01-11-2021, 04:42 PM
सारी रात नयना के दिमाग में फोन की घंटी घनघनाती रही। उसी के साथ रोजी क़े शब्द तपकन बन उसके दिल को मसलते रहे, '' मुझे कभी कभी लगता है कि सर अपने सारे दु:खों को नशे की हालत में तरतीब दे लेते हैंबडे बडे प्राेजेक्ट तक, जो उनकी अभिलाषा रही है, मगर पूरे नहीं हो पायेअनजाने में ही सही मुझे उनका यह अन्दाज बडा निर्मम लगाआपको देख कर मैं समझ सकती हूँ कि आपका विश्वास कहाँ पर टूटा है। प्लीज मैम हो सके तो सर को भूल जाईये।।'' एयरपोर्ट पर विदा देते हुये रोजी ने बहुत धीमे सुर में कहा था।
नयना को अच्छी तरह याद है कि वह जून का तपता महीना था, जब उसकी मुलाकात रविभूषण से हुई थी, शादी की उस पार्टी में ढेरों मर्द - औरतों का जमघट था। कुछ चेहरे जाने पहचाने थे कुछ कुछ अजनबी थे। उन्हीं में से एक चेहरा रविभूषण का था। कुमकुमों की रंगीन झालरों से सजे पेड क़े पास खडा वह बेतहाशा सिगरेट फूंक रहा था। धुंए से डूबा उसका चेहरा उसे और भी रहस्यमय बना रहा था। जब किसी के परिचय कराने पर उसने होंठों में सिगरेट दबा कर परंपरागत अंदाज से दोनों हाथ जोडक़र नमस्ते की तो, नयना को हल्का सा झटका महसूस हुआ। वह हलो या हाय की आशा कर रही थी मगरउसने गौर से रविभूषण को देखा, चेहरे पर खोयापन, माहौल से लापरवाह उसकी बडी बडी आँखें अपने ही सिगरेट के धुंए से अधमुंदी हो रही थीं। उसने संवाद शुरु करना चाहा, मगर जाने क्यों रुक गयी। वह भी खामोश खडा सम्पूर्ण वातावरण का जायज़ा लेता रहा। नयना को वह आदमी कुछ अलग सा लगा, बल्कि यूं कहा जाये कि उस आदमी के व्यक्तित्व से कोई और शख्स अन्दर बाहर होता नजर आ रहा था, भीड क़े बावजूद नयना की नजरें कई बार रविभूषण पर पडीं ।
रविभूषण से नयना की यह पहली मुलाकात बडी सरसरी सी थी सो धुंधला गयी। मगर चंद माह बाद जब लंच पर उससे दूसरी मुलाकात हुई तो वह गुमनाम चेहरा गर्द झाड क़र साफ नजर आया। सिगरेट, धुंआ, खोयापन और लापरवाह अन्दाज। चूंकि यह बिजनेस लंच था सो बाकायदा परिचय हुआ और कार्ड का आदान प्रदान भी। नयना ने तब जाना कि एक साथ दो व्यक्तित्व की झलकियां दिखाने वाला यह इंसान बंबई शहर ही नहीं बल्कि देश का जाना माना वास्तुविद् रविभूषण है तो उसने रवि से अपनी पहली मुलाकात का कोई जिक़्र नहीं किया। रवि को वैसे भी कुछ याद नहीं था, वरना वह कह सकता था कि हम पहले मिल चुके हैं। इंटीरियर डेकोरेशन को लेकर यह मीटींग बम्बई के मशहूर उद्योगपति द्वारा बुलवाई गयी थी। उसके पोते का ऑफिस जिसको रवि ने डिजाईन किया था, वह ईंट गारे की मदद से बन कर अब साकार रूप ले चुका था। उसकी सजावट को लेकर सलाह मशविरा चल रहा था। लंच के बाद कॉफी पीते हुए नयना को रविभूषण बहुत हँसमुख व मिलनसार आदमी लगा। खासकर काम को लेकर उसका नजरिया और राय जानकर महसूस हुआ कि इतनी शोहरत पाने के बावजूद आदमी काफी सुलझे स्वभाव का है, दंभ या ओछापन उसमें नहीं है।
नयना को अच्छी तरह याद है कि वह जून का तपता महीना था, जब उसकी मुलाकात रविभूषण से हुई थी, शादी की उस पार्टी में ढेरों मर्द - औरतों का जमघट था। कुछ चेहरे जाने पहचाने थे कुछ कुछ अजनबी थे। उन्हीं में से एक चेहरा रविभूषण का था। कुमकुमों की रंगीन झालरों से सजे पेड क़े पास खडा वह बेतहाशा सिगरेट फूंक रहा था। धुंए से डूबा उसका चेहरा उसे और भी रहस्यमय बना रहा था। जब किसी के परिचय कराने पर उसने होंठों में सिगरेट दबा कर परंपरागत अंदाज से दोनों हाथ जोडक़र नमस्ते की तो, नयना को हल्का सा झटका महसूस हुआ। वह हलो या हाय की आशा कर रही थी मगरउसने गौर से रविभूषण को देखा, चेहरे पर खोयापन, माहौल से लापरवाह उसकी बडी बडी आँखें अपने ही सिगरेट के धुंए से अधमुंदी हो रही थीं। उसने संवाद शुरु करना चाहा, मगर जाने क्यों रुक गयी। वह भी खामोश खडा सम्पूर्ण वातावरण का जायज़ा लेता रहा। नयना को वह आदमी कुछ अलग सा लगा, बल्कि यूं कहा जाये कि उस आदमी के व्यक्तित्व से कोई और शख्स अन्दर बाहर होता नजर आ रहा था, भीड क़े बावजूद नयना की नजरें कई बार रविभूषण पर पडीं ।
रविभूषण से नयना की यह पहली मुलाकात बडी सरसरी सी थी सो धुंधला गयी। मगर चंद माह बाद जब लंच पर उससे दूसरी मुलाकात हुई तो वह गुमनाम चेहरा गर्द झाड क़र साफ नजर आया। सिगरेट, धुंआ, खोयापन और लापरवाह अन्दाज। चूंकि यह बिजनेस लंच था सो बाकायदा परिचय हुआ और कार्ड का आदान प्रदान भी। नयना ने तब जाना कि एक साथ दो व्यक्तित्व की झलकियां दिखाने वाला यह इंसान बंबई शहर ही नहीं बल्कि देश का जाना माना वास्तुविद् रविभूषण है तो उसने रवि से अपनी पहली मुलाकात का कोई जिक़्र नहीं किया। रवि को वैसे भी कुछ याद नहीं था, वरना वह कह सकता था कि हम पहले मिल चुके हैं। इंटीरियर डेकोरेशन को लेकर यह मीटींग बम्बई के मशहूर उद्योगपति द्वारा बुलवाई गयी थी। उसके पोते का ऑफिस जिसको रवि ने डिजाईन किया था, वह ईंट गारे की मदद से बन कर अब साकार रूप ले चुका था। उसकी सजावट को लेकर सलाह मशविरा चल रहा था। लंच के बाद कॉफी पीते हुए नयना को रविभूषण बहुत हँसमुख व मिलनसार आदमी लगा। खासकर काम को लेकर उसका नजरिया और राय जानकर महसूस हुआ कि इतनी शोहरत पाने के बावजूद आदमी काफी सुलझे स्वभाव का है, दंभ या ओछापन उसमें नहीं है।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.