28-10-2021, 04:36 PM
(मैं रचना, ज्योति की माँ)
आज मैंने अपनी बेटी को यौन सुख लेने की अनुमति दे दी थी. मेरी नजरों में अपने प्रेमी के साथ किया गया यह कृत्य कभी बुरा नहीं हो सकता. नियति ने हमारे यौनांग इसीलिए बनाएं हैं. प्रेम पूर्वक उनका उपयोग करना सर्वथा उचित है.
आज मेरी प्यारी ज्योति एक नारी की तरह सुख भोगने जा रही थी वह भी अपने प्रेमी के साथ. मुझे अगली सुबह का इंतजार था. ज्योति का पहला अनुभव मेरे लिए तसल्ली देता या प्रश्न चिन्ह यह तो वक्त ही बताता पर मैं भगवान से इस पावन मिलन के सुखमय होने की प्रार्थना कर रही थी.
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मुझे अपने कॉलेज के दिन याद आने लगे थे. ज्योति के पिता रजनीश से कॉलेज फंक्शन में हुई मुलाकात कॉफी हाउस तक जा पहुंची थी. मेरी सुंदरता ने उन्हें मेरी ओर आकर्षित कर लिया था. मैं अभी मुश्किल से 20 वर्ष की हुई थी तभी उनके प्रेम ने मुझे अपना कौमार्य खोने पर विवश कर दिया. वह दिन मुझे अभी भी याद है जब कुमाऊं में मेला लगा हुआ था. वह मेले के प्रभारी थे. मैं अपनी सहेलियों के साथ मेला देखने पहुंची हुई थी.
कुछ ही देर में कई सारे सिपाही भव्य व्यवस्था के साथ मेरी सहेलियों को मेंला घुमाने निकल गए और मैं रजनीश के साथ उनके ऑफिस में आ गयी. उनके ऑफिस में आराम करने के लिए एक बिस्तर भी लगा हुआ था. हम दोनों में आग बराबर लगी हुई थी. हमारे पास वक्त भी कम था. जब तक मेरी सहेलियां मेले में झूला झूल रही थीं मैंने भी ज्योति के पिता के साथ प्रेमझूला झूल लिया. मेरा पहला संभोग यादगार था.
संभोग के उपरांत वह मुझे लेकर बाहर आए और मेले में लगे एक विशेष दुकान से हाथी दांत के बने 2 पेंडेंट खरीदे जो एक दूसरे के पूरक थे. उन दोनों को साथ में रखने पर वह एक दिल के आकार में दिखाई पड़ते और अलग करते ही दो टुकड़ों में बट जाते. दोनों टुकड़े अलग होने के बावजूद उतने ही खूबसूरत लगते. पर जब वह जुड़ जाते हैं उनकी खूबसूरती अद्भुत हो जाती.
रजनीश ने लॉकेट का एक भाग अपने पास रख लिया और दूसरा मुझे दिया उन्होंने कहा
" रजनी, मैंने अपने दिल का आधा टुकड़ा तुम्हें दिया है. हम दोनों जल्दी ही एक होंगे"
मैंने उनसे दो वर्ष की अनुमति मांगी ताकि मेरी पढ़ाई पूरी हो सके. वह मान गए हम दोनों का प्रेम परवान चढ़ने लगा.
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अगले एक महीने में मैं और रजनीश दोनों ने जी भर कर संभोग सुख लिया. हमारी अगली मुलाकात में वह दो सोने की चेन भी ले आए थे. हमने अद्भुत लॉकेट को अपने अपने गले में डाल दिया. जब भी हम संभोग करते वह लॉकेट एक दूसरे से सट जाते थे. मुझे लगता था जैसे उसमें चुंबक का भी प्रयोग किया गया था.
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मैं लॉकेट की खूबसूरती में खोई हुई थी तभी दरवाजे पर घंटी बजी रजनीश आ चुके थे. मैं ज्योति के बारे में सोचती हुयी उनकी खातिरदारी में लग गयी. आज मेरा मन भी युवा हो चला था. मैं रजनी के पिता के साथ आज रात रंगीन करने के लिए उत्सुक थी.
