01-11-2021, 04:46 PM
ऐसा कह'कर संगीता दीदी ने वापस अप'नी आँखें बंद कर ली और वो चुप'चाप पड़ी रही. मेरी खुशीयों का तो कुच्छ ठिकाना ही ना रहा और मेरी उत्तेजना भी बढ़'ती गई. मेरी सग़ी बड़ी बहन के साथ नाजायज़ काम-संबंध रख'ने के सप'ने तो मेने सैकड़ो बार देखे थे लेकिन आज पह'ली बार उसके साथ हक़ीकत में में कुच्छ कर'ने जा रहा था. में थोड़ा आगे झुक गया. अब मेरे होंठ उसके होंठो से एक दो इंच ही दूर थे. उसे मेरी गरम साँसों का अह'सास हुआ. में दावे के साथ तो नही कह सकता लेकिन मुझे ऐसा लगा के संगीता दीदी ने अपना चेह'रा थोड़ा सा उप्पर कर के अप'ने होंठ मेरे चुंबन के लिए तैयार रखे.
आगे होकर धीरे से मेने मेरे होंठ अप'नी बहन के होंठो पर रख दिए. और मेरे बदन में जैसे आग लगा गई. अप'ने आप मेरे होठों का दबाव उसके होठों पर बढ़'ने लगा और में उस'का चुंबन लेने लगा. कुच्छ पल के लिए तो संगीता दीदी शांत थी लेकिन जैसे जैसे मेरे होंठो का दबाव उसके होठों पर बढ़'ने लगा वैसे उसके भी होठ हिल'ने लगे.
कुच्छ पल सिर्फ़ होठों से होठों को चूम'ने के बाद मेने धीरे से मेरे होंठ अलग किए और उसके होठों को मेरी जीभ लगा दी.
संगीता दीदी के लिए ये एक अचानक सी बात थी क्योंकी मेने अनुभव किया के वो थोड़ा चौंक गई थी. मेने मेरे होठों का दबाव वैसे ही रखा और मेरी जीभ मैं उसके होठोंपर घुमाने लगा. पह'ले तो उस'ने कुच्छ नही किया और शांत पड़ी रही लेकिन जैसे जैसे में ज़्यादा ही जीभ घुमाने लगा वैसे वैसे उसके होठों का फासला बढ़ता गया. आख़िर उसके होंठ अलग हो गये और मुझे मेरे होंठो पर उसकी जीभ का स्पर्श अनुभव हुआ.
याहू!! !.. मेने संगीता दीदी की चुप्पी को तोड़ दिया!! आख़िर उसे भी उत्तेजना से होठ अलग कर'ने पड़े. मेने बेसब्री से मेरी जीभ वापस उसके होंठो को लगा दी. उस'ने अप'ने अलग हो गये होंठ बंद नही किए. उसे एक इशारा समझ'कर मेने मेरी जीभ उसके होठों के बींच डाल दी. एक पल के लिए मुझे उसके विरोध का आभास हुआ लेकिन अगले ही पल उसकी जीभ ने मेरी जीभ को स्पर्श किया. तो फिर क्या.. में धीरे धीरे मेरी जीभ से उसके जीभ के साथ खेल'ने लगा. इस दौरान मेरे होठों का दबाव उसके होठोंपर कायम था.
अब हम बहेन-भाई के उस पह'ले चुंबन ने एक ऐसा मोड़ ले लिया कि लग'ने लगा जैसे चुंबन लेने के लिए ही हम दोनो का जन्म हो गया हो. कुच्छ अलग ही धुन में संगीता दीदी मुझे चुंबन में साथ दे रही थी. रुक'ने का तो मेरा दिल नही कर रहा था लेकिन जैसे उसे ज़बान दी थी वैसे वो चुंबन जल्दी ख़त्म कर'ना चाहिए था वरना आगे वो किसी भी बात के लिए तैयार होने की संभावना नही थी. बड़ी मुश्कील से मेने मेरे होंठ अप'नी बहन के होठों से अलग किए.
संगीता दीदी अब भी उस चुंबन के धुन में थी शायद क्योंकी उस'ने अभी तक आँखें बंद रखी थी. में उसके चह'रे को पागल की तरह देख रहा था. कुच्छ देर बाद उस'ने आँखें खोल दी. में उसे देख रहा था ये जान'कर वो शरम के मारे चूर चूर हो गई.
"अब तो में थॅंक्स कह सकता हूँ ना, दीदी?" मेने उसे पुछा लेकिन वो कुच्छ ना बोली सिर्फ़ अपना सर हिला के उस'ने 'हां' का इशारा किया. "कैसा लगा तुम्हें, दीदी?"
