18-10-2021, 05:18 PM
क्या??" संगीता दीदी चिल्लाई, "तुम पागल तो नही हो गये हो?? में कैसे दिखा सक'ती हूँ, सागर? में तुम्हारी बहन हूँ."
"लेकिन हम दोनो दोस्त भी है ना, दीदी?"
"हा! लेकिन में ये कैसे भूलू के हम दोनो भाई-बहेन है, सागर?"
"ओह ! कम ऑन, दीदी!. तुम'ने वैसा किया तो तुम्हारा कोई नुकसान नही होगा. उलटा तुम मेरी मदद कर रही हो, मेरी जिग्यासा पूरी कर'ने के लिए."
"जिग्यासा पूरी कर'ने के लिए???. तुम्हारी ये जिग्यासा बहुत ही अजीब है, सागर!. एक बहन को पूरी कर'ने के लिए!" इसके बाद संगीता दीदी बिल'कुल सिरीयस हो गयी. में उस'से बिन'ती कर रहा था, उस'को मनाने की कोशीष कर रहा था और वो मेरा विरोध कर'ती रही और मुझे ना कह'ती रही. आखीर मायूस होकर मेने कहा,
"ये देखो, दीदी! तुम्हें खूस कर'ने के लिए मेने क्या क्या किया. तुम इत'नी खूस थी के थोड़ी देर पह'ले तुम ही कह रही थी मेरे लिए तुम कुच्छ भी कर'ने के लिए तैयार हो. और अब जब में तुम्हें कुच्छ कर'ने के लिए कह रहा हूँ तो तुम ना बोल रही हो."
"में कैसे करू, सागर? तुम मुझे जो कर'ने के लिए कह रहे हो ये दुनिया की कोई बहन नही कर सक'ती."
"तो ठीक है, दीदी! भूल जाओ जो कुच्छ मेने तुम्हें कहा वो! मुझे लगा तुम मुझे बहुत प्यार कर'ती हो इस'लिए तुम मुझे नाराज़ नही करोगी. लेकिन अब मुझे मालूम पड़ गया के तुम मुझे कित'ना प्यार कर'ती हो."
ऐसा कह'कर संगीता दीदी की तरफ पीठ करके में घूम गया. उस'ने मुझे वापस अप'नी ओर घुमाने की कोशीस की लेकिन में अप'नी जगह से नही हिला. फिर उस'ने कहा,
"ऐसे क्या कर रहे हो, सागर? नाराज़ क्यों होते हो जल्दी? ज़रा मेरे बारे में तो सोचो.. मेरे से कैसे होगा वो? अपना नाता में कैसे भूल जाउ?"
मेने कुच्छ नही कहा और चुप'चाप पड़ा रहा. मेरे हाथ को पकड़'कर वो मुझे हिलाने लगी और मुझे समझाने लगी लेकिन में अप'नी जगहा से हिला भी नही और मेने उस'का कहा सुना भी नही. आखीर हताश होकर उस'ने कहा,
"सागर. मेरे प्यारे भाई! सुबह से अब तक हम कित'ना मज़ा कर रहे है और अब आखरी सम'य उस मज़े को में किर'कीरा नही कर'ना चाह'ती हूँ. तुम'ने दिन भर मुझे खूस रखा इस'लिए अब में तुम्हें नाराज़ नही कर'ना चाह'ती. ठीक है! अगर तुम्हें यही चाहिए तो में तैयार हूँ!!"
संगीता दीदी के शब्द सुन'कर में खिल उठा लेकिन में अप'नी जगहा से नही हिला और मेने उसे कहा,
"नही, दीदी! अगर तुम्हारे दिल में नही है तो तुम मत करो कुच्छ.. तुम्हारे मन के खिलाफ तुम कुच्छ करो ऐसा में नही चाहता."
मेरे मन में तो खुशीयों के लड्डू फूट रहे थे. अगर संगीता दीदी सचमुच नंगी होने के लिए तैयार हो रही होगी तो सुबह से मेने की हुई मेहनत और खर्च किया हुआ पैसा सब वसूल होनेवाला था. लेकिन मेरी वो खुशी मेने अप'ने चह'रे पर नही दिखाई और घूम के मेने उसकी तरफ देखा. संगीता दीदी को सीरीयस देख'कर मेने कहा,
"ये देखो, दीदी! इत'नी सिरीयस मत हो जाओ. इसमें भी तो मज़ा है. थोड़ा अलग. दिन भर कैसे हम मज़ा मज़ा कर रहे थे?.. दोस्त बन'कर. ये भी उसी मज़ा का एक भाग है ऐसा समझ लो. तो ही तुम्हें अजीब नही लगेगा. और फिर तुम्हें भी मज़ा आएगा इस में."
"ठीक है. ठीक है! मुझे नही लग रहा है अट'पटा अभी." संगीता दीदी ने मुश्कील से हंस'ते हुए कहा, " आखीर क्या. में मेरे लाडले भाई को खूस कर रही हूँ. उस'ने मुझे दिन भर खूस रखा अब मेरी बारी है उसे खूस कर'ने की" ऐसा कह'कर वो अच्छी तरह से हँसी. उसकी अच्छी हँसी देख'कर में भी दिल से हंसा.
मुझे मेरा सपना पूरा होते नज़र आ रहा था. मेरे बहन को जी भर के पूरी नंगी देख'ने के लिए में मर रहा था और वो घड़ी अब आ गई थी. सिर्फ़ उस ख़याल से में हद के बाहर उत्तेजीत होने लगा. मेरे लंड में कुच्छ अलग ही काम संवेदना उठ'ने लगी और वो गल'ने लगा. मुझे ऐसा लग'ने लगा के किसी भी समय मेरा वीर्य पतन हो जाएगा. मेने सोचा के झट से बाथरूम में जा के ठंडा होकर आना ही चाहिए.
