28-10-2021, 04:38 PM
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(मनीष का घर)
(मैं जीवन)
मैंने अपने सपने में भी नहीं सोचा था की मुझे ज्योति जैसी सुंदर और सुशील प्रेमिका मिलेगी. मैं एक गरीब परिवार से आया हुआ लड़का था. मेरे माता पिता काफी गरीब थे उन्होंने मेरा लालन-पालन किया पर अपनी हैसियत के अनुसार ही.
भगवान ने मेरे लिए कुछ और ही सोच रखा था. जैसे जैसे मैं पढ़ता गया मेरी काबिलियत मुझे आगे लाती गयी. दसवीं कक्षा तक आते-आते मुझे कई स्कॉलरशिप मिलने लगी जिसकी बदौलत मैं इस सभ्रांत कॉलेज में आ चुका था.
ज्योति एक अप्सरा की तरह थी. वह मुझे पूरी तरह समझती थी और मैं उसे. हम दोनों के प्यार में वासना का स्थान नहीं था. परंतु जैसे-जैसे दिन बीत रहे थे ज्योति की काया अद्भुत रूप ले रही थी. समय के साथ उसमें कामुकता स्वतः ही फूट रही थी. सारे कॉलेज का ध्यान उसके स्तनों और नितंबों पर रहता मैं भी उनसे अछूता नहीं था.
उस दिन जब मैंने ज्योति को पहली बार चुंबन दिया था वह मेरे आलिंगन में आ गई थी. मेरे हाथ स्वतः उसकी पीठ पर होते हुए उसके मादक नितंबों तक पहुंच चुके थे. हम दोनों एक दूसरे से सटे हुए थे. उसके कोमल स्तनों का मेरे सीने पर स्पर्श और कठोर निप्पलों की चुभन मैं आज तक नहीं भूलता. जितना ही उस कोमलता को मैं महसूस करता मेरा राजकुमार (लिंग)उतना ही उत्तेजित होता.
आज इस वैलेंटाइन डे पर हम दोनों एक होने वाले थे. ज्योति ने आज लहंगा और चोली पहना हुआ था वह उसमें अत्यंत खूबसूरत लग रही थी. पार्टी शुरु हो चुकी थी. सामने बैठी हुई तीनों हसीनाएं एक से एक बढ़कर एक थी पर ज्योति उन सब में निराली थी. मनीष ने आज रेड वाइन मंगाई थी. हम सभी थोड़ी-थोड़ी रेड वाइन लेने लगे.
ज्योति ने भी अपने हाथों में रेड वाइन ली हुई थी. जैसे ही उसने रेड वाइन अपने मुख में लिया मुझे एक पल के लिए प्रतीत हुआ जैसे लाल रंग की रेड वाइन उसके गले से उतर रही हो और उतरते समय उसके गले से दिखाई पड़ रही थी. इतनी सुंदर और कोमल काया ज्योति की.
मैंने और ज्योति ने अपने दोस्तों का साथ देने के लिए कुछ घूंट रेड वाइन के पी लिए पर हम दोनों पर अलग ही नशा सवार था.
आज हमारा मिलन का दिन था कुछ देर की हंसी ठिठोली के पश्चात हम सभी अपने अपने कमरों में जाने लगे. मैं अपने कमरे में आ चुका था ज्योति अभी भी बाहर थी. कुछ ही देर में रश्मि और मनीषा ज्योति को लेकर मेरे कमरे में हंसते हुए आयीं और हम दोनों को ऑल द बेस्ट कहा तथा दरवाजा बंद कर दिया.
मैं ज्योति के चेहरे की तरफ देख रहा था और वह नजरें झुकाए खड़ी थी. हमारे पैर स्वतः ही आगे बढ़ते गए और कुछ ही देर में ज्योति मेरी बाहों में थी.
कमरे का बिस्तर करीने से सजा हुआ था ऐसा लगता था मैने और मनीष ने इसे सजाया था. बिस्तर पर फूल बिखरे हुए थे लाल रंग का सुनहरा तकिया उसकी खूबसूरती बढ़ा रहा था. जैसे-जैसे मैं ज्योति को छूता गया वह मेरी बाहों में पिघलती गई. अचानक ही कमरे की बत्ती गुल हो गई. बाहर से मनीष की आवाज आई. जीवन परेशान मत होना लाइट गई हुई है कुछ देर में आ जाएगी. मैं और ज्योति अब ज्यादा आरामदायक स्थिति में थे.
अंधेरा शर्म को हटा देता है हमारे कपड़े स्वतः ही मेरे शरीर से अलग होते गए. मैं ज्योति को लगातार चूमे जा रहा था. हमारे हाथ कभी ऊपर होते कभी साइड में वह सिर्फ हमारे वस्त्रों को बाहर निकालने के लिए अलग हो रहे थे. कुछ ही देर में हम दोनों पूर्णता नग्न हो चुके थे.