आज मैंने अपनी बेटी को यौन सुख लेने की अनुमति दे दी थी. मेरी नजरों में अपने प्रेमी के साथ किया गया यह कृत्य कभी बुरा नहीं हो सकता. नियति ने हमारे यौनांग इसीलिए बनाएं हैं. प्रेम पूर्वक उनका उपयोग करना सर्वथा उचित है.
आज मेरी प्यारी ज्योति एक नारी की तरह सुख भोगने जा रही थी वह भी अपने प्रेमी के साथ. मुझे अगली सुबह का इंतजार था. ज्योति का पहला अनुभव मेरे लिए तसल्ली देता या प्रश्न चिन्ह यह तो वक्त ही बताता पर मैं भगवान से इस पावन मिलन के सुखमय होने की प्रार्थना कर रही थी.
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मुझे अपने कॉलेज के दिन याद आने लगे थे. ज्योति के पिता रजनीश से कॉलेज फंक्शन में हुई मुलाकात कॉफी हाउस तक जा पहुंची थी. मेरी सुंदरता ने उन्हें मेरी ओर आकर्षित कर लिया था. मैं अभी मुश्किल से 20 वर्ष की हुई थी तभी उनके प्रेम ने मुझे अपना कौमार्य खोने पर विवश कर दिया. वह दिन मुझे अभी भी याद है जब कुमाऊं में मेला लगा हुआ था. वह मेले के प्रभारी थे. मैं अपनी सहेलियों के साथ मेला देखने पहुंची हुई थी.
कुछ ही देर में कई सारे सिपाही भव्य व्यवस्था के साथ मेरी सहेलियों को मेंला घुमाने निकल गए और मैं रजनीश के साथ उनके ऑफिस में आ गयी. उनके ऑफिस में आराम करने के लिए एक बिस्तर भी लगा हुआ था. हम दोनों में आग बराबर लगी हुई थी. हमारे पास वक्त भी कम था. जब तक मेरी सहेलियां मेले में झूला झूल रही थीं मैंने भी ज्योति के पिता के साथ प्रेमझूला झूल लिया. मेरा पहला संभोग यादगार था.
संभोग के उपरांत वह मुझे लेकर बाहर आए और मेले में लगे एक विशेष दुकान से हाथी दांत के बने 2 पेंडेंट खरीदे जो एक दूसरे के पूरक थे. उन दोनों को साथ में रखने पर वह एक दिल के आकार में दिखाई पड़ते और अलग करते ही दो टुकड़ों में बट जाते. दोनों टुकड़े अलग होने के बावजूद उतने ही खूबसूरत लगते. पर जब वह जुड़ जाते हैं उनकी खूबसूरती अद्भुत हो जाती.
रजनीश ने लॉकेट का एक भाग अपने पास रख लिया और दूसरा मुझे दिया उन्होंने कहा
" रजनी, मैंने अपने दिल का आधा टुकड़ा तुम्हें दिया है. हम दोनों जल्दी ही एक होंगे"
मैंने उनसे दो वर्ष की अनुमति मांगी ताकि मेरी पढ़ाई पूरी हो सके. वह मान गए हम दोनों का प्रेम परवान चढ़ने लगा.
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अगले एक महीने में मैं और रजनीश दोनों ने जी भर कर संभोग सुख लिया. हमारी अगली मुलाकात में वह दो सोने की चेन भी ले आए थे. हमने अद्भुत लॉकेट को अपने अपने गले में डाल दिया. जब भी हम संभोग करते वह लॉकेट एक दूसरे से सट जाते थे. मुझे लगता था जैसे उसमें चुंबक का भी प्रयोग किया गया था.
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मैं लॉकेट की खूबसूरती में खोई हुई थी तभी दरवाजे पर घंटी बजी रजनीश आ चुके थे. मैं ज्योति के बारे में सोचती हुयी उनकी खातिरदारी में लग गयी. आज मेरा मन भी युवा हो चला था. मैं रजनी के पिता के साथ आज रात रंगीन करने के लिए उत्सुक थी.