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Incest दीदी ने पूरी की भाई की इच्छा
#58
"कैसी लग रही हूँ में, सागर?" दोनो हाथ कमर'पर रख के, सीना तान के खड़ी होकर संगीता दीदी ने मुझे पुछा, "अब में मॉडर्न लग'ती हूँ के नही, बोलो?" संगीता दीदी गोल घूम के मुझे दिखा रही थी के वो कैसी लग रही थी. इस में कोई गुंजाइश नही थी के वो अलग और ख़ास नज़र आ रही थी क्योंकी आज तक मेने उसे सिर्फ़ पंजाबी लिबास और साऱी पह'ने हुए देखा था. उस'ने जींस और टी-शर्ट कभी नही पह'ने थे. उसके कॉलेज के दिनो में उस'ने ज़्यादा से ज़्यादा स्कर्ट और फूल टॉप पह'ने थे. इस'लिए पहिली बार में संगीता दीदी को इन कपडो में देख रहा था और मुझे वो इन कप'डो में पसंद आई थी.

मेरा टी-शर्ट बड़ी फिटींग का था और संगीता दीदी का बदन मेरे से भारी था इस'लिए वो मेरा टी-शर्ट उस'को छोटा हो रहा था. अब बड़ी तो ठीक है लेकिन छाती का क्या?? मेरी छाती और उसकी छाती में ज़मीन-आसमान का फरक था. इस'लिए वो टी-शर्ट उसके बदन पर दूसरी चमड़ी की तरह चिपक गया था. उस'ने पह'नी हुई काली ब्रेसीयर उस क्रीम कलर के टी-शर्ट में से साफ साफ नज़र आ रही थी और ऐसा लग रहा था के उस'ने सिर्फ़ ब्रेसीयर पह'नी थी. टी-शर्ट की लंबाई छोटी थी इस'लिए वो बड़ी मुश्कील से जींस के बेल्ट तक आ रहा था. उस'ने अगर हाथ उपर किया तो उस'का गोरा गोरा चिकना पेट नज़र आ जाएगा.

"तुम्हें कुच्