21-10-2021, 02:33 AM
(This post was last modified: 21-10-2021, 02:36 AM by babasandy. Edited 1 time in total. Edited 1 time in total.)
इंस्पेक्टर हरिलाल ने मेरी प्रियंका दीदी को अपनी खोली के अंदर ले लिया और अपनी खोली का दरवाजा मेरे सामने ही बंद कर दिया मेरे मुंह पर... कुछ देर तक मैं वहां पर हैरान-परेशान खड़ा रहा.. मुझे तुम कुछ समझ नहीं आ रहा था कि क्या हो रहा है मेरे साथ.... आखिर यह सब कुछ मेरे साथ ही क्यों हो रहा है...
खोली के अंदर से मेरी प्रियंका दीदी की कामुक सिसकियां आने लगी थी.... मैंने वहां दरवाजे पर खड़े रहना ठीक नहीं समझा... मुझे सच में बहुत बुरा लग रहा था... अपनी सगी बहन को एक ठरकी सिक्युरिटी इंस्पेक्टर की खोली के अंदर भेजने के बाद....
मुझे अच्छी तरह से पता था कि अंदर खोली में वह मेरी बहन के साथ क्या कर रहा होगा... लेकिन मेरी और मेरे परिवार की ऐसी मजबूरी थी कि हम कुछ भी नहीं कर सकते थे... यह सब कुछ इतना आसान नहीं था मेरे लिए..
मैं अपने बोझिल थके हुए कदमों के साथ निराशा का भाव अपने चेहरे पर लिए हुए उस खोली के दरवाजे से पीछे की तरफ जाने लगा... जहां पर मेरा दोस्त बिल्लू अपनी ऑटो में बैठा हुआ मेरी तरफ देख रहा था..
उसके पास पहुंच कर मैंने उससे कहा..(उसको ₹200 देते हुए)..
मैं: तुम अब अपने घर जा सकते हो... कल सुबह मैं तुमको फोन करूंगा तो आ जाना फिर से..
बिल्लू : क्या बात कर रहा है यार... क्या वह थानेदार रात भर तेरी प्रियंका दीदी को..... साला इतना स्टेमिना होगा उसके अंदर..
( उसके चेहरे पर एक कुटिल मुस्कान थी)
मैं: देख बिल्लू... तु मेरे सबसे अच्छा दोस्त है... अगर तूने यह बात गांव में किसी को भी बताई तो हमारे घर की इज्जत खाक में मिल जाएगी... हम किसी को भी मुंह दिखाने के लायक नहीं रह जाएंगे... मुझसे वादा कर तू गांव में जाने के बाद यह बात किसी को भी नहीं बताएगा...
बिल्लू: तू मेरी फिक्र मत कर यार... मैं किसी को कुछ नहीं बताऊंगा... तेरे लिए तो अपनी जान भी हाजिर है... लेकिन तेरी प्रियंका दीदी का क्या होगा... साला थानेदार तो देखने में बहुत बड़ा हरामी मुसंडा लग रहा है... तेरी प्रियंका दीदी का खून खच्चर ना कर दे....
बोलते हुए उसका लहजा बेहद कामुक हो गया था..
वह मेरी प्रियंका दीदी को अभी भी एक कुंवारी कन्या समझ रहा था...
मैं: ठीक है अब तू जा... मैं सुबह मैं तुझे कॉल करूंगा..
उसने अपने ऑटो स्टार्ट की और जाने से पहले मुझसे बोला...
सबसे अच्छा दोस्त हूं तेरा... मुझे भी कभी मौका देना अपनी प्रियंका दीदी के साथ...
और फिर वह वहां से निकल गया....
सर्दी के मौसम में और सुनसान सड़क पर मैं वहीं खड़ा रह गया और उसकी कही हुई बातों के बारे में सोचने लगा... मेरा सर घूमने लगा था... मेरी प्रियंका दीदी अंदर इंस्पेक्टर हरिलाल के साथ ना जाने क्या कर रही होगी सोच सोच कर मुझे चक्कर आने लगे थे...
अचानक इंस्पेक्टर साहब की खोली का दरवाजा खुला... उन्होंने ही दरवाजा खोला था.. उन्होंने इशारा करके मुझे अपने पास बुलाया...
