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पुरानी हिन्दी की मशहूर कहनियाँ
मैं समझता था की दीदी मेरे हाक्तों और मेरे इरादो से अनजान हैं दीदी इस बात का पता भी नहीं था की उनका छोटा भाई उनके नंगे शरीर को चाहता है और उनकी नंगी शरीर से खेलना चाहता है लेकिन मैं ग़लत था। फिर एक दीदी ने मुझे पकड़ लिया। उस दिन दीदी किचन में जा कर अपने कपरे बदल रही थी। हाल और किचन के बीच का पर्दा थोड़ा खुला हुआ था। दीदी दूसरी तरफ़ देख रही थी और अपनी कुर्ता उतार रही थी और उसकी ब्रा में छुपा हुआ चुची मेरे नज़रों के सामने था। फ़िर रोज़ के तरह मैं टी वी देख रहा था और दीदी को भी कंखिओं से देख रहा था।

दीदी ने तब एकाएक सामने वाले दीवार पर टंगा शीशे को देखा और मुझे आँखे फ़िरा फ़िरा कर घूरते हुए पाया। दीदी ने देखा की मैं उनकी चूचियों को घूर रहा हूँ। फिर एकाएक मेरे और दीदी की आँखे मिरर में टकरा गयी मैं शर्मा गया और अपने आँखे टी वी तरफ़ कर लिया।

मेरा दिल क्या धड़क रहा था। मैं समझ गया की दीदी जान गयी हैं की मैं उनकी चूचियों को घूर रहा था। अब दीदी क्या करेंगी? क्या दीदी मां और पिताजी को बता देंगी? क्या दीदी मुझसे नाराज़ होंगी? इसी तरह से हज़ारों प्रश्ना मेरे दिमाग़ में घूम रहा था। मैं दीदी के तरफ़ फिर से देखने का साहस जुटा नहीं पाया।

उस दिन सारा दिन और उसके बाद 2-3 दीनो तक मैं दीदी से दूर रहा, उनके तरफ़ नहीं देखा। इन 2-3 दीनो में कुछ नहीं हुआ। मैं ख़ुश हो गया और दीदी को फिर से घुरना चालू कर दिया। दीदी में मुझे 2-3 बार फिर घुरते हुए पकड़ लिया, लेकिन फिर भी कुछ नहीं बोली। मैं समझ गया की दीदी को मालूम हो चुका है मैं क्या चाहता हूँ ।ख़ैर जब तक दीदी को कोई एतराज़ नहीं तो मुझे क्या लेना देना और मैं मज़े से दीदी को घुरने लगा.

एक दिन मैं और दीदी अपने घर के बालकोनी में पहले जैसे खड़े थे। दीदी मेरे हाथों से सट कर ख़ड़ी थी और मैं अपने उँगलियों को दीदी के चूची पर हल्के हल्के चला रहा था। मुझे लगा की दीदी को शायद यह बात नहीं मालूम की मैं उनकी चूचियों पर अपनी उँगलियों को चला रहा हूँ। मुझे इस लिए लगा क्योंकी दीदी मुझसे फिर भी सट कर ख़ड़ी थी। लेकिन मैं यह तो समझ रहा थी क्योंकी दीदी ने पहले भी नहीं टोका था, तो अब भी कुछ नहीं बोलेंगी और मैं आराम से दीदी की चूचियों को छू सकता हूँ.

हमलोग अपने बालकोनी में खड़े थे और आपस में बातें कर रहे थे, हमलोग कालेज और स्पोर्ट्स के बारे में बाते कर रहे थे। हमारा बालकोनी के सामने एक गली था तो हमलोगों की बालकोनी में कुछ अंधेरा था. बाते करते करते दीदी मेरे उँगलियों को, जो उनकी चूची पर घूम रहा था, अपने हाथों से पकड़कर अपने चूची से हटा दिया। दीदी को अपने चूची पर मेरे उंगली का एहसास हो गया था और वो थोड़ी देर के लिए बात करना बंद कर दिया और उनकी शरीर कुछ अकड़ गयी लेकिन, दीदी अपने जगह से हिली नहीं और मेरे हाथो से सट कर खड़ी रही। दीदी ने मुझे से कुछ नहीं बोली तो मेरा हिम्मत बढ गया और मैं अपना पूरा का पूरा पंजा दीदी की एक मुलायम और गोल गोल चूची पर रख दिया।