"सच बता दूं या झूठ बता दूं?"
"तुम्हें जो सही लगे वो बता दो!"
"तो फिर में सच बताती हूँ. पह'ले मुझे अजीब सा लगा. लेकिन बाद में में बहेक'ती गई. सच्ची! तुम'ने बहुत ही अच्छा चुंबन लिया, सागर!. में बहन होकर मेरा मन पिघल गया. तुम अगर हटाते नही तो आगे ना जा'ने क्या हो जाता??"
आगे होकर धीरे से मेने मेरे होंठ अप'नी बहन के होंठो पर रख दिए. और मेरे बदन में जैसे आग लगा गई. अप'ने आप मेरे होठों का दबाव उसके होठों पर बढ़'ने लगा और में उस'का चुंबन लेने लगा. कुच्छ पल के लिए तो संगीता दीदी शांत थी लेकिन जैसे जैसे मेरे होंठो का दबाव उसके होठों पर बढ़'ने लगा वैसे उसके भी होठ हिल'ने लगे.
कुच्छ पल सिर्फ़ होठों से होठों को चूम'ने के बाद मेने धीरे से मेरे होंठ अलग किए और उसके होठों को मेरी जीभ लगा दी.
संगीता दीदी के लिए ये एक अचानक सी बात थी क्योंकी मेने अनुभव किया के वो थोड़ा चौंक गई थी. मेने मेरे होठों का दबाव वैसे ही रखा और मेरी जीभ मैं उसके होठोंपर घुमाने लगा. पह'ले तो उस'ने कुच्छ नही किया और शांत पड़ी रही लेकिन जैसे जैसे में ज़्यादा ही जीभ घुमाने लगा वैसे वैसे उसके होठों का फासला बढ़ता गया. आख़िर उसके होंठ अलग हो गये और मुझे मेरे होंठो पर उसकी जीभ का स्पर्श अनुभव हुआ.
याहू!! !.. मेने संगीता दीदी की चुप्पी को तोड़ दिया!! आख़िर उसे भी उत्तेजना से होठ अलग कर'ने पड़े. मेने बेसब्री से मेरी जीभ वापस उसके होंठो को लगा दी. उस'ने अप'ने अलग हो गये होंठ बंद नही किए. उसे एक इशारा समझ'कर मेने मेरी जीभ उसके होठों के बींच डाल दी. एक पल के लिए मुझे उसके विरोध का आभास हुआ लेकिन अगले ही पल उसकी जीभ ने मेरी जीभ को स्पर्श किया. तो फिर क्या.. में धीरे धीरे मेरी जीभ से उसके जीभ के साथ खेल'ने लगा. इस दौरान मेरे होठों का दबाव उसके होठोंपर कायम था.
अब हम बहेन-भाई के उस पह'ले चुंबन ने एक ऐसा मोड़ ले लिया कि लग'ने लगा जैसे चुंबन लेने के लिए ही हम दोनो का जन्म हो गया हो. कुच्छ अलग ही धुन में संगीता दीदी मुझे चुंबन में साथ दे रही थी. रुक'ने का तो मेरा दिल नही कर रहा था लेकिन जैसे उसे ज़बान दी थी वैसे वो चुंबन जल्दी ख़त्म कर'ना चाहिए था वरना आगे वो किसी भी बात के लिए तैयार होने की संभावना नही थी. बड़ी मुश्कील से मेने मेरे होंठ अप'नी बहन के होठों से अलग किए.
संगीता दीदी अब भी उस चुंबन के धुन में थी शायद क्योंकी उस'ने अभी तक आँखें बंद रखी थी. में उसके चह'रे को पागल की तरह देख रहा था. कुच्छ देर बाद उस'ने आँखें खोल दी. में उसे देख रहा था ये जान'कर वो शरम के मारे चूर चूर हो गई.
"अब तो में थॅंक्स कह सकता हूँ ना, दीदी?" मेने उसे पुछा लेकिन वो कुच्छ ना बोली सिर्फ़ अपना सर हिला के उस'ने 'हां' का इशारा किया. "कैसा लगा तुम्हें, दीदी?"
"सच बता दूं या झूठ बता दूं?"
"तुम्हें जो सही लगे वो बता दो!"
"तो फिर में सच बताती हूँ. पह'ले मुझे अजीब सा लगा. लेकिन बाद में में बहेक'ती गई. सच्ची! तुम'ने बहुत ही अच्छा चुंबन लिया, सागर!. में बहन होकर मेरा मन पिघल गया. तुम अगर हटाते नही तो आगे ना जा'ने क्या हो जाता??"
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.