जब मैं उनके पास गया तो मैंने देखा इंस्पेक्टर साहब सिर्फ अपनी लुंगी में खड़े थे... उनकी चौड़ी छाती और मजबूत भुजाएं देख कर मैं अचंभित हो रहा था.... सीने पर काले काले बाल... थोड़ा सा निकला हुआ पेट... घनी काली रौबदार मूंछ देखकर मेरी सिट्टी पिट्टी गुम हो गई थी...
इंस्पेक्टर हरिलाल: सैंडी एक काम कर... यहां पास में ही एक मेडिकल शॉप की दुकान है... वहां से तू एक मैनफोर्स कंडोम 8 इंच साइज का और साथ में वियाग्रा की चार गोलियां लेकर आना... समझ गया ना..
मैं: जी सर...
इंस्पेक्टर हरिलाल: तुझे बुरा तो नहीं लग रहा है...
मैं: नहीं सर...
थानेदार साहब( मुझे पांच सौ का नोट देते हुए): जा जल्दी लेकर आ... वरना कांड हो जाएगा तेरी बहन के साथ..
मैं उनके हाथ से नोट लेकर भागता हुआ मेडिकल शॉप की तरफ गया.. और वहां से कंडोम और वियाग्रा लेकर किसी तरह दौड़ता भागता इंस्पेक्टर हरिलाल की खोली के पास पहुंचा...
मैंने उनकी खोली का दरवाजा खटखटाया...
कौन है माधर्चोद... अंदर से इंस्पेक्टर हरिलाल की कड़क आवाज सुनाई दी मुझे..
मैं: सर मैं हूं... सैंडी... आपने मुझे दवाई लेने के लिए भेजा था ना..
इंस्पेक्टर हरिलाल: रुक आता हूं अभी...
थानेदार साहब ने दरवाजा खोला अपनी खोली का... वह बिल्कुल नंगे खड़े थे .... उनकी टांगों के बीच में उनका खड़ा 8 इंच का खूब मोटा मुसल देख कर मुझे हैरानी होने लगी..... मुझे हैरानी इस बात की नहीं थी कि उनका मुंह से 8 इंच लंबा और मोटा है... बल्कि वह पूरी तरह से लाल था... उस पर लाल लिपस्टिक के निशान बने हुए थे.... जाहिर है वह मेरी प्रियंका दीदी के होठों के निशान थे..
चूस चूस कर मेरी मेरी प्रियंका दीदी ने अपने होठों की सारी लाल लिपस्टिक थानेदार साहब के 8 इंच के मुसल लोड़े के ऊपर उतार दी थी... जो मेरी आंखो के सामने लहरा रहा था..
इंस्पेक्टर हरिलाल: क्या देख रहा है बहन चोद... तेरी बहन ने चूस चूस कर लाल कर दिया है मेरे काले लोड़े को....
मैंने अपनी नजर नीचे की तरफ झुका ली और कुछ नहीं बोला..
इंस्पेक्टर हरिलाल: मेरी दवाई और कंडोम लाया है कि नहीं माधर्चोद...
मैं: जी सर लाया हूं...
बोलकर मैंने दवाई और कंडोम का पैकेट उनकी तरफ बढ़ा दिया...
थानेदार साहब ने मेरे हाथ से ले लिया और मेरे चेहरे पर अपनी खोली का दरवाजा बंद करने वाले थे ही मेरी प्रियंका दीदी: थानेदार साहब... मेरे भाई को भी अंदर ही बुला लीजिए ना... सर्दी के मौसम में रात भर बाहर कैसे खड़ा रहेगा...
इंस्पेक्टर हरिलाल: बहन की लोड़ी... एक बार फिर से सोच ले... तेरा सगा भाई है ... रात में मुझे कोई ड्रामा नहीं चाहिए... अंदर आने के बाद तेरे भाई अब तूने कोई ड्रामा किया तुम मुझसे बुरा कोई नहीं होगा..
मेरी प्रियंका दीदी: मैं वादा करती हूं थानेदार जी... मेरे भाई को अंदर ले लीजिए... वह कुछ भी नहीं करेगा ..चुपचाप सो जाएगा नीचे..
इंस्पेक्टर हरिलाल: चल भोंसड़ी के... तू भी अंदर आ जा...
मेरा हाथ पकड़ कर इंस्पेक्टर साहब ने मुझे अपनी खोली के अंदर खींच लिया... मुझे राहत का अहसास हुआ क्योंकि बाहर बहुत सर्दी थी... और कमरे के अंदर गर्मी थी..... बिना हीटर के...