ज्योति के स्तन मेरे सीने से सटे हुए थे कुछ ही पलों में मैं और ज्योति संभोग की अवस्था मैं आ गए. अपने राजकुमार को उसकी मुनिया के मुख पर रखकर मैंने ज्योति के होठों का चुंबन लिया तथा अपने राजकुमार का दबाव बढ़ा दिया एक मीठी से दर्द के साथ ज्योति ने अपना कौमार्य खो दिया. उसी दौरान लाइट आ गई हम दोनों बत्ती बुझाना भूल गये थे. कमरे की चमकदार रोशनी में ज्योति का खूबसूरत चेहरा मुझे दिखाई पड़ गया. उसकी आंखों से आंसू थे.
अचानक ज्योति चौक उठी. उसके गले में पड़ी हुई चैन का पेंडेंट मेरे गले में पड़े हुए पेंडेंट से चिपक गया था. यह दोनों मिलकर एक दिल की आकृति बना रहे थे. यह पेंडेंट बचपन से मेरे गले में था जिसे मेरी मां ने काले धागे में डालकर पहनाया हुआ था. उसने मुझे यह हिदायत भी दी थी कि कभी इसे अपने शरीर से अलग मत करना.
हम दोनों पेंडेंट के मिलन से आश्चर्यचकित थे नियत ने यह कैसा संयोग बनाया था मैं और ज्योति दो अलग-अलग शहरों से आए हुए थे पर हमारे पेंडेंट एक दूसरे के पूरक थे. हकीकत तो यह भी थी कि मैं और ज्योति भी अब एक दूसरे के पूरक हो चुके थे. मेरे गले का पेंडेंट ज्योति के पेंडेंट से सटा हुआ था. हम दोनों एक दूसरे की तरफ मुस्कुराए और हमारी कमर में हलचल शुरू हो गयी.
ज्योति की आंखों का आंसू सूख चुका था और उस पर खुशी के आंसू ने अपना प्रभाव जमा लिया था कुछ ही देर में हम दोनों एक दूसरे को चूमते हुए स्खलित हो गए.
मैं इस संभोग के लिए कंडोम लेकर आया था पर पता नहीं न वह ज्योति को याद आया और ना मुझे. ज्योति की मुनिया मेरे प्रेम रस से भीग चुकी थी. मुनिया से निकला हुआ प्रथम मिलन का रक्त मेरे श्वेत धवल वीर्य से मिलकर अपनी लालिमा खो रहा था. ज्योति हांफ रही थी और मैं उसे प्यार से चूमे जा रहा था. हम दोनों के लॉकेट अभी भी सटे हुए थे.
(मनीष का घर)
(मैं जीवन)
मैंने अपने सपने में भी नहीं सोचा था की मुझे ज्योति जैसी सुंदर और सुशील प्रेमिका मिलेगी. मैं एक गरीब परिवार से आया हुआ लड़का था. मेरे माता पिता काफी गरीब थे उन्होंने मेरा लालन-पालन किया पर अपनी हैसियत के अनुसार ही.
भगवान ने मेरे लिए कुछ और ही सोच रखा था. जैसे जैसे मैं पढ़ता गया मेरी काबिलियत मुझे आगे लाती गयी. दसवीं कक्षा तक आते-आते मुझे कई स्कॉलरशिप मिलने लगी जिसकी बदौलत मैं इस सभ्रांत कॉलेज में आ चुका था.
ज्योति एक अप्सरा की तरह थी. वह मुझे पूरी तरह समझती थी और मैं उसे. हम दोनों के प्यार में वासना का स्थान नहीं था. परंतु जैसे-जैसे दिन बीत रहे थे ज्योति की काया अद्भुत रूप ले रही थी. समय के साथ उसमें कामुकता स्वतः ही फूट रही थी. सारे कॉलेज का ध्यान उसके स्तनों और नितंबों पर रहता मैं भी उनसे अछूता नहीं था.
उस दिन जब मैंने ज्योति को पहली बार चुंबन दिया था वह मेरे आलिंगन में आ गई थी. मेरे हाथ स्वतः उसकी पीठ पर होते हुए उसके मादक नितंबों तक पहुंच चुके थे. हम दोनों एक दूसरे से सटे हुए थे. उसके कोमल स्तनों का मेरे सीने पर स्पर्श और कठोर निप्पलों की चुभन मैं आज तक नहीं भूलता. जितना ही उस कोमलता को मैं महसूस करता मेरा राजकुमार (लिंग)उतना ही उत्तेजित होता.
आज इस वैलेंटाइन डे पर हम दोनों एक होने वाले थे. ज्योति ने आज लहंगा और चोली पहना हुआ था वह उसमें अत्यंत खूबसूरत लग रही थी. पार्टी शुरु हो चुकी थी. सामने बैठी हुई तीनों हसीनाएं एक से एक बढ़कर एक थी पर ज्योति उन सब में निराली थी. मनीष ने आज रेड वाइन मंगाई थी. हम सभी थोड़ी-थोड़ी रेड वाइन लेने लगे.
