28-10-2021, 04:42 PM
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(मैं रचना, ज्योति की माँ)
आज रजनीश की बाहों में आने के बाद मुझे एक बार फिर कुमायूं में हुआ हमारा पहला मिलन याद आ गया. रजनीश ने मेरे गले में पड़े मंगलसूत्र को देखा अरे तुम्हारे गले का वह लॉकेट कहां गया. मैंने उसे ज्योति को उसके जन्मदिन पर गिफ्ट कर दिया. वैसे भी वह हमें बार-बार पुराने जख्म याद दिलाता था.
"हां तुम्हारी बात तो सच है पर उस मासूम का चेहरा मेरी आंखों से आज भी नहीं भूलता. कैसे कुछ ही दिनों में सब कुछ बदल गया था"
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मैंने और रजनीश ने अपने प्रथम संभोग के बाद कई दिनों तक लगातार संभोग सुख लिया था. हम दोनों ही परिवार नियोजन या इससे संबंधित किसी उपाय के बारे में नहीं जानते थे.
इस लगातार संभोग से मैं गर्भवती हो गई. मेरी पढ़ाई अभी पूरी नहीं हुई थी अतः विवाह संभव नहीं था. मेरे पिता राम रतन को यदि इस बात की जानकारी होती तो घर में एक तूफान खड़ा होता. जब वो घर आने वाले होते मेरी मां मुझे मामा के घर भेज देती जो कुमाऊ से कुछ ही दूरी पर था. मेरे मामा और मामी की कोई औलाद नहीं थी.
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धीरे-धीरे 9 महीने बीत गए. मेरी मां को मेरे और रजनीश के संबंधों की पूरी जानकारी थी. मेरी डिलीवरी का वक्त नजदीक आ चुका था पिताजी का घर आने का संदेश आते ही उन्होंने एक बार मुझे मामा के घर भेज दिया. रजनीश पूरे समय मेरे साथ थे मैंने एक सुंदर पुत्र को जन्म दिया था उसका नाम हमने जगत रखा था. एक हफ्ते रहने के बाद रजनीश वहां से चले आए पर आते वक्त उन्होंने अपने गले में पड़ा हुआ लाकेट हमारे पुत्र के गले में डाल दिया.
समय तेजी से बीतने लगा हम दोनों मामा के यहां बीच-बीच में जाते और अपने जगत के साथ खेलते धीरे-धीरे वह 1 साल का हो गया.
अगले कुछ ही दिनों में मैंने ग्रेजुएशन पूरा कर लिया और रजनीश से विवाह कर लिया. मैं और रजनीश जगत को लेने के लिए मामा के घर जा रहे थे तभी केदारनाथ वाली घटना हो गयी.
आकाश में बादल फटा था प्रकृति ने अपना रौद्र रूप दिखाया था. बादल फटने से नदी के आसपास के गांव बह गए मेरे मामा और हमारा प्यारा जगत प्रकृति के कहर के आयी उस आपदा में जाने कहां गुम हो गया. हम अपने मामा के घर से कुल 10 - 15 किलोमीटर ही दूर थे. पर उनके घर तक पहुंचने कि अब कोई संभावना नहीं बची थी. मैं और रजनीश तड़प रहे थे और निष्ठुर नियति को कोस रहे थे.
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मेरा ध्यान संभोग से बट गया था. रजनीश के लिंग को अपनी जांघों के बीच जगह तलाशते देखकर मैं वास्तविकता में लौट आयी. मैंने ज्योति को याद किया निश्चय ही वह आज संभोग सुख ले रही होगी. मेरी उत्तेजना वापस लौट आयी और मैं रजनीश के साथ संभोगरत हो गई.
(मैं रचना, ज्योति की माँ)
आज रजनीश की बाहों में आने के बाद मुझे एक बार फिर कुमायूं में हुआ हमारा पहला मिलन याद आ गया. रजनीश ने मेरे गले में पड़े मंगलसूत्र को देखा अरे तुम्हारे गले का वह लॉकेट कहां गया. मैंने उसे ज्योति को उसके जन्मदिन पर गिफ्ट कर दिया. वैसे भी वह हमें बार-बार पुराने जख्म याद दिलाता था.
"हां तुम्हारी बात तो सच है पर उस मासूम का चेहरा मेरी आंखों से आज भी नहीं भूलता. कैसे कुछ ही दिनों में सब कुछ बदल गया था"
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मैंने और रजनीश ने अपने प्रथम संभोग के बाद कई दिनों तक लगातार संभोग सुख लिया था. हम दोनों ही परिवार नियोजन या इससे संबंधित किसी उपाय के बारे में नहीं जानते थे.
इस लगातार संभोग से मैं गर्भवती हो गई. मेरी पढ़ाई अभी पूरी नहीं हुई थी अतः विवाह संभव नहीं था. मेरे पिता राम रतन को यदि इस बात की जानकारी होती तो घर में एक तूफान खड़ा होता. जब वो घर आने वाले होते मेरी मां मुझे मामा के घर भेज देती जो कुमाऊ से कुछ ही दूरी पर था. मेरे मामा और मामी की कोई औलाद नहीं थी.
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धीरे-धीरे 9 महीने बीत गए. मेरी मां को मेरे और रजनीश के संबंधों की पूरी जानकारी थी. मेरी डिलीवरी का वक्त नजदीक आ चुका था पिताजी का घर आने का संदेश आते ही उन्होंने एक बार मुझे मामा के घर भेज दिया. रजनीश पूरे समय मेरे साथ थे मैंने एक सुंदर पुत्र को जन्म दिया था उसका नाम हमने जगत रखा था. एक हफ्ते रहने के बाद रजनीश वहां से चले आए पर आते वक्त उन्होंने अपने गले में पड़ा हुआ लाकेट हमारे पुत्र के गले में डाल दिया.
समय तेजी से बीतने लगा हम दोनों मामा के यहां बीच-बीच में जाते और अपने जगत के साथ खेलते धीरे-धीरे वह 1 साल का हो गया.
अगले कुछ ही दिनों में मैंने ग्रेजुएशन पूरा कर लिया और रजनीश से विवाह कर लिया. मैं और रजनीश जगत को लेने के लिए मामा के घर जा रहे थे तभी केदारनाथ वाली घटना हो गयी.
आकाश में बादल फटा था प्रकृति ने अपना रौद्र रूप दिखाया था. बादल फटने से नदी के आसपास के गांव बह गए मेरे मामा और हमारा प्यारा जगत प्रकृति के कहर के आयी उस आपदा में जाने कहां गुम हो गया. हम अपने मामा के घर से कुल 10 - 15 किलोमीटर ही दूर थे. पर उनके घर तक पहुंचने कि अब कोई संभावना नहीं बची थी. मैं और रजनीश तड़प रहे थे और निष्ठुर नियति को कोस रहे थे.
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मेरा ध्यान संभोग से बट गया था. रजनीश के लिंग को अपनी जांघों के बीच जगह तलाशते देखकर मैं वास्तविकता में लौट आयी. मैंने ज्योति को याद किया निश्चय ही वह आज संभोग सुख ले रही होगी. मेरी उत्तेजना वापस लौट आयी और मैं रजनीश के साथ संभोगरत हो गई.