दरअसल कमरे के अंदर एक चौकी पर मेरी प्रियंका दीदी नंगी पड़ी हुई थी... उनकी लहंगा चोली उस चौकी के नीचे पड़ी हुई थी.. ब्रा पेंटी कहां पर है उसका तो नामोनिशान ही नहीं था...
.. मेरी बहन की आंखों में कामुक मदहोशी थी.... मुझे देख कर भी मेरी बहन पर कोई असर नहीं हुआ था वह तो उसी अंदाज में अपनी टांगे फैलाए हुए लेटी हुई थी.
मेरी प्रियंका दीदी की पतली पतली दोनों टांगों के बीच उनकी कसी हुई मक्खन जैसी नाजुक गुलाबी चूत के ऊपर छोटे-छोटे काले काले बाल उग आए थे... ऐसा लग रहा था मेरी दीदी ने कुछ दिनों से अपनी साफ सफाई नहीं की थी... पतली कमर... अनार जैसी तनी हुई बड़ी-बड़ी चूचियां... खड़े-खड़े लाल निपल्स.... माथे पर बिंदी... होठों पर प्यास.... मेरी प्रियंका दीदी के होठों की लाली लिपस्टिक गायब हो चुकी थी... जो अब थानेदार साहब के मुसल पर लगी हुई थी... मैं पूरा माजरा समझ गया था..
थानेदार साहब ने अपने अलमीरा खोलकर दो कंबल निकाले...
अपनी चौकी के नीचे उन्होंने एक कंबल बिछा दिया और मुझे लेटने के लिए इशारा कर दिया.... मैं चुपचाप उस कंबल के ऊपर लेट गया... थानेदार साहब ने दूसरा कंबल मेरे ऊपर डाल दिया... और बोले..
हरिलाल: चुपचाप सो जा ... बहुत ठंड है बाहर... मैं तेरी बहन के साथ थोड़ा बहुत प्यार करूंगा.... अगर बीच में कुछ नाटक किया तो रात भर बाहर सड़क पर ठंड में सोना पड़ेगा तुझे..
मैं: नहीं सर... मैं कोई नाटक नहीं करूंगा... मैं सो जाता हूं.
ऐसा बोलकर मैंने दूसरे कंबल से अपने आप को पूरी तरह ढक लिया था.... मुझे वाकई बेहद सर्दी लग रही थी... कमरे के अंदर आने के बाद और कंबल के नीचे सोने के बाद मुझे थोड़ी बहुत राहत का अहसास होने लगा था... और मुझे नींद आने लगी.... लेकिन नींद आने से पहले ही मेरी आंखों की नींद उड़ गई... मेरी प्रियंका दीदी की मादक सिसकियां सुनकर..
मेरी प्रियंका दीदी: हाय थानेदार साहब... रुक जाएंगे ना... मेरे भाई को तो कम से कम सो जाने दीजिए ..."उईई माँ!! अरे हाय... मर गई..
इंस्पेक्टर हरिलाल: चुप कर साली... मुझे करने दे जो मेरा मन है... तेरा भाई तुझे इसीलिए तो लाया है यहां पर...
मेरी प्रियंका दीदी: हाय मर गई... दैया रे दैया... आपका बहुत बड़ा है.. दया कीजिए हम पर... धीरे... हाय मम्मी रे...
दरअसल थानेदार साहब मुझे सोता हुआ समझकर मेरी दीदी के ऊपर सवार हो गए थे और अपना काला लंबा मुसल मेरी बहन के गुलाबी छेद के ऊपर टीका कर ऊपर से दबाव बना रहे थे..
ना नूकुर करते हुए नखरे दिखाते हुए मेरी प्रियंका दीदी भी अपनी गांड उठा कर उस मुसल को अपने अंदर लेने का प्रयास कर रही थी...
मैंने कंबल को थोड़ा सा अपने चेहरे से हटा कर चौकी के ऊपर अपनी गर्दन उठाकर देखा तो हतप्रभ रह गया..
मेरी प्रियंका दीदी थानेदार साहब को अपनी बाहों में लपेट के उनको अपने छेद पर आक्रमण करने की दावत दे रही थी... और थानेदार साहब ने भी वही किया... एक झटके में ही उन्होंने की ऐसा जोर का ठाप मारा कि उसका आधा लंड मेरी प्रियंका दीदी की चुत मे घुस गया...
