03-11-2021, 03:48 PM
आज उसका मूड बरसों बाद हल्का हुआ था। कोई कुंठा, कोई शिकायत, कोई कडवापन या झुंझलाहट उसको आहत नहीं कर रही थी। वह हवा में तैरती हुई जब घर पहुंची, तो नौकर ने बताया कि साहब को कोई एमरजेंसी ऑपरेशन करना है, जिसके कारण वे देर से लौटेंगे। सूचना सुनकर वह हमेशा की तरह आक्रोश से नहीं भरी, बल्कि उसने लापरवाही से कंधे झटके और गुनगुनाती हुई कमरे में दाखिल हुई।
नहाने के बाद जब वह गाउन में लिपटी ड्रेसिंग टेबल के सामने बैठी, तो अपना ही चेहरा इस तरह देखने लगी जैसे पहली बार देख रही हो। आंखों के नीचे हल्का कालापन, भंवों के पास कई लकीरें, माथे पर सफेद बालों का झांकना, आंखों में एक जिज्ञासा कि मैं कैसी लगती हूँ? उसको अपनी त्चचा मुलायम और चमकीली लगी। होंठों पर जाने कहां से आई मुस्कान उसको अजनबी लग रही थी। थकान के बावजूद उसमें फुर्ती का अहसास था। खाना खाने के बाद जब वह पलंग पर लेटी तो उसे महसूस हुआ कि आज बरसों बाद उसके बदन को मुलायम बिस्तर मिला है। उसने आराम की सांस ली और आंखें बन्द की तो सामने रविभूषण का चेहरा तैर गया।
बंबई पहुंचते ही रवि ने नयना को फोन किया कि वह भली प्रकार पहुंच गया। रात को जब दोबारा उसने फोन किया, तो नयना को पहली बार लगा कि उसकी आवाज सुन कर उसके दिल में कुछ उथल पुथल सी हुई। फिर फोन का यह सिलसिला पांच मिनट से आधा घंटा हो गया और हफ्ते की जगह रोज बातें होने लगीं, जिसमें प्रोफेशनल बातें कम और आपसी बातें ज्यादा होतीं - खाना खाया या नहीं? दिन कैसा गुजरा? मौसम कैसा है? नयना को फोन का इंतजार आठ बजे से शुरु हो जाता, जबकि ठीक दस बजे फोन की घंटी बज उठती थी, इस बीच वह सारे काम निबटा लेती ताकि, आराम से बातें कर सके। उसको अकेले घर में एक साथी मिल गया था, जिससे वह दु:ख सुख की बात कर सकती थी।
नहाने के बाद जब वह गाउन में लिपटी ड्रेसिंग टेबल के सामने बैठी, तो अपना ही चेहरा इस तरह देखने लगी जैसे पहली बार देख रही हो। आंखों के नीचे हल्का कालापन, भंवों के पास कई लकीरें, माथे पर सफेद बालों का झांकना, आंखों में एक जिज्ञासा कि मैं कैसी लगती हूँ? उसको अपनी त्चचा मुलायम और चमकीली लगी। होंठों पर जाने कहां से आई मुस्कान उसको अजनबी लग रही थी। थकान के बावजूद उसमें फुर्ती का अहसास था। खाना खाने के बाद जब वह पलंग पर लेटी तो उसे महसूस हुआ कि आज बरसों बाद उसके बदन को मुलायम बिस्तर मिला है। उसने आराम की सांस ली और आंखें बन्द की तो सामने रविभूषण का चेहरा तैर गया।
बंबई पहुंचते ही रवि ने नयना को फोन किया कि वह भली प्रकार पहुंच गया। रात को जब दोबारा उसने फोन किया, तो नयना को पहली बार लगा कि उसकी आवाज सुन कर उसके दिल में कुछ उथल पुथल सी हुई। फिर फोन का यह सिलसिला पांच मिनट से आधा घंटा हो गया और हफ्ते की जगह रोज बातें होने लगीं, जिसमें प्रोफेशनल बातें कम और आपसी बातें ज्यादा होतीं - खाना खाया या नहीं? दिन कैसा गुजरा? मौसम कैसा है? नयना को फोन का इंतजार आठ बजे से शुरु हो जाता, जबकि ठीक दस बजे फोन की घंटी बज उठती थी, इस बीच वह सारे काम निबटा लेती ताकि, आराम से बातें कर सके। उसको अकेले घर में एक साथी मिल गया था, जिससे वह दु:ख सुख की बात कर सकती थी।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.