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पुरानी हिन्दी की मशहूर कहनियाँ
कंचन ने शर्माते हुए कहा- धत्त रवि! मुझे तो बड़ी शर्म आ रही है।

मैंने कहा- क्यों ? इसमें शर्माना कैसा? तुम और जीजा जी तो ऐसा करते होंगे न? तेरे एक हाथ जहाँ हैं न उससे तो लगता है कि मज़े आ रहे हैं तुम्हें !

कंचन- हाय राम, बड़ा बेशर्म हो गया है तू रे बंगलौर में रह कर ! बड़ा देखता है यहाँ-वहाँ कि कहाँ हाथ हैं, कहाँ नहीं?

मैंने कंचन के कान को अपने मुँह के पास लाया और कहा- जानती हो कंचन? ऐसी फिल्म देख कर मुझे भी कुछ कुछ होने लगता है।

कंचन ने अपने होंठ मेरे होंठों के पास लगभग सटाते हुए कहा- क्या होने लगता है?

मैंने अपने लंड को घिसते हुए कहा- वही, जो तुझे हो रहा है ! मन करता है कि यहीं निकाल दूँ !

कंचन- सिनेमा हाल में निकालते हो क्या?

मैंने- कई बार निकाला है, आज तुम हो इसलिए रुक गया हूँ।

कंचन- आज यहाँ मत निकाल, बाद में निकाल लेना।

थोड़ी देर में फिल्म की नायिका अपना मुम्मा मसलवा रही थी, हम दोनों और गर्म हो गए तो मैंने कंचन के कान में अपने होंठ सटा कर कहा- देख कंचन, साली का मुम्मा क्या मस्त हैं ! नहीं?

कंचन- ऐसा तो सबका होता हैं।

मैंने- तुम्हारा भी ऐसा ही है क्या?

कंचन- और नहीं तो क्या?

मैंने- तेरा मुम्मा छूकर देखूँ क्या?

कंचन- हाँ, छू कर देख ले।

मैंने अपना दाहिना हाथ से उसका मुम्मा पकड़ लिया और दबाने लगा। उन्होंने अपना सर मेरे कंधे पर रख दिया और आराम से अपने मुम्में दबवाने लगी। मैंने धीरे धीरे अपना दाहिना हाथ उसके ब्लाउज के अन्दर डाल दिया, फिर ब्रा के अन्दर हाथ डाल कर उनके बड़े बड़े मुम्में को मसलने लगा, वो मस्त हुई जा रही थी।

मैं- अपनी ब्लाउज खोल दो ना ! तब मज़े से दबाऊँगा।

उसने कहा- यहाँ?

मैंने कहा- और नहीं तो क्या? साड़ी से ढके रहना, यहाँ कोई नहीं देखने वाला।

वो भी गर्म हो चुकी थी, उन्होंने ब्लाउज खोल दिया, लगे हाथ ब्रा भी खोल दिया और अपने नंगे मुम्मों को अपनी साड़ी से ढक लिया। मैंने मज़े ले लेकर नंगे मुम्मों को सिनेमा हाल में ही दबाना चालू कर दिया।

मैं जो चाहता था वो मुझे करने दे रही थी, मुझे पूरी आजादी दे रखी थी। मैंने अपने बाएं हाथ से उनके बाएं हाथ को पकड़ा और उनके हाथ को अपने लंड पर रख दिया और धीरे से कहा- देखो ना ! कितना खड़ा हो गया है। कंचन ने मेरे लंड को जींस के ऊपर से दबाना चालू कर दिया।

अब मैंने देख लिया कि कंचन पूरी तरह से गर्म है तो मैंने अपना हाथ उनके ब्लाउज से निकाला और उसके पेट पर ले जाकर नाभि को सहलाने लगा, धीरे धीरे मैंने अपने हाथ को नुकीला बनाया और नाभि के नीचे उसकी साड़ी के अन्दर डाल दिया। कंचन थोड़ी चौड़ी हो गई जिससे मुझे हाथ और नीचे ले जाने में सहूलियत हो सके। मैंने अपना हाथ और नीचे किया तो उसकी पेंटी मिल गई, मैंने उसकी पेंटी में हाथ डाला और उनके चूत पर हाथ ले गया।

ओह क्या चूत थी ! एकदम घने बाल ! पूरी तरह से चिपचिपी हो गई थी। मैं काफी देर तक उसकी चूत को सहलाता रहा और वो मेरे लंड को दबा रही थी। मैंने अपने दाहिने हाथ की एक उंगली उसकी चूत के अन्दर घुसा दी। वो पागल सी हो गई।

उन्होंने आसपास देखा तो कोई भी हमारे पास नहीं था, उन्होंने अपनी साड़ी को नीचे से उठाया और जांघ के ऊपर तक ले आई, फिर मेरे हाथ को साड़ी के ऊपर से हटा कर नीचे से खुले हुए रास्ते से लाकर अपनी चूत पर रख कर बोली- र वि, अब आराम से कर, जो करना है।

अब मैं उसकी चूत को आराम से मसल रहा था, उन्होंने अपनी पेंटी को नीचे सरका दिया था। मैंने उसकी चूत में उंगली डालनी शुरू की तो उसने अपनी जांघें और चौड़ी कर ली।

उन्होंने मेरे कान में कहा- रवि तू भी अपनी जींस की पेंट खोल ना, मैं भी तेरा सहलाऊँ।

मैंने जींस की ज़िप खोल दी, लंड डण्डे की तरह खड़ा था, कंचन ने बिना किसी हिचक के मेरे लंड को पकड़ा और सहलाने लगी।मैं भी उसकी चूत में अपनी उंगली डाल कर अन्दर-बाहर करने लगा। वो सिसकारी भर रही थी। मेरा लंड भी एकदम चिपचिपा हो गया था।

मैंने कहा- कंचन, अब बर्दाश्त नहीं होता. अब मुझे मुठ मार कर माल निकालना ही पड़ेगा।

कंचन- रवि आज मैं मार देती हूँ तेरी मुठ ! मुझसे मुठ मरवाएगा?

मैंने कहा- तुम्हें आता है लंड की मुठ मारना?

कंचन- मुझे क्या नहीं आता? तेरे जीजा जी का लगभग हर रात को मुठ मारती हूँ। सिर्फ हाथ से ही नही… किसी और से भी..

मैंने कहा- किसी और से कैसे?

कंचन- तुझे नहीं पता कि लंड का मुठ मारने में हाथ के अलावा और किस चीज का इस्तेमाल होता है?

मैंने कहा- पता है मुझे ! मुंह से ना?

कंचन- रवि . तुझे तो सब पता है।

मैंने कहा- तुम जीजा जी का लंड अपने मुंह में लेकर चूसती हो?

कंचन- हाँ रे र वि, बड़ा मजा आता है मुझे और उनको !

मैंने कहा- तुम जीजा जी का माल भी पीती हो?

कंचन- बहुत बार ! एकदम नमकीन मक्खन की तरह लगता है।

मैंने- तुम तो बहुत एक्सपर्ट हो, मेरी भी मुठ मार दो आज अपने हाथों से ही सही !
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



thanks
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Pahli bar bahan k sath picnic - by neerathemall - 14-02-2019, 03:18 AM
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RE: पुरानी हिन्दी की मशहूर कहनियाँ - by neerathemall - 26-04-2019, 12:34 AM
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