मेरी प्रियंका दीदी: "उइइइ माँ मै मरी!" हाय दैया थानेदार साहब... बड़े जालिम हो आप...
इंस्पेक्टर हरिलाल: बहन की लोड़ी... जालिम मैं हूं? साली रंडी तू तो मर्डर भी करती है... बता तूने जुनेद को कैसे मारा?
मेरी प्रियंका दीदी: "उईई माँ!! अरे ज़ालिम क्या कर कर रहा है? थोड़ा धीरे से कर" कहती ही रह गयी और वह इंजन के पिस्टन की तरह मेरी बहन की चूत का ढोल पीटने की शुरुआत करने की तैयारी करने लगे..
इंस्पेक्टर हरिलाल: तमीज से बात कर रंडी... साली ....
कमरे में मद्धम लाइट जल रही थी.. उन दोनों को तो बिल्कुल भी एहसास नहीं था कि मैं अपना सर अपने कंबल से बाहर निकाल कर चौकी के ऊपर झांक रहा हूं... वैसे भी उन दोनों को मेरी परवाह नहीं थी...
थानेदार साहब का लंड बहुत बड़ा था और कुछ मेरी प्रियंका दीदी की चुत बहुत सिकुड़ी थी... इसलिये उनका लंड अन्दर जाने के बज़ाय वहीं अटक कर रह गया...
थानेदार साहब ने तुरन्त ही पास रखी घी की कटोरी से कुछ घी निकाला और अपने लंड पर घी चुपड़ कर तुरन्त फिर से लंड को चूत पर रख कर धक्का मारा. इस बार लंड तो अन्दर घुस गया पर मेरी बहन के मुंह से जोरो कि चीख निकल पड़ी,
"आह्ह्ह मै मरी!! हाय ज़ालिम तेरा लंड है या बांस का खुंटा!"
इंस्पेक्टर हरिलाल ने मेरी प्रियंका दीदी की तड़पती हुई सिसकियों का कोई भी परवाह नहीं किया... और वह ताबड़तोड़ झटके देने लगे..
मेरी प्रियंका दीदी: हाय राजा मर गयी! उइइइइ माँ! थोड़ा धीमे करो ना!" थानेदार जी... मर गई रे मैया...
थानेदार साहब अपनी पूरी ताकत से मेरी बहन के अंदर बाहर होने लगे थे.. उन्हें बिल्कुल भी परवाह नहीं थी कि मैं यहीं पर हूं..
मेरी प्रियंका दीदी भी अपनी छोटी गांड उठा उठा उनका साथ दे रही थी..
खोली के अंदर से मेरी प्रियंका दीदी की कामुक सिसकियां आने लगी थी.... मैंने वहां दरवाजे पर खड़े रहना ठीक नहीं समझा... मुझे सच में बहुत बुरा लग रहा था... अपनी सगी बहन को एक ठरकी सिक्युरिटी इंस्पेक्टर की खोली के अंदर भेजने के बाद....
मुझे अच्छी तरह से पता था कि अंदर खोली में वह मेरी बहन के साथ क्या कर रहा होगा... लेकिन मेरी और मेरे परिवार की ऐसी मजबूरी थी कि हम कुछ भी नहीं कर सकते थे... यह सब कुछ इतना आसान नहीं था मेरे लिए..
मैं अपने बोझिल थके हुए कदमों के साथ निराशा का भाव अपने चेहरे पर लिए हुए उस खोली के दरवाजे से पीछे की तरफ जाने लगा... जहां पर मेरा दोस्त बिल्लू अपनी ऑटो में बैठा हुआ मेरी तरफ देख रहा था..
उसके पास पहुंच कर मैंने उससे कहा..(उसको ₹200 देते हुए)..
मैं: तुम अब अपने घर जा सकते हो... कल सुबह मैं तुमको फोन करूंगा तो आ जाना फिर से..
बिल्लू : क्या बात कर रहा है यार... क्या वह थानेदार रात भर तेरी प्रियंका दीदी को..... साला इतना स्टेमिना होगा उसके अंदर..
( उसके चेहरे पर एक कुटिल मुस्कान थी)
मैं: देख बिल्लू... तु मेरे सबसे अच्छा दोस्त है... अगर तूने यह बात गांव में किसी को भी बताई तो हमारे घर की इज्जत खाक में मिल जाएगी... हम किसी को भी मुंह दिखाने के लायक नहीं रह जाएंगे... मुझसे वादा कर तू गांव में जाने के बाद यह बात किसी को भी नहीं बताएगा...
