16-10-2021, 03:14 PM
प्रगति सोच नहीं पा रही थी कि अब दफ्तर में वह शेखर से किस तरह बात करेगी या फिर शेखर उस से किस तरह पेश आएगा। कहीं ऐसा तो नहीं कि आम आदमियों की तरह वह उसकी अवहेलना करने लगेगा। कई मर्द जब किसी लड़की की अस्मत पा लेते हैं तो उसमें से उनकी रुचि हट जाती है और कुछ तो उसे नीचा समझने लगते हैं ....। प्रगति कुछ असमंजस में थी ....।
लालसा, वासना, डर, आशंका, ख़ुशी और उत्सुकता का एक अजीब मिश्रण उसके मन में हिंडोले ले रहा था।
प्रगति ने सुबह जल्दी उठ कर विशेष रूप से उबटन लगा कर देर तक स्नान किया। भूरे रंग की सेक्सी पैंटी और ब्रा पहनी जिसे पहन कर ऐसा लगता था मानो वह नंगी है। उसके ऊपर हलके बैंगनी रंग की चोली के साथ पीले रंग की शिफोन की साड़ी पहन कर वह बहुत सुन्दर लग रही थी। बालों में चमेली का गजरा तथा आँखों में हल्का सा सुरमा। चूड़ियाँ, गले का हार, कानों में बालियाँ और अंगूठियाँ पहन कर ऐसा नहीं लग रहा था कि वह दफ्तर जाने के लिए तैयार हो रही हो। प्रगति मानो दफ्तर भूल कर अपनी सुहाग रात की तैयारी कर रही थी।
सज धज कर जब उसने अपने आप को शीशे में देखा तो खुद ही शरमा गई। उसके पति ने जब उसे देखा तो पूछ उठा- कहाँ कि तैयारी है ...?
प्रगति ने बताया कि आज दफ्तर में ग्रुप फोटो का कार्यक्रम है इसलिए सब को तैयार हो कर आना है !! रोज़ की तरह उसका पति उसे मोटर साइकिल पर दफ्तर तक छोड़ कर अपने काम पर चला गया। प्रगति ने चलते वक़्त उसे कह दिया हो सकता है आज उसे दफ्टर में देर हो जाये क्योंकि ग्रुप फोटो के बाद चाय-पानी का कार्यक्रम भी है।
दफ्तर १० बजे शुरू होता था पर प्रगति ९.३० बजे पहुँच जाती थी क्योंकि उसे छोड़ने के बाद उसके पति को अपने दफ्तर भी जाना होता था। प्रगति ने ख़ास तौर से शेखर का कमरा ठीक किया और पिछले १० दिनों की तमाम रिपोर्ट्स और फाइल करीने से लगा कर शेखर की मेज़ पर रख दी।
कुछ देर में दफ्तर के बाकी लोग आने शुरू हो गए। सबने प्रगति की ड्रेस की तारीफ़ की और पूछने लगे कि आज कोई ख़ास बात है क्या?
प्रगति ने कहा कि अभी उसे नहीं मालूम पर हो सकता है आज का दिन उसके लिए नए द्वार खोल सकता है !!!
लोगों को इस व्यंग्य का मतलब समझ नहीं आ सकता था !!
वह मन ही मन मुस्कराई ....
ठीक दस बजे शेखर दफ्तर में दाखिल हुआ। सबने उसका अभिनन्दन किया और शेखर ने सबके साथ हाथ मिलाया। जब प्रगति शेखर के ऑफिस में उस से अकेले में मिली शेखर ने ऐसे बर्ताव किया जैसे उनके बीच कुछ हुआ ही न हो। वह नहीं चाहता था कि दफ्तर के किसी भी कर्मचारी को उन पर कोई शक हो। प्रगति को उसने दफ्तर के बाद रुकने के लिए कह दिया जिस से उसके दिल की धड़कन बढ़ गई।
किसी तरह शाम के ५ बजे और सभी लोग शेखर के जाने का इंतजार करने लगे। शेखर बिना वक़्त गँवाए दफ्तर से घर की ओर निकल पड़ा। शीघ्र ही बाकी लोग भी निकल गए। प्रगति यह कह कर रुक गई कि उसे एक ज़रूरी फैक्स का इंतजार है। उसके बाद वह दफ्तर को ताला भी लगा देगी और चली जायेगी।
उसने चौकीदार को भी छुट्टी दे दी। जब मैदान साफ़ हो गया तो प्रगति ने शेखर को मोबाइल पर खबर दे दी। करीब आधे घंटे बाद शेखर दोबारा ऑफिस आ गया और अन्दर से दरवाज़ा बंद करके दफ्टर की सभी लाइट, पंखे व एसी बंद कर दिए। सिर्फ अन्दर के गेस्ट रूम की एक लाइट तथा एसी चालू रखा।
अब उसने प्रगति को अपनी ओर खींच कर जोर से अपने आलिंगन में ले लिया और वे बहुत देर तक एक दूसरे के साथ जकड़े रहे। सिर्फ उनके होंठ आपस में हरकत कर रहे थे और उनकी जीभ एक दूसरे के मुँह की गहराई नाप रही थी। थोड़ी देर में शेखर ने पकड़ ढीली की तो दोनों अलग हुए।
अभी बाकि है...
