29-10-2021, 05:22 PM
"तुम पागल तो नही हो गये हो, सागर? कभी तुम्हारे मन में स्त्री को नंगी देख'ने की जिग्यासा पैदा होती है तो कभी तुम्हारे मन से आवाज़ आती है के उस'का चुंबन ले लूँ. ये क्या लगा रखा है तुम'ने??"
"अब तुम्हें देख के मुझे वैसा लगा, दीदी! इस'लिए में कह रहा हूँ."
"मुझे ये बता, सागर. मुझे देख'कर तुम्हें ऐसा क्यों लगा??"
"क्योंकी.. में थोडा उत्तेजीत हो गया हूँ!"
"ऊत्तेजीत हो गये हो?. खुद के बहन की तरफ देख'कर तुम उत्तेजीत हो गये हो??"
"हां !. क्यों नही होऊँगा, दीदी? तुम इत'नी सुंदर और सेक्सी दिख'ती हो के कोई भी उत्तेजीत हो सकता है. तुम्हारा भाई हूँ तो क्या हुआ. आखीर एक पुरूष जो हूँ. तुम भी तो उत्तेजीत हो गई हो."
"में??. ऊत्तेजीत. कौन कह रहा है के में उत्तेजीत हो गई हूँ?"
"कह'ने की क्या ज़रूरत है, दीदी. मुझे समझ है सब."
"समझ है?? क्या समझ है तुम्हें?? किस बात से तुम'ने ये मतलब निकाला के में उत्तेजीत हो गई हूँ???"
"मेने तुम्हारी पॅंटीस देखी है, दीदी. वो 'उस' भाग पर गीली हो गई थी."
"पॅंटीस?? गीली हो गई?? क्या कह रहे हो तुम, सागर???"
"मुझे मालूम है, दीदी. स्त्री जब उत्तेजीत होती है तो उसके 'उस' भाग से पानी छूटता है."
"अरे बेशरम!!. किस'ने कहा ये तुझे?"
"किस'ने कहा ये जाने दो. लेकिन में जो कुच्छ कह रहा हूँ ये सच है ना, दीदी?"
"क्या सच है, सागर? किस'ने कहा तुम्हें ये?"
"मेने पढ़ा है एक किताब में."
"किताब में?. कौन सी किताब में??"
"एक काम-जीवन की किताब की कहानियों में."
"अरे बेशरम.. तुम ऐसी किताबे पढ़ते हो हां क्या नाम बताया था ?? ये धन्दे कर'ते थे तुम पढ़ाई के सम'य?"
"दीदी! में जब पढ़ता था तब नही पढ़ी मेने वो किताब. वो तो आज कल में पढ़ी है. में भी बड़ा हो गया हूँ अब! इस'लिए मेरी जान'करी बढ़ाने के लिए मेने वो किताब पढ़ी थी."
"और क्या लिखा था उस किताब में ?"
"यही के. स्त्री जब काम-उत्तेजीत हो जाती है तब उसकी योनी से काम रस बाहर निकलता है.."
"वाह. बहुत अच्छे. क्या शब्द सीख लिए है तुम'ने. काम- उत्तेजीत. योनी. काम रस.. में तो धन्य हो गई, सागर!. अरे पगले. ऐसा सफेद पानी हमारी 'उस' जगह से हमेशा निकलता रहता है. तो फिर वो 'काम-सलील' कैसे हो सकता है?"
"चलो मान लिया, दीदी!. के स्त्री के 'उस' जगह से ये पानी हमेशा निकलता रहता है लेकिन तुम'ने तो थोड़ी देर पह'ले स्नान किया था तब तुम्हारी 'वो' जगहा सुखी तो होंगी? और थोड़ी देर पह'ले जब मेने तुम्हारा सिर्फ़ गाउन निकाला था तब तुम्हारी पॅंटीस पर वो गीला स्पॉट नही था. लेकिन जब मेने तुम्हारी पॅंटीस निकाल दी तब उस'पर वो गीला स्पॉट था. इसका मतलब में जब तुम्हारे कपड़े उतार रहा था तब तुम उत्तेजीत हो रही थी. बराबर है ना, दीदी?"
"हे भगवान!. तुम धन्य हो, सागर!!" संगीता दीदी ने अप'ने हाथ जोड़'कर मुझे कहा, "क्या मतलब निकाला तुम'ने इस बात का!! "
"में सही कह रहा हूँ के नही ये बता दो, दीदी. तुम उत्तेजीत हो गई थी ना? सच सच बताओ!'
"हां !. में हो गई थी थोड़ी उत्तेजीत!!" आखीर संगीता दीदी ने कबूल कर के कहा, "अब थोड़ी बहुत उत्तेजना तो बढ़ेगी ही ना."
"एग्ज़ॅक्ट्ली!!. जैसे तुम थोड़ी बहुत उत्तेजीत हो गई थी वैसे में भी थोडा बहुत उत्तेजीत हो गया हूँ. इस'लिए, दीदी. प्लीज़!. मुझे तुम्हारा एक चुंबन लेने दो ना?? सिर्फ़ एक!. झट से!!"
"क्या है ये, सागर?. तुम्हारी माँगे तो बढ़'ती जा रही है."
"ऐसे भी क्या, दीदी!. सिर्फ़ एक चुंबन.. उस'से तुम्हारा क्या नुकसान होने वाला है? इत'ने में तो हो भी जाता मेरा चुंबन लेना."
"अच्च्छा ठीक है, सागर. ले लो एक चुंबन. लेकिन झट से हाँ." आखीर संगीता दीदी नाखुशी से तैयार हो गई.