मैं बहुत डर रहा था। पता नहीं दीदी क्या बोलेंगी? मेरा पूरा का पूरा शरीर कांप रहा था। लेकिन दीदी कुछ नहीं बोली। दीदी सिर्फ़ एक बार मुझे देखी और फिर सड़क पर देखने लगी। मैं भी दीदी की तरफ़ डर के मारे नहीं देख रहा था। मैं भी सड़क पर देख रहा था और अपना हाथ से दीदी की एक चूची को धीरे धीरे सहला रहा था। मैं पहले धीरे धीरे दीदी की एक चूची को सहला रहा था और फिर थोड़ी देर के बाद दीदी की एक मुलायम गोल गोल, नरम लेकिन तनी चूची को अपने हाथ से ज़ोर ज़ोर से मसलने लगा। दीदी की चूची काफ़ी बड़ी थे और मेरे पंजे में नहीं समा रही थी।

थोड़ी देर बाद मुझे दीदी की कुर्ता और ब्रा के उपर से लगा की चूची के निपपले तन गयी और मैं समझ गया की मेरे चूची मसलने से दीदी गरमा गयी हैं दीदी की कुर्ता और ब्रा के कपड़े बहुत ही महीन और मुलायम थी और उनके ऊपेर से मुझे दीदी की निपपले तनने के बाद दीदी की चूची छूने से मुझे जैसे स्वर्ग मिल गया था।

किसी जवान लड़की के चूची छूने का मेरा यह पहला अवसर था। मुझे पता ही नहीं चला की मैं कब तक दीदी की चूचियों को मसलता रहा। और दीदी ने भी मुझे एक बार के लिए मना नहीं किया। दीदी चुपचाप ख़ड़ी हो कर मुझसे अपना चूची मसलवाती रही। मेरे लंड का बुरा हाल था. वो तानकर स्टील की रोड जैसा हो चूका था.

दीदी की चूची मसलते मसलते मेरा लंड धीरे धीरे ख़ड़ा होने लगा था। मुझे बहुत मज़ा आ रहा था लेकिन एकाएक मां की आवाज़ सुनाई दी। मां की आवाज़ सुनते ही दीदी ने धीरे से मेरा हाथ अपने चूची से हटा दिया और मां के पास चली गयी उस रात मैं सो नहीं पाया, मैं सारी रात दीदी की मुलायम मुलायम चूची के बारे में सोचता रहा.

दूसरे दिन शाम को मैं रोज़ की तरह अपने बालकोनी में खड़ा था। थोड़ी देर के बाद दीदी बालकोनी में आई और मेरे बगल में ख़ड़ी हो गयी मैं 2-3 मिनट तक चुपचाप ख़ड़ा दीदी की तरफ़ देखता रहा। दीदी ने मेरे तरफ़ देखी। मैं धीरे से मुस्कुरा दिया, लेकिन दीदी नहीं मुस्कुराई और चुपचाप सड़क पर देखने लगी।

मैं दीदी से धीरे से बोला- छूना है, मैं साफ़ साफ़ दीदी से कुछ नहीं कह पा रहा था। और पास आ दीदी ने पूछा – क्या छूना चाहते हो? साफ़ साफ़ दीदी ने फिर मुझसे पूछी।

तब मैं धीरे से दीदी से बोला, तुम्हारी दूध छूना दीदी ने तब मुझसे तपाक से बोली, क्या छूना है साफ़ साफ़ बोल... मैं तब दीदी से मुस्कुरा कर बोला, तुम्हारी चूची छूना है उनको मसलना है। अभी मां आ सकती है दीदी ने तब मुस्कुरा कर बोली।

मैं भी तब मुस्कुरा कर अपनी दीदी से बोला, जब मां आएगी हमें पता चल जायेगा मेरे बातों को सुन कर दीदी कुछ नहीं बोली और चुपचाप नज़दीक आ कर ख़ड़ी हो गयी, लेकिन उनकी चूची कल की तरह मेरे हाथों से नहीं छू रहा था।

मैं समझ गया की दीदी आज मेरे से सट कर ख़ड़ी होने से कुछ शर्मा रही है अबतक दीदी अनजाने में मुझसे सट कर ख़ड़ी होती थी। लेकिन आज जान बुझ कर मुझसे सट कर ख़ड़ी होने से वो शर्मा रही है क्योंकी आज दीदी को मालूम था की सट कर ख़ड़ी होने से क्या होगा।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



thanks
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