लालसा, वासना, डर, आशंका, ख़ुशी और उत्सुकता का एक अजीब मिश्रण उसके मन में हिंडोले ले रहा था।
प्रगति ने सुबह जल्दी उठ कर विशेष रूप से उबटन लगा कर देर तक स्नान किया। भूरे रंग की सेक्सी पैंटी और ब्रा पहनी जिसे पहन कर ऐसा लगता था मानो वह नंगी है। उसके ऊपर हलके बैंगनी रंग की चोली के साथ पीले रंग की शिफोन की साड़ी पहन कर वह बहुत सुन्दर लग रही थी। बालों में चमेली का गजरा तथा आँखों में हल्का सा सुरमा। चूड़ियाँ, गले का हार, कानों में बालियाँ और अंगूठियाँ पहन कर ऐसा नहीं लग रहा था कि वह दफ्तर जाने के लिए तैयार हो रही हो। प्रगति मानो दफ्तर भूल कर अपनी सुहाग रात की तैयारी कर रही थी।
सज धज कर जब उसने अपने आप को शीशे में देखा तो खुद ही शरमा गई। उसके पति ने जब उसे देखा तो पूछ उठा- कहाँ कि तैयारी है ...?
प्रगति ने बताया कि आज दफ्तर में ग्रुप फोटो का कार्यक्रम है इसलिए सब को तैयार हो कर आना है !! रोज़ की तरह उसका पति उसे मोटर साइकिल पर दफ्तर तक छोड़ कर अपने काम पर चला गया। प्रगति ने चलते वक़्त उसे कह दिया हो सकता है आज उसे दफ्टर में देर हो जाये क्योंकि ग्रुप फोटो के बाद चाय-पानी का कार्यक्रम भी है।
दफ्तर १० बजे शुरू होता था पर प्रगति ९.३० बजे पहुँच जाती थी क्योंकि उसे छोड़ने के बाद उसके पति को अपने दफ्तर भी जाना होता था। प्रगति ने ख़ास तौर से शेखर का कमरा ठीक किया और पिछले १० दिनों की तमाम रिपोर्ट्स और फाइल करीने से लगा कर शेखर की मेज़ पर रख दी।
कुछ देर में दफ्तर के बाकी लोग आने शुरू हो गए। सबने प्रगति की ड्रेस की तारीफ़ की और पूछने लगे कि आज कोई ख़ास बात है क्या?
प्रगति ने कहा कि अभी उसे नहीं मालूम पर हो सकता है आज का दिन उसके लिए नए द्वार खोल सकता है !!!
लोगों को इस व्यंग्य का मतलब समझ नहीं आ सकता था !!
वह मन ही मन मुस्कराई ....
ठीक दस बजे शेखर दफ्तर में दाखिल हुआ। सबने उसका अभिनन्दन किया और शेखर ने सबके साथ हाथ मिलाया। जब प्रगति शेखर के ऑफिस में उस से अकेले में मिली शेखर ने ऐसे बर्ताव किया जैसे उनके बीच कुछ हुआ ही न हो। वह नहीं चाहता था कि दफ्तर के किसी भी कर्मचारी को उन पर कोई शक हो। प्रगति को उसने दफ्तर के बाद रुकने के लिए कह दिया जिस से उसके दिल की धड़कन बढ़ गई।
किसी तरह शाम के ५ बजे और सभी लोग शेखर के जाने का इंतजार करने लगे। शेखर बिना वक़्त गँवाए दफ्तर से घर की ओर निकल पड़ा। शीघ्र ही बाकी लोग भी निकल गए। प्रगति यह कह कर रुक गई कि उसे एक ज़रूरी फैक्स का इंतजार है। उसके बाद वह दफ्तर को ताला भी लगा देगी और चली जायेगी।
उसने चौकीदार को भी छुट्टी दे दी। जब मैदान साफ़ हो गया तो प्रगति ने शेखर को मोबाइल पर खबर दे दी। करीब आधे घंटे बाद शेखर दोबारा ऑफिस आ गया और अन्दर से दरवाज़ा बंद करके दफ्टर की सभी लाइट, पंखे व एसी बंद कर दिए। सिर्फ अन्दर के गेस्ट रूम की एक लाइट तथा एसी चालू रखा।
अब उसने प्रगति को अपनी ओर खींच कर जोर से अपने आलिंगन में ले लिया और वे बहुत देर तक एक दूसरे के साथ जकड़े रहे। सिर्फ उनके होंठ आपस में हरकत कर रहे थे और उनकी जीभ एक दूसरे के मुँह की गहराई नाप रही थी। थोड़ी देर में शेखर ने पकड़ ढीली की तो दोनों अलग हुए।
अभी बाकि है...
// सुनील पंडित //
मैं तो सिर्फ तेरी दिल की धड़कन महसूस करना चाहता था
बस यही वजह थी तेरे ब्लाउस में मेरा हाथ डालने की…!!!
बस यही वजह थी तेरे ब्लाउस में मेरा हाथ डालने की…!!!