29-10-2021, 05:19 PM
"सॉरी! सॉरी!. सॉरी, दीदी! मेने मज़ाक में वैसे कहा. नाराज़ मत होना . में रियली सॉरी." ऐसा कह'कर मेने वापस उसे सीधा किया. संगीता दीदी चुप'चाप सीधी हो गई और में वापस उस'का ननगपन आँखों से निरिक्षण कर'ने लगा.
"तुम आँखें क्यों नही खोल'ती, दीदी? अब और कित'ना शरमाओगी? आलरेडी तुम काफ़ी देर से मेरे साम'ने नंगी हो."
"हाँ ! मुझे मालूम है. लेकिन फिर भी.. मुझे बहुत शरम आ रही है के मेरा भाई मुझे नंगी देख रहा है इस'लिए. और अगर आँखें खोल के में निर्लज्ज की तरह तुम्हें देख'ती रही तो तुम्हें शरम आएगी मेरा ननगपन देख'ने के लिए. तुम अच्छी तरह से देख सको इस'लिए मेने आँखें बंद रखी है इस ख़याल से के मुझे कोई नही देख रहा है. जैसे बिल्ली आँखें बंद कर के दूध पीती है और उसे लग'ता है के कोई उसे नही देख रहा है. वैसे." ऐसा कह'कर संगीता दीदी हंस'ने लगी.
"थॅंक्स, दीदी!" मेने संगीता दीदी को दिल से धन्यवाद देते हुए कहा, "मुझे मालूम है. इस दूनीया की कोई भी बहन अप'ने भाई के साम'ने ऐसी नंगी नही होगी. लेकिन तुम तैयार हो गयी और तुम'ने कर के दिखाया. सिर्फ़ मेरे लिए! में हरदम तुम्हारा आभारी रहूँगा! थॅंक्स!!"
"अरे इस में थॅंक्स क्या कह'ना, सागर? उलटा मुझे अच्च्छा लगा के मेने तुम्हें खूस किया. तुम'ने मुझे दिन भर खूस रखा इस बात का थोड़ा बहुत अहसान में चुका सकी. तुम चाहे उतना सम'य ले लो. बिल'कुल बीना जीझक मुझे निहार लो. और अप'नी जिग्यासा पूरी कर लो."
"तुम आँखें क्यों नही खोल'ती, दीदी? अब और कित'ना शरमाओगी? आलरेडी तुम काफ़ी देर से मेरे साम'ने नंगी हो."
"हाँ ! मुझे मालूम है. लेकिन फिर भी.. मुझे बहुत शरम आ रही है के मेरा भाई मुझे नंगी देख रहा है इस'लिए. और अगर आँखें खोल के में निर्लज्ज की तरह तुम्हें देख'ती रही तो तुम्हें शरम आएगी मेरा ननगपन देख'ने के लिए. तुम अच्छी तरह से देख सको इस'लिए मेने आँखें बंद रखी है इस ख़याल से के मुझे कोई नही देख रहा है. जैसे बिल्ली आँखें बंद कर के दूध पीती है और उसे लग'ता है के कोई उसे नही देख रहा है. वैसे." ऐसा कह'कर संगीता दीदी हंस'ने लगी.
"थॅंक्स, दीदी!" मेने संगीता दीदी को दिल से धन्यवाद देते हुए कहा, "मुझे मालूम है. इस दूनीया की कोई भी बहन अप'ने भाई के साम'ने ऐसी नंगी नही होगी. लेकिन तुम तैयार हो गयी और तुम'ने कर के दिखाया. सिर्फ़ मेरे लिए! में हरदम तुम्हारा आभारी रहूँगा! थॅंक्स!!"
"अरे इस में थॅंक्स क्या कह'ना, सागर? उलटा मुझे अच्च्छा लगा के मेने तुम्हें खूस किया. तुम'ने मुझे दिन भर खूस रखा इस बात का थोड़ा बहुत अहसान में चुका सकी. तुम चाहे उतना सम'य ले लो. बिल'कुल बीना जीझक मुझे निहार लो. और अप'नी जिग्यासा पूरी कर लो."
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.