"लेकिन हम दोनो दोस्त भी है ना, दीदी?"
"हा! लेकिन में ये कैसे भूलू के हम दोनो भाई-बहेन है, सागर?"
"ओह ! कम ऑन, दीदी!. तुम'ने वैसा किया तो तुम्हारा कोई नुकसान नही होगा. उलटा तुम मेरी मदद कर रही हो, मेरी जिग्यासा पूरी कर'ने के लिए."
"जिग्यासा पूरी कर'ने के लिए???. तुम्हारी ये जिग्यासा बहुत ही अजीब है, सागर!. एक बहन को पूरी कर'ने के लिए!" इसके बाद संगीता दीदी बिल'कुल सिरीयस हो गयी. में उस'से बिन'ती कर रहा था, उस'को मनाने की कोशीष कर रहा था और वो मेरा विरोध कर'ती रही और मुझे ना कह'ती रही. आखीर मायूस होकर मेने कहा,
"ये देखो, दीदी! तुम्हें खूस कर'ने के लिए मेने क्या क्या किया. तुम इत'नी खूस थी के थोड़ी देर पह'ले तुम ही कह रही थी मेरे लिए तुम कुच्छ भी कर'ने के लिए तैयार हो. और अब जब में तुम्हें कुच्छ कर'ने के लिए कह रहा हूँ तो तुम ना बोल रही हो."
"में कैसे करू, सागर? तुम मुझे जो कर'ने के लिए कह रहे हो ये दुनिया की कोई बहन नही कर सक'ती."
"तो ठीक है, दीदी! भूल जाओ जो कुच्छ मेने तुम्हें कहा वो! मुझे लगा तुम मुझे बहुत प्यार कर'ती हो इस'लिए तुम मुझे नाराज़ नही करोगी. लेकिन अब मुझे मालूम पड़ गया के तुम मुझे कित'ना प्यार कर'ती हो."
ऐसा कह'कर संगीता दीदी की तरफ पीठ करके में घूम गया. उस'ने मुझे वापस अप'नी ओर घुमाने की कोशीस की लेकिन में अप'नी जगह से नही हिला. फिर उस'ने कहा,
"ऐसे क्या कर रहे हो, सागर? नाराज़ क्यों होते हो जल्दी? ज़रा मेरे बारे में तो सोचो.. मेरे से कैसे होगा वो? अपना नाता में कैसे भूल जाउ?"
मेने कुच्छ नही कहा और चुप'चाप पड़ा रहा. मेरे हाथ को पकड़'कर वो मुझे हिलाने लगी और मुझे समझाने लगी लेकिन में अप'नी जगहा से हिला भी नही और मेने उस'का कहा सुना भी नही. आखीर हताश होकर उस'ने कहा,
"सागर. मेरे प्यारे भाई! सुबह से अब तक हम कित'ना मज़ा कर रहे है और अब आखरी सम'य उस मज़े को में किर'कीरा नही कर'ना चाह'ती हूँ. तुम'ने दिन भर मुझे खूस रखा इस'लिए अब में तुम्हें नाराज़ नही कर'ना चाह'ती. ठीक है! अगर तुम्हें यही चाहिए तो में तैयार हूँ!!"
संगीता दीदी के शब्द सुन'कर में खिल उठा लेकिन में अप'नी जगहा से नही हिला और मेने उसे कहा,
"नही, दीदी! अगर तुम्हारे दिल में नही है तो तुम मत करो कुच्छ.. तुम्हारे मन के खिलाफ तुम कुच्छ करो ऐसा में नही चाहता."
मेरे मन में तो खुशीयों के लड्डू फूट रहे थे. अगर संगीता दीदी सचमुच नंगी होने के लिए तैयार हो रही होगी तो सुबह से मेने की हुई मेहनत और खर्च किया हुआ पैसा सब वसूल होनेवाला था. लेकिन मेरी वो खुशी मेने अप'ने चह'रे पर नही दिखाई और घूम के मेने उसकी तरफ देखा. संगीता दीदी को सीरीयस देख'कर मेने कहा,
"ये देखो, दीदी! इत'नी सिरीयस मत हो जाओ. इसमें भी तो मज़ा है. थोड़ा अलग. दिन भर कैसे हम मज़ा मज़ा कर रहे थे?.. दोस्त बन'कर. ये भी उसी मज़ा का एक भाग है ऐसा समझ लो. तो ही तुम्हें अजीब नही लगेगा. और फिर तुम्हें भी मज़ा आएगा इस में."
"ठीक है. ठीक है! मुझे नही लग रहा है अट'पटा अभी." संगीता दीदी ने मुश्कील से हंस'ते हुए कहा, " आखीर क्या. में मेरे लाडले भाई को खूस कर रही हूँ. उस'ने मुझे दिन भर खूस रखा अब मेरी बारी है उसे खूस कर'ने की" ऐसा कह'कर वो अच्छी तरह से हँसी. उसकी अच्छी हँसी देख'कर में भी दिल से हंसा.
मुझे मेरा सपना पूरा होते नज़र आ रहा था. मेरे बहन को जी भर के पूरी नंगी देख'ने के लिए में मर रहा था और वो घड़ी अब आ गई थी. सिर्फ़ उस ख़याल से में हद के बाहर उत्तेजीत होने लगा. मेरे लंड में कुच्छ अलग ही काम संवेदना उठ'ने लगी और वो गल'ने लगा. मुझे ऐसा लग'ने लगा के किसी भी समय मेरा वीर्य पतन हो जाएगा. मेने सोचा के झट से बाथरूम में जा के ठंडा होकर आना ही चाहिए.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.