29-10-2021, 05:20 PM
ऐसा कह'ते संगीता दीदी ने अपना दायां हाथ उप्पर किया और अप'ने सर के नीचे रखा. फिर अप'नी जांघों का अंतर थोड़ा बढ़ा के वो बिल'कुल रिलक्स हो कर पड़ी रही. उस की आँखें बंद थी, चेह'रे पर लज्जा थी. उसकी छाती का अरोला उत्तेजना से कड़क हो गया था और उसके उप्पर का निप्पल और भी लंबा हो गया है ऐसा मुझे लग रहा था. उस की साँसों की रफ़्तार बढ़ गयी थी जिस'से उसकी भरी हुई छाती उप्पर नीचे हो रही थी. उस'का पेट भी साँसों के ताल पर उप्पर, नीचे हो रहा था और नीचे होते सम'य उसके गोल नाभी में और भी गहराई महेसूस होती थी.
मेरी बहन के नंगेपन को निहार'ते हुए मेरा लंड पह'ले से ही कड़क हो गया था और जब मेने उसके जांघों के बीच मेरी नज़र जमा दी तब में काम वास'ना से पागल हो गया. उसकी चूत के इर्दगीर्द भूरे रंग के बालो का जंजाल था. मेने थोड़ा नीचे झुक के जब उसकी चूत को गौर से देखा तो उस बालो के जंगल से मुझे उसकी चूत का छेद और छेद के उप्पर का चूत'दाना चमकते नज़र आया. मेने उसके जांघों के नीचे नज़र सरकाई तो मुझे उसकी केले के खंबे जैसी गोरी गोरी और लंबी टाँगें नज़र आई.
ना जा'ने कित'नी देर तक में संगीता दीदी का नन्गपन उपर से नीचे, नीचे से उप्पर निहार'ता रहा था. उस सम'य मेरी नंगी बहन मुझे स्वर्ग की अप्सरा लगा रही थी!
"क्या फिर, सागर!. तुम्हारी जिग्यासा कब पूरी होंगी?" काफ़ी देर बाद संगीता दीदी ने मुझे पुछा.
"किसको मालूम, दीदी?"
"क्या मत'लब, सागर?"
"मतलब ये के मेरा जी ही नही भरता तुम्हें नंगी देख'ते. ऐसा लग'ता है जिंदगी भर में तुम्हें ऐसे ही देख'ते रहूं!"
"अच्च्छा!. भाड़ा चुका सकते हो क्या इस रूम का. जिंदगीभर??" उस'ने मज़ाक में कहा.
"मेरी बात को प्रक्तीकली मत लो, दीदी!. उसके पिछे का अर्थ समझ लो!"
"अरे वो, शहज़ादे!!.. बहुत हो गया तुम्हारा उसके पिछे का अर्थ अब. मुझे ठंड लग'ने लगी है उस एर कंडीशन की वजह से!"
"सच, दीदी? सॉरी हाँ. मेरे ध्यान में ही नही आया यह. में अभी बंद करता हूँ ए.सी.." ऐसा कह'कर मेने झट से बेड से छलान्ग लगाई और तूरन्त जाकर एर कंडीशन बंद किया.
फिर आकर में संगीता दीदी के दाई तरफ लेट गया और उसकी तरफ घूम के मेरे बाएँ हाथ के सहारे अपना सर उप्पर करके उसके चह'रे को देख'ने लगा. उस'को ये महेसूस हुआ के में उसके बाजू में लेट गया हूँ. उस'ने सर घुमा के आँखें खोल दी और मेरी तरफ देखा. में उसकी तरफ देख'कर हंसा. उस'ने झट से अप'नी आँखें बंद कर ली. में मेरा मूँ'ह उसके कान के नज़दीक ले गया और मेने धीरे से उस'को पुछा,
"दीदी! में तुम्हारे होठों का एक चुंबन ले लूँ?"