बिल्लू: तू मेरी फिक्र मत कर यार... मैं किसी को कुछ नहीं बताऊंगा... तेरे लिए तो अपनी जान भी हाजिर है... लेकिन तेरी प्रियंका दीदी का क्या होगा... साला थानेदार तो देखने में बहुत बड़ा हरामी मुसंडा लग रहा है... तेरी प्रियंका दीदी का खून खच्चर ना कर दे....
बोलते हुए उसका लहजा बेहद कामुक हो गया था..
वह मेरी प्रियंका दीदी को अभी भी एक कुंवारी कन्या समझ रहा था...
मैं: ठीक है अब तू जा... मैं सुबह मैं तुझे कॉल करूंगा..
उसने अपने ऑटो स्टार्ट की और जाने से पहले मुझसे बोला...
सबसे अच्छा दोस्त हूं तेरा... मुझे भी कभी मौका देना अपनी प्रियंका दीदी के साथ...
और फिर वह वहां से निकल गया....
सर्दी के मौसम में और सुनसान सड़क पर मैं वहीं खड़ा रह गया और उसकी कही हुई बातों के बारे में सोचने लगा... मेरा सर घूमने लगा था... मेरी प्रियंका दीदी अंदर इंस्पेक्टर हरिलाल के साथ ना जाने क्या कर रही होगी सोच सोच कर मुझे चक्कर आने लगे थे...
अचानक इंस्पेक्टर साहब की खोली का दरवाजा खुला... उन्होंने ही दरवाजा खोला था.. उन्होंने इशारा करके मुझे अपने पास बुलाया...
जब मैं उनके पास गया तो मैंने देखा इंस्पेक्टर साहब सिर्फ अपनी लुंगी में खड़े थे... उनकी चौड़ी छाती और मजबूत भुजाएं देख कर मैं अचंभित हो रहा था.... सीने पर काले काले बाल... थोड़ा सा निकला हुआ पेट... घनी काली रौबदार मूंछ देखकर मेरी सिट्टी पिट्टी गुम हो गई थी...
इंस्पेक्टर हरिलाल: सैंडी एक काम कर... यहां पास में ही एक मेडिकल शॉप की दुकान है... वहां से तू एक मैनफोर्स कंडोम 8 इंच साइज का और साथ में वियाग्रा की चार गोलियां लेकर आना... समझ गया ना..
मैं: जी सर...
इंस्पेक्टर हरिलाल: तुझे बुरा तो नहीं लग रहा है...
मैं: नहीं सर...
थानेदार साहब( मुझे पांच सौ का नोट देते हुए): जा जल्दी लेकर आ... वरना कांड हो जाएगा तेरी बहन के साथ..
मैं उनके हाथ से नोट लेकर भागता हुआ मेडिकल शॉप की तरफ गया.. और वहां से कंडोम और वियाग्रा लेकर किसी तरह दौड़ता भागता इंस्पेक्टर हरिलाल की खोली के पास पहुंचा...
मैंने उनकी खोली का दरवाजा खटखटाया...
कौन है माधर्चोद... अंदर से इंस्पेक्टर हरिलाल की कड़क आवाज सुनाई दी मुझे..
मैं: सर मैं हूं... सैंडी... आपने मुझे दवाई लेने के लिए भेजा था ना..
इंस्पेक्टर हरिलाल: रुक आता हूं अभी...
थानेदार साहब ने दरवाजा खोला अपनी खोली का... वह बिल्कुल नंगे खड़े थे .... उनकी टांगों के बीच में उनका खड़ा 8 इंच का खूब मोटा मुसल देख कर मुझे हैरानी होने लगी..... मुझे हैरानी इस बात की नहीं थी कि उनका मुंह से 8 इंच लंबा और मोटा है... बल्कि वह पूरी तरह से लाल था... उस पर लाल लिपस्टिक के निशान बने हुए थे.... जाहिर है वह मेरी प्रियंका दीदी के होठों के निशान थे..
चूस चूस कर मेरी मेरी प्रियंका दीदी ने अपने होठों की सारी लाल लिपस्टिक थानेदार साहब के 8 इंच के मुसल लोड़े के ऊपर उतार दी थी... जो मेरी आंखो के सामने लहरा रहा था..
