम को परखते, उसकी दौड में शामिल नरेन्द्र भी पहले वाले इंसान नहीं रह गये थे। उनके जीवन मूल्य जड न रह कर तरलता में अपना समाधान ढूंढने लगे थे। बहुत सी बातें नयना को परेशान करती थीं। कई सवाल थे जो वह नरेन्द्र से करना चाहती थी। मगर उनके पास हर बात का जवाब खामोशी थी। नयना भी नरेन्द्र से उखडक़र अपने ऑफिस से अधिक जुडने लगी मगर यह अहसास समय के साथ बढने लगा कि उसका पुराना घर कहीं खो गया है।
नयना के दिल में छुपा नरेन्द्र के खिलाफ भरा गुबार कभी कभी फोन पर निकल जाता। आखिर रवि ने एक दिन कह दिया कि, क्यों सहती हो यह सब? चली आओ सब कुछ छोड क़र मेरे पास। सुनकर नयना चौंक पडी। पूछने वाली थी, आखिर किस रिश्ते से? फिर कुछ सोच कर रुक गयी। पूरी रात रवि के इस बुलावे पर गौर करती रही, उसमें ध्वनित प्रेम के स्वरों को पकडने की कोशिश में स्वयं से सवाल करती, क्या रवि? और उसने अपने को टटोला, दिल की गहराई में कहीं रवि मौजूद था। उसने चौंक कर स्वयं से पूछा कि नयना इस रिश्ते का यदि आरंभ अनजाने में हो गया है, तो अंत क्या होगा? समझा बूझा या फिर समझा बूझा या फिर या फिर?
नयना के दिल में छुपा नरेन्द्र के खिलाफ भरा गुबार कभी कभी फोन पर निकल जाता। आखिर रवि ने एक दिन कह दिया कि, क्यों सहती हो यह सब? चली आओ सब कुछ छोड क़र मेरे पास। सुनकर नयना चौंक पडी। पूछने वाली थी, आखिर किस रिश्ते से? फिर कुछ सोच कर रुक गयी। पूरी रात रवि के इस बुलावे पर गौर करती रही, उसमें ध्वनित प्रेम के स्वरों को पकडने की कोशिश में स्वयं से सवाल करती, क्या रवि? और उसने अपने को टटोला, दिल की गहराई में कहीं रवि मौजूद था। उसने चौंक कर स्वयं से पूछा कि नयना इस रिश्ते का यदि आरंभ अनजाने में हो गया है, तो अंत क्या होगा? समझा बूझा या फिर समझा बूझा या फिर या फिर?
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.