03-11-2021, 03:50 PM
पिछले पांच छ: वर्षों से नयना का अकेलापन बढता जा रहा था। दोनों नरेन्द्र जब से डायरेक्टर बना है, तब से इतना व्यस्त होता जा रहा है कि नयना को गुस्सा आने लगा था कि ऐसा भी क्या पागलपन, जो दिन रात अस्पताल में रहना, आखिर घर की भी कोई जिम्मेदारी होती है। सारे दिन की उडान के बाद परिंदे भी तो अपने घर घोंसले को लौटते हैं? पिछले तीन दिन से डॉ नरेन्द्र घर नहीं लौटे थे, कोई बेहद पेचीदा केस आ गया है। कई विदेशी प्रोफेसर मेडिकल क्षेत्र के भी रात दिन सर खपा रहे थे। नयना को स्थिति की गंभीरता का ज्ञान था, मगर हर दिन आपातकाल का वातावरण बना रहे तो, इंसान जिये कैसे अकेले घर में? कब तक टी वी देखे, मित्रों को फोन करे और पार्टियों में शामिल हो? हर तरफ से उसको ऊब लगने लगी थी। थोडी बहुत खुशी उसको मिलती, तो वह सिर्फ अपना ऑफिस था, जहां काम में उसका दिल बहल जाता था।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.