इंस्पेक्टर हरिलाल: क्या देख रहा है बहन चोद... तेरी बहन ने चूस चूस कर लाल कर दिया है मेरे काले लोड़े को....
मैंने अपनी नजर नीचे की तरफ झुका ली और कुछ नहीं बोला..
इंस्पेक्टर हरिलाल: मेरी दवाई और कंडोम लाया है कि नहीं माधर्चोद...
मैं: जी सर लाया हूं...
बोलकर मैंने दवाई और कंडोम का पैकेट उनकी तरफ बढ़ा दिया...
थानेदार साहब ने मेरे हाथ से ले लिया और मेरे चेहरे पर अपनी खोली का दरवाजा बंद करने वाले थे ही मेरी प्रियंका दीदी: थानेदार साहब... मेरे भाई को भी अंदर ही बुला लीजिए ना... सर्दी के मौसम में रात भर बाहर कैसे खड़ा रहेगा...
इंस्पेक्टर हरिलाल: बहन की लोड़ी... एक बार फिर से सोच ले... तेरा सगा भाई है ... रात में मुझे कोई ड्रामा नहीं चाहिए... अंदर आने के बाद तेरे भाई अब तूने कोई ड्रामा किया तुम मुझसे बुरा कोई नहीं होगा..
मेरी प्रियंका दीदी: मैं वादा करती हूं थानेदार जी... मेरे भाई को अंदर ले लीजिए... वह कुछ भी नहीं करेगा ..चुपचाप सो जाएगा नीचे..
इंस्पेक्टर हरिलाल: चल भोंसड़ी के... तू भी अंदर आ जा...
मेरा हाथ पकड़ कर इंस्पेक्टर साहब ने मुझे अपनी खोली के अंदर खींच लिया... मुझे राहत का अहसास हुआ क्योंकि बाहर बहुत सर्दी थी... और कमरे के अंदर गर्मी थी..... बिना हीटर के...
दरअसल कमरे के अंदर एक चौकी पर मेरी प्रियंका दीदी नंगी पड़ी हुई थी... उनकी लहंगा चोली उस चौकी के नीचे पड़ी हुई थी.. ब्रा पेंटी कहां पर है उसका तो नामोनिशान ही नहीं था...
.. मेरी बहन की आंखों में कामुक मदहोशी थी.... मुझे देख कर भी मेरी बहन पर कोई असर नहीं हुआ था वह तो उसी अंदाज में अपनी टांगे फैलाए हुए लेटी हुई थी.
मेरी प्रियंका दीदी की पतली पतली दोनों टांगों के बीच उनकी कसी हुई मक्खन जैसी नाजुक गुलाबी चूत के ऊपर छोटे-छोटे काले काले बाल उग आए थे... ऐसा लग रहा था मेरी दीदी ने कुछ दिनों से अपनी साफ सफाई नहीं की थी... पतली कमर... अनार जैसी तनी हुई बड़ी-बड़ी चूचियां... खड़े-खड़े लाल निपल्स.... माथे पर बिंदी... होठों पर प्यास.... मेरी प्रियंका दीदी के होठों की लाली लिपस्टिक गायब हो चुकी थी... जो अब थानेदार साहब के मुसल पर लगी हुई थी... मैं पूरा माजरा समझ गया था..
थानेदार साहब ने अपने अलमीरा खोलकर दो कंबल निकाले...
अपनी चौकी के नीचे उन्होंने एक कंबल बिछा दिया और मुझे लेटने के लिए इशारा कर दिया.... मैं चुपचाप उस कंबल के ऊपर लेट गया... थानेदार साहब ने दूसरा कंबल मेरे ऊपर डाल दिया... और बोले..
हरिलाल: चुपचाप सो जा ... बहुत ठंड है बाहर... मैं तेरी बहन के साथ थोड़ा बहुत प्यार करूंगा.... अगर बीच में कुछ नाटक किया तो रात भर बाहर सड़क पर ठंड में सोना पड़ेगा तुझे..
मैं: नहीं सर... मैं कोई नाटक नहीं करूंगा... मैं सो जाता हूं.
ऐसा बोलकर मैंने दूसरे कंबल से अपने आप को पूरी तरह ढक लिया था.... मुझे वाकई बेहद सर्दी लग रही थी... कमरे के अंदर आने के बाद और कंबल के नीचे सोने के बाद मुझे थोड़ी बहुत राहत का अहसास होने लगा था... और मुझे नींद आने लगी.... लेकिन नींद आने से पहले ही मेरी आंखों की नींद उड़ गई... मेरी प्रियंका दीदी की मादक सिसकियां सुनकर..
