03-11-2021, 03:53 PM
इसके लिये वह अपने जीवन के बचे वर्ष उसको भेंट स्वरूप देता है, तो नयना भी भावुक होकर बोल उठी कि क्या वह रवि को भाई कह सकती है? इस पर रवि ने जल्दी से कहा,
'' नहीं, नहीं भाई हरगिज नहीं, हमारा रिश्ता तो सखा का है।'' और यह सुन नयना विश्वास से भर उठी, सारी दुनिया उसे सुगंध से भरी महसूस हुई। आखिर हर रिश्ते से बडा रिश्ता दोस्त का होता है जिसमें न कोई लालच न बंधन न जोर जबरदस्ती। जितनी लम्बी पेंग लेना चाहो, ले सकते हो। इस रात ने दोनों के वार्तालाप का अन्दाज ही बदल डाला। बातों का सिलसिला सुबह तीन बजे तक चलता रहा और अनजाने में नई दिशा की तरफ मुड ग़या।
नयना का छोटा भाई, जो दो वर्ष पहले ही कार दुर्घटना में जीवित नहीं रहा था, उसके बहुत करीब था। दोनों में बचपन से दोस्ती थी। जब वह बनारस से दिल्ली नौकरी के सिलसिले में आया तो नयना की खुशी का पूछना क्या था। कुछ दिन भाई बहन के साथ नरेन्द्र घूमने गये, फिर बोर होकर अपने अस्पताल में गुम हो गये। नयना को उनकी कमी खलती न थी। उसका बचपना उसको दोबारा मिल गया था। भाई की शादी की सारी खरीदारी उसने दिल्ली से की थी। मगर होनी को कौन टाल सकता था। शादी के सप्ताह भर पहले तालकटोरा के पास कार की टक्कर होने से उसकी मौत हो गयी। डॉ नरेन्द्र कुछ न कर पाये, आखिर वो ईसामसीह तो थे नहीं, जो मुर्दाबदन में भी जान फूंक देते। नयना गहरी उदासी में डूब गई थी, उसी दुर्घटना के बाद बेटों का अमेरिका जाना हो गया। नयना को लगता कि वह इस दुनिया में तन्हा रह गई है, किसी को उससे बात करने, उसके साथ समय गुजारने की फुर्सत नहीं है।
'' नहीं, नहीं भाई हरगिज नहीं, हमारा रिश्ता तो सखा का है।'' और यह सुन नयना विश्वास से भर उठी, सारी दुनिया उसे सुगंध से भरी महसूस हुई। आखिर हर रिश्ते से बडा रिश्ता दोस्त का होता है जिसमें न कोई लालच न बंधन न जोर जबरदस्ती। जितनी लम्बी पेंग लेना चाहो, ले सकते हो। इस रात ने दोनों के वार्तालाप का अन्दाज ही बदल डाला। बातों का सिलसिला सुबह तीन बजे तक चलता रहा और अनजाने में नई दिशा की तरफ मुड ग़या।
नयना का छोटा भाई, जो दो वर्ष पहले ही कार दुर्घटना में जीवित नहीं रहा था, उसके बहुत करीब था। दोनों में बचपन से दोस्ती थी। जब वह बनारस से दिल्ली नौकरी के सिलसिले में आया तो नयना की खुशी का पूछना क्या था। कुछ दिन भाई बहन के साथ नरेन्द्र घूमने गये, फिर बोर होकर अपने अस्पताल में गुम हो गये। नयना को उनकी कमी खलती न थी। उसका बचपना उसको दोबारा मिल गया था। भाई की शादी की सारी खरीदारी उसने दिल्ली से की थी। मगर होनी को कौन टाल सकता था। शादी के सप्ताह भर पहले तालकटोरा के पास कार की टक्कर होने से उसकी मौत हो गयी। डॉ नरेन्द्र कुछ न कर पाये, आखिर वो ईसामसीह तो थे नहीं, जो मुर्दाबदन में भी जान फूंक देते। नयना गहरी उदासी में डूब गई थी, उसी दुर्घटना के बाद बेटों का अमेरिका जाना हो गया। नयना को लगता कि वह इस दुनिया में तन्हा रह गई है, किसी को उससे बात करने, उसके साथ समय गुजारने की फुर्सत नहीं है।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.