28-10-2021, 05:52 PM
दो दिन बाद मैं और रजनीश जीवन से मिलने निकल पड़े.
मैं और रजनीश मन में कई सारी दुविधा लिए कॉलेज की तरफ चल पड़े. एक बार के लिए हमारा मन कहता हे भगवान वह जगत ही हो. पर जैसे ही मैं ज्योति के बारे में सोचती मेरी सोच ठहर जाती. दोनों भाई बहन एक दूसरे से प्यार करने लगे थे और परस्पर संभोग भी कर चुके थे.
मैं उन दोनों को इस रूप को कैसे स्वीकार करूंगी? इसी उधेड़बुन को मन में लिए हुए कुछ ही समय बाद हम हॉस्टल पहुंचे. जीवन और ज्योति हमारा इंतजार कर रहे थे. जीवन को देखते ही एक पल के लिए ऐसा लगा जैसे हमारा जगत वापस आ गया हो.
हमने जगत के माता-पिता से मुलाकात की थोड़ा सा कुरेदने पर उन्होंने हमारे सामने सच उजागर कर दिया. जगत उर्फ जीवन हमारा ही पुत्र था.
हे प्रभु हमें मार्ग दिखाइए मेरे और रजनीश की कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था. हमारा पुत्र हमारे सामने खड़ा था पर हम उसे अपने आलिंगन में नहीं ले सकते थे. ज्योति और जीवन भाई बहन थे. काश उन का मिलन न हुआ होता.
अंततः हमने फैसला कर लिया हमने ज्योति की अनुपस्थिति में यह बात खुलकर जीवन को बता दी. वह खुद भी आश्चर्यचकित था पर उसे यह जानना बहुत जरूरी था. उसके माता-पिता उसके सामने खड़े थे.
उसने हम दोनों के चरण छुए. मैंने और रजनीश ने उसे गले से लगा लिया हमारी आंखों से अश्रु धारा फूट पड़ी अपने कलेजे के टुकड़े को इस तरह अपने सीने से लगाने का सुख आज हमें 19 वर्ष बाद मिला था. जीवन जब मेरे गले लगा ऐसा लगा मेरे कलेजे का खालीपन भर गया हो. कलेजे की हूक शांत हो गयी थी.
हमने ज्योति से उसके रिश्ते पर कोई प्रश्न नहीं किया.
पर उस ने अपनी बाहें मेरे गले में डालते हुए प्यार से कहा "मम्मी जब आप ने हम दोनो बहन भाई को मियाँ बीवी के इस नये रिश्ते में कबूल कर ही लिया है, तो अब आप बताएँ कि आप अब मेरी मम्मी बनेगीं या फिर सास?।"
मैंने जीवन से कहा तुम मेरे पुत्र हो और ज्योति मेरी पुत्री. तुम अपनी बहन ज्योति से जैसे रिश्ते रखोगे हमारे साथ तुम्हारा वही रिश्ता कायम होगा.
उसने एक बार फिर मेरे चरण छुए और कहां "मेरे लिए मां और सासू मां में कोई अंतर नहीं है"
तब तक ज्योति अंदर आ चुकी थी उसमें भी जीवन के साथ मेरे चरण छुए.
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कुछ ही दिनों में हमने जीवन और ज्योति का विवाह कर दिया.
यह जानने के बाद की ज्योति उसकी अपनी सगी बहन है जीवन का प्यार ज्योति के प्रति और भी बढ़ता गया. उनके अंतरंग पलों में जीवन ज्योति को कैसे प्यार करता होगा यह मैंने उन दोनों पर ही छोड़ दिया. मेरे लिए तो वह हर रूप में मेरे पुत्र और पुत्री ही थे.
समाप्त.
मैं और रजनीश मन में कई सारी दुविधा लिए कॉलेज की तरफ चल पड़े. एक बार के लिए हमारा मन कहता हे भगवान वह जगत ही हो. पर जैसे ही मैं ज्योति के बारे में सोचती मेरी सोच ठहर जाती. दोनों भाई बहन एक दूसरे से प्यार करने लगे थे और परस्पर संभोग भी कर चुके थे.
मैं उन दोनों को इस रूप को कैसे स्वीकार करूंगी? इसी उधेड़बुन को मन में लिए हुए कुछ ही समय बाद हम हॉस्टल पहुंचे. जीवन और ज्योति हमारा इंतजार कर रहे थे. जीवन को देखते ही एक पल के लिए ऐसा लगा जैसे हमारा जगत वापस आ गया हो.
हमने जगत के माता-पिता से मुलाकात की थोड़ा सा कुरेदने पर उन्होंने हमारे सामने सच उजागर कर दिया. जगत उर्फ जीवन हमारा ही पुत्र था.
हे प्रभु हमें मार्ग दिखाइए मेरे और रजनीश की कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था. हमारा पुत्र हमारे सामने खड़ा था पर हम उसे अपने आलिंगन में नहीं ले सकते थे. ज्योति और जीवन भाई बहन थे. काश उन का मिलन न हुआ होता.
अंततः हमने फैसला कर लिया हमने ज्योति की अनुपस्थिति में यह बात खुलकर जीवन को बता दी. वह खुद भी आश्चर्यचकित था पर उसे यह जानना बहुत जरूरी था. उसके माता-पिता उसके सामने खड़े थे.
उसने हम दोनों के चरण छुए. मैंने और रजनीश ने उसे गले से लगा लिया हमारी आंखों से अश्रु धारा फूट पड़ी अपने कलेजे के टुकड़े को इस तरह अपने सीने से लगाने का सुख आज हमें 19 वर्ष बाद मिला था. जीवन जब मेरे गले लगा ऐसा लगा मेरे कलेजे का खालीपन भर गया हो. कलेजे की हूक शांत हो गयी थी.
हमने ज्योति से उसके रिश्ते पर कोई प्रश्न नहीं किया.
पर उस ने अपनी बाहें मेरे गले में डालते हुए प्यार से कहा "मम्मी जब आप ने हम दोनो बहन भाई को मियाँ बीवी के इस नये रिश्ते में कबूल कर ही लिया है, तो अब आप बताएँ कि आप अब मेरी मम्मी बनेगीं या फिर सास?।"
मैंने जीवन से कहा तुम मेरे पुत्र हो और ज्योति मेरी पुत्री. तुम अपनी बहन ज्योति से जैसे रिश्ते रखोगे हमारे साथ तुम्हारा वही रिश्ता कायम होगा.
उसने एक बार फिर मेरे चरण छुए और कहां "मेरे लिए मां और सासू मां में कोई अंतर नहीं है"
तब तक ज्योति अंदर आ चुकी थी उसमें भी जीवन के साथ मेरे चरण छुए.
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कुछ ही दिनों में हमने जीवन और ज्योति का विवाह कर दिया.
यह जानने के बाद की ज्योति उसकी अपनी सगी बहन है जीवन का प्यार ज्योति के प्रति और भी बढ़ता गया. उनके अंतरंग पलों में जीवन ज्योति को कैसे प्यार करता होगा यह मैंने उन दोनों पर ही छोड़ दिया. मेरे लिए तो वह हर रूप में मेरे पुत्र और पुत्री ही थे.
समाप्त.