01-11-2021, 04:42 PM
हवाई जहाज में बैठी नयना किसी परिंदे की तरह सहमी और निराश थी। जिसको उडान भरते हुए बीच में ही बहेलिये ने झपट लिया था। नियति का यह खेल उसकी समझ में नहीं आया।
दिल्ली पहुँच कर वह हवाई जहाज क़ी सीट पर बेहिस सी बैठी रही। भीड छंटने पर एयरहोस्टेस ने उसकी हालत देखी और पास आकर बोली, '' मैम, आपकी मदद कर सकती हूँ? ''
'' नहीं मैं ठीक हूँ।''
बडी देर तक वह कुर्सी पर बैठी खाली नजरों से मुसाफिरों को बाहर निकलते देखती रही। उसके दिमाग से सब कुछ पुछ सा गया था। कौनसा घर, कौनसा शहर और कौनसा पता जहाँ उसको जाना था?
एयरहोस्टेस ने उसकी अटैची निकाली। वह उठी, सीढियां उतरी और इमारत में दाखिल हुई। प्रिपेड टैक्सी काउंटर पर वह बडी देर तक चुप रही। फिर बडी मुश्किल से उसने सडक़ का नाम बताया। टैक्सी पर बैठी तो लगा सर के अन्दर झनझनाहट सी है। घर का नम्बर याद ही नहीं आया। टैक्सी बडी देर तक उस सडक़ पर दांये बांये घूमती रही फिर ड्राईवर ने झुंझला कर कहा कि मेम साहब, मुझे घर भी लौटना है। नयना की चेतना लौटी। बहुत देर तक ढूंढने के बाद उसने पर्स से अपना विजिटिंग कार्ड निकाला और बडी क़ठिनता से पता पढा। घर पहुंच कर उसको अजीब घुटन का अहसास हो रहा था। सर में शदीद दर्द उठ रहा था। उसकी हालत देख कर नौकर परेशान थे। वह सर दोनों हाथों से पकडे बेडरूम में जा बिस्तर पर लुढक़ गयी।
दिल्ली पहुँच कर वह हवाई जहाज क़ी सीट पर बेहिस सी बैठी रही। भीड छंटने पर एयरहोस्टेस ने उसकी हालत देखी और पास आकर बोली, '' मैम, आपकी मदद कर सकती हूँ? ''
'' नहीं मैं ठीक हूँ।''
बडी देर तक वह कुर्सी पर बैठी खाली नजरों से मुसाफिरों को बाहर निकलते देखती रही। उसके दिमाग से सब कुछ पुछ सा गया था। कौनसा घर, कौनसा शहर और कौनसा पता जहाँ उसको जाना था?
एयरहोस्टेस ने उसकी अटैची निकाली। वह उठी, सीढियां उतरी और इमारत में दाखिल हुई। प्रिपेड टैक्सी काउंटर पर वह बडी देर तक चुप रही। फिर बडी मुश्किल से उसने सडक़ का नाम बताया। टैक्सी पर बैठी तो लगा सर के अन्दर झनझनाहट सी है। घर का नम्बर याद ही नहीं आया। टैक्सी बडी देर तक उस सडक़ पर दांये बांये घूमती रही फिर ड्राईवर ने झुंझला कर कहा कि मेम साहब, मुझे घर भी लौटना है। नयना की चेतना लौटी। बहुत देर तक ढूंढने के बाद उसने पर्स से अपना विजिटिंग कार्ड निकाला और बडी क़ठिनता से पता पढा। घर पहुंच कर उसको अजीब घुटन का अहसास हो रहा था। सर में शदीद दर्द उठ रहा था। उसकी हालत देख कर नौकर परेशान थे। वह सर दोनों हाथों से पकडे बेडरूम में जा बिस्तर पर लुढक़ गयी।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.