मेरी प्रियंका दीदी: हाय थानेदार साहब... रुक जाएंगे ना... मेरे भाई को तो कम से कम सो जाने दीजिए ..."उईई माँ!! अरे हाय... मर गई..
इंस्पेक्टर हरिलाल: चुप कर साली... मुझे करने दे जो मेरा मन है... तेरा भाई तुझे इसीलिए तो लाया है यहां पर...
मेरी प्रियंका दीदी: हाय मर गई... दैया रे दैया... आपका बहुत बड़ा है.. दया कीजिए हम पर... धीरे... हाय मम्मी रे...
दरअसल थानेदार साहब मुझे सोता हुआ समझकर मेरी दीदी के ऊपर सवार हो गए थे और अपना काला लंबा मुसल मेरी बहन के गुलाबी छेद के ऊपर टीका कर ऊपर से दबाव बना रहे थे..
ना नूकुर करते हुए नखरे दिखाते हुए मेरी प्रियंका दीदी भी अपनी गांड उठा कर उस मुसल को अपने अंदर लेने का प्रयास कर रही थी...
मैंने कंबल को थोड़ा सा अपने चेहरे से हटा कर चौकी के ऊपर अपनी गर्दन उठाकर देखा तो हतप्रभ रह गया..
मेरी प्रियंका दीदी थानेदार साहब को अपनी बाहों में लपेट के उनको अपने छेद पर आक्रमण करने की दावत दे रही थी... और थानेदार साहब ने भी वही किया... एक झटके में ही उन्होंने की ऐसा जोर का ठाप मारा कि उसका आधा लंड मेरी प्रियंका दीदी की चुत मे घुस गया...
मेरी प्रियंका दीदी: "उइइइ माँ मै मरी!" हाय दैया थानेदार साहब... बड़े जालिम हो आप...
इंस्पेक्टर हरिलाल: बहन की लोड़ी... जालिम मैं हूं? साली रंडी तू तो मर्डर भी करती है... बता तूने जुनेद को कैसे मारा?
मेरी प्रियंका दीदी: "उईई माँ!! अरे ज़ालिम क्या कर कर रहा है? थोड़ा धीरे से कर" कहती ही रह गयी और वह इंजन के पिस्टन की तरह मेरी बहन की चूत का ढोल पीटने की शुरुआत करने की तैयारी करने लगे..
इंस्पेक्टर हरिलाल: तमीज से बात कर रंडी... साली ....
कमरे में मद्धम लाइट जल रही थी.. उन दोनों को तो बिल्कुल भी एहसास नहीं था कि मैं अपना सर अपने कंबल से बाहर निकाल कर चौकी के ऊपर झांक रहा हूं... वैसे भी उन दोनों को मेरी परवाह नहीं थी...
थानेदार साहब का लंड बहुत बड़ा था और कुछ मेरी प्रियंका दीदी की चुत बहुत सिकुड़ी थी... इसलिये उनका लंड अन्दर जाने के बज़ाय वहीं अटक कर रह गया...
थानेदार साहब ने तुरन्त ही पास रखी घी की कटोरी से कुछ घी निकाला और अपने लंड पर घी चुपड़ कर तुरन्त फिर से लंड को चूत पर रख कर धक्का मारा. इस बार लंड तो अन्दर घुस गया पर मेरी बहन के मुंह से जोरो कि चीख निकल पड़ी,
"आह्ह्ह मै मरी!! हाय ज़ालिम तेरा लंड है या बांस का खुंटा!"
इंस्पेक्टर हरिलाल ने मेरी प्रियंका दीदी की तड़पती हुई सिसकियों का कोई भी परवाह नहीं किया... और वह ताबड़तोड़ झटके देने लगे..
मेरी प्रियंका दीदी: हाय राजा मर गयी! उइइइइ माँ! थोड़ा धीमे करो ना!" थानेदार जी... मर गई रे मैया...
थानेदार साहब अपनी पूरी ताकत से मेरी बहन के अंदर बाहर होने लगे थे.. उन्हें बिल्कुल भी परवाह नहीं थी कि मैं यहीं पर हूं..
मेरी प्रियंका दीदी भी अपनी छोटी गांड उठा उठा उनका साथ दे रही थी..