ज्योति ने भी अपने हाथों में रेड वाइन ली हुई थी. जैसे ही उसने रेड वाइन अपने मुख में लिया मुझे एक पल के लिए प्रतीत हुआ जैसे लाल रंग की रेड वाइन उसके गले से उतर रही हो और उतरते समय उसके गले से दिखाई पड़ रही थी. इतनी सुंदर और कोमल काया ज्योति की.
मैंने और ज्योति ने अपने दोस्तों का साथ देने के लिए कुछ घूंट रेड वाइन के पी लिए पर हम दोनों पर अलग ही नशा सवार था.
आज हमारा मिलन का दिन था कुछ देर की हंसी ठिठोली के पश्चात हम सभी अपने अपने कमरों में जाने लगे. मैं अपने कमरे में आ चुका था ज्योति अभी भी बाहर थी. कुछ ही देर में रश्मि और मनीषा ज्योति को लेकर मेरे कमरे में हंसते हुए आयीं और हम दोनों को ऑल द बेस्ट कहा तथा दरवाजा बंद कर दिया.
मैं ज्योति के चेहरे की तरफ देख रहा था और वह नजरें झुकाए खड़ी थी. हमारे पैर स्वतः ही आगे बढ़ते गए और कुछ ही देर में ज्योति मेरी बाहों में थी.
कमरे का बिस्तर करीने से सजा हुआ था ऐसा लगता था मैने और मनीष ने इसे सजाया था. बिस्तर पर फूल बिखरे हुए थे लाल रंग का सुनहरा तकिया उसकी खूबसूरती बढ़ा रहा था. जैसे-जैसे मैं ज्योति को छूता गया वह मेरी बाहों में पिघलती गई. अचानक ही कमरे की बत्ती गुल हो गई. बाहर से मनीष की आवाज आई. जीवन परेशान मत होना लाइट गई हुई है कुछ देर में आ जाएगी. मैं और ज्योति अब ज्यादा आरामदायक स्थिति में थे.
अंधेरा शर्म को हटा देता है हमारे कपड़े स्वतः ही मेरे शरीर से अलग होते गए. मैं ज्योति को लगातार चूमे जा रहा था. हमारे हाथ कभी ऊपर होते कभी साइड में वह सिर्फ हमारे वस्त्रों को बाहर निकालने के लिए अलग हो रहे थे. कुछ ही देर में हम दोनों पूर्णता नग्न हो चुके थे.
ज्योति के स्तन मेरे सीने से सटे हुए थे कुछ ही पलों में मैं और ज्योति संभोग की अवस्था मैं आ गए. अपने राजकुमार को उसकी मुनिया के मुख पर रखकर मैंने ज्योति के होठों का चुंबन लिया तथा अपने राजकुमार का दबाव बढ़ा दिया एक मीठी से दर्द के साथ ज्योति ने अपना कौमार्य खो दिया. उसी दौरान लाइट आ गई हम दोनों बत्ती बुझाना भूल गये थे. कमरे की चमकदार रोशनी में ज्योति का खूबसूरत चेहरा मुझे दिखाई पड़ गया. उसकी आंखों से आंसू थे.
अचानक ज्योति चौक उठी. उसके गले में पड़ी हुई चैन का पेंडेंट मेरे गले में पड़े हुए पेंडेंट से चिपक गया था. यह दोनों मिलकर एक दिल की आकृति बना रहे थे. यह पेंडेंट बचपन से मेरे गले में था जिसे मेरी मां ने काले धागे में डालकर पहनाया हुआ था. उसने मुझे यह हिदायत भी दी थी कि कभी इसे अपने शरीर से अलग मत करना.
हम दोनों पेंडेंट के मिलन से आश्चर्यचकित थे नियत ने यह कैसा संयोग बनाया था मैं और ज्योति दो अलग-अलग शहरों से आए हुए थे पर हमारे पेंडेंट एक दूसरे के पूरक थे. हकीकत तो यह भी थी कि मैं और ज्योति भी अब एक दूसरे के पूरक हो चुके थे. मेरे गले का पेंडेंट ज्योति के पेंडेंट से सटा हुआ था. हम दोनों एक दूसरे की तरफ मुस्कुराए और हमारी कमर में हलचल शुरू हो गयी.
ज्योति की आंखों का आंसू सूख चुका था और उस पर खुशी के आंसू ने अपना प्रभाव जमा लिया था कुछ ही देर में हम दोनों एक दूसरे को चूमते हुए स्खलित हो गए.
मैं इस संभोग के लिए कंडोम लेकर आया था पर पता नहीं न वह ज्योति को याद आया और ना मुझे. ज्योति की मुनिया मेरे प्रेम रस से भीग चुकी थी. मुनिया से निकला हुआ प्रथम मिलन का रक्त मेरे श्वेत धवल वीर्य से मिलकर अपनी लालिमा खो रहा था. ज्योति हांफ रही थी और मैं उसे प्यार से चूमे जा रहा था. हम दोनों के लॉकेट अभी भी सटे हुए थे.