"थॅंक्स, दीदी! थकयू वेरी मच!"
"पहेले ले तो सही चुंबन!! फिर बोल'ना. थॅंक्स और थन्क्यू."
"अब तुम्हें देख के मुझे वैसा लगा, दीदी! इस'लिए में कह रहा हूँ."
"मुझे ये बता, सागर. मुझे देख'कर तुम्हें ऐसा क्यों लगा??"
"क्योंकी.. में थोडा उत्तेजीत हो गया हूँ!"
"ऊत्तेजीत हो गये हो?. खुद के बहन की तरफ देख'कर तुम उत्तेजीत हो गये हो??"
"हां !. क्यों नही होऊँगा, दीदी? तुम इत'नी सुंदर और सेक्सी दिख'ती हो के कोई भी उत्तेजीत हो सकता है. तुम्हारा भाई हूँ तो क्या हुआ. आखीर एक पुरूष जो हूँ. तुम भी तो उत्तेजीत हो गई हो."
"में??. ऊत्तेजीत. कौन कह रहा है के में उत्तेजीत हो गई हूँ?"
"कह'ने की क्या ज़रूरत है, दीदी. मुझे समझ है सब."
"समझ है?? क्या समझ है तुम्हें?? किस बात से तुम'ने ये मतलब निकाला के में उत्तेजीत हो गई हूँ???"
"मेने तुम्हारी पॅंटीस देखी है, दीदी. वो 'उस' भाग पर गीली हो गई थी."
"पॅंटीस?? गीली हो गई?? क्या कह रहे हो तुम, सागर???"
"मुझे मालूम है, दीदी. स्त्री जब उत्तेजीत होती है तो उसके 'उस' भाग से पानी छूटता है."
"अरे बेशरम!!. किस'ने कहा ये तुझे?"
"किस'ने कहा ये जाने दो. लेकिन में जो कुच्छ कह रहा हूँ ये सच है ना, दीदी?"
"क्या सच है, सागर? किस'ने कहा तुम्हें ये?"
"मेने पढ़ा है एक किताब में."
"किताब में?. कौन सी किताब में??"
"एक काम-जीवन की किताब की कहानियों में."
"अरे बेशरम.. तुम ऐसी किताबे पढ़ते हो हां क्या नाम बताया था ?? ये धन्दे कर'ते थे तुम पढ़ाई के सम'य?"
"दीदी! में जब पढ़ता था तब नही पढ़ी मेने वो किताब. वो तो आज कल में पढ़ी है. में भी बड़ा हो गया हूँ अब! इस'लिए मेरी जान'करी बढ़ाने के लिए मेने वो किताब पढ़ी थी."
"और क्या लिखा था उस किताब में ?"
"यही के. स्त्री जब काम-उत्तेजीत हो जाती है तब उसकी योनी से काम रस बाहर निकलता है.."
"वाह. बहुत अच्छे. क्या शब्द सीख लिए है तुम'ने. काम- उत्तेजीत. योनी. काम रस.. में तो धन्य हो गई, सागर!. अरे पगले. ऐसा सफेद पानी हमारी 'उस' जगह से हमेशा निकलता रहता है. तो फिर वो 'काम-सलील' कैसे हो सकता है?"
"चलो मान लिया, दीदी!. के स्त्री के 'उस' जगह से ये पानी हमेशा निकलता रहता है लेकिन तुम'ने तो थोड़ी देर पह'ले स्नान किया था तब तुम्हारी 'वो' जगहा सुखी तो होंगी? और थोड़ी देर पह'ले जब मेने तुम्हारा सिर्फ़ गाउन निकाला था तब तुम्हारी पॅंटीस पर वो गीला स्पॉट नही था. लेकिन जब मेने तुम्हारी पॅंटीस निकाल दी तब उस'पर वो गीला स्पॉट था. इसका मतलब में जब तुम्हारे कपड़े उतार रहा था तब तुम उत्तेजीत हो रही थी. बराबर है ना, दीदी?"
"हे भगवान!. तुम धन्य हो, सागर!!" संगीता दीदी ने अप'ने हाथ जोड़'कर मुझे कहा, "क्या मतलब निकाला तुम'ने इस बात का!! "
"में सही कह रहा हूँ के नही ये बता दो, दीदी. तुम उत्तेजीत हो गई थी ना? सच सच बताओ!'
"हां !. में हो गई थी थोड़ी उत्तेजीत!!" आखीर संगीता दीदी ने कबूल कर के कहा, "अब थोड़ी बहुत उत्तेजना तो बढ़ेगी ही ना."
"एग्ज़ॅक्ट्ली!!. जैसे तुम थोड़ी बहुत उत्तेजीत हो गई थी वैसे में भी थोडा बहुत उत्तेजीत हो गया हूँ. इस'लिए, दीदी. प्लीज़!. मुझे तुम्हारा एक चुंबन लेने दो ना?? सिर्फ़ एक!. झट से!!"
"क्या है ये, सागर?. तुम्हारी माँगे तो बढ़'ती जा रही है."
"ऐसे भी क्या, दीदी!. सिर्फ़ एक चुंबन.. उस'से तुम्हारा क्या नुकसान होने वाला है? इत'ने में तो हो भी जाता मेरा चुंबन लेना."
"अच्च्छा ठीक है, सागर. ले लो एक चुंबन. लेकिन झट से हाँ." आखीर संगीता दीदी नाखुशी से तैयार हो गई.
"थॅंक्स, दीदी! थकयू वेरी मच!"
"पहेले ले तो सही चुंबन!! फिर बोल'ना. थॅंक्स और थन्क्यू."
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.