"क्या???" वो लग'भाग चिल्लाई.
"प्लीज़, दीदी! सिर्फ़ एक बार."
"तुम'ने कहा था के तुम्हें सिर्फ़ नग्न स्त्री देख'नी है. उस'का चुंबन भी लेना है ऐसा कब कहा था?"
"हां ! नही कहा था. लेकिन अभी मेरे मन में ये इच्छा पैदा हुई है के में तुम्हारा एक चुंबन ले लूँ!"
मेरी बहन के नंगेपन को निहार'ते हुए मेरा लंड पह'ले से ही कड़क हो गया था और जब मेने उसके जांघों के बीच मेरी नज़र जमा दी तब में काम वास'ना से पागल हो गया. उसकी चूत के इर्दगीर्द भूरे रंग के बालो का जंजाल था. मेने थोड़ा नीचे झुक के जब उसकी चूत को गौर से देखा तो उस बालो के जंगल से मुझे उसकी चूत का छेद और छेद के उप्पर का चूत'दाना चमकते नज़र आया. मेने उसके जांघों के नीचे नज़र सरकाई तो मुझे उसकी केले के खंबे जैसी गोरी गोरी और लंबी टाँगें नज़र आई.
ना जा'ने कित'नी देर तक में संगीता दीदी का नन्गपन उपर से नीचे, नीचे से उप्पर निहार'ता रहा था. उस सम'य मेरी नंगी बहन मुझे स्वर्ग की अप्सरा लगा रही थी!
"क्या फिर, सागर!. तुम्हारी जिग्यासा कब पूरी होंगी?" काफ़ी देर बाद संगीता दीदी ने मुझे पुछा.
"किसको मालूम, दीदी?"
"क्या मत'लब, सागर?"
"मतलब ये के मेरा जी ही नही भरता तुम्हें नंगी देख'ते. ऐसा लग'ता है जिंदगी भर में तुम्हें ऐसे ही देख'ते रहूं!"
"अच्च्छा!. भाड़ा चुका सकते हो क्या इस रूम का. जिंदगीभर??" उस'ने मज़ाक में कहा.
"मेरी बात को प्रक्तीकली मत लो, दीदी!. उसके पिछे का अर्थ समझ लो!"
"अरे वो, शहज़ादे!!.. बहुत हो गया तुम्हारा उसके पिछे का अर्थ अब. मुझे ठंड लग'ने लगी है उस एर कंडीशन की वजह से!"
"सच, दीदी? सॉरी हाँ. मेरे ध्यान में ही नही आया यह. में अभी बंद करता हूँ ए.सी.." ऐसा कह'कर मेने झट से बेड से छलान्ग लगाई और तूरन्त जाकर एर कंडीशन बंद किया.
फिर आकर में संगीता दीदी के दाई तरफ लेट गया और उसकी तरफ घूम के मेरे बाएँ हाथ के सहारे अपना सर उप्पर करके उसके चह'रे को देख'ने लगा. उस'को ये महेसूस हुआ के में उसके बाजू में लेट गया हूँ. उस'ने सर घुमा के आँखें खोल दी और मेरी तरफ देखा. में उसकी तरफ देख'कर हंसा. उस'ने झट से अप'नी आँखें बंद कर ली. में मेरा मूँ'ह उसके कान के नज़दीक ले गया और मेने धीरे से उस'को पुछा,
"दीदी! में तुम्हारे होठों का एक चुंबन ले लूँ?"
"क्या???" वो लग'भाग चिल्लाई.
"प्लीज़, दीदी! सिर्फ़ एक बार."
"तुम'ने कहा था के तुम्हें सिर्फ़ नग्न स्त्री देख'नी है. उस'का चुंबन भी लेना है ऐसा कब कहा था?"
"हां ! नही कहा था. लेकिन अभी मेरे मन में ये इच्छा पैदा हुई है के में तुम्हारा एक चुंबन ले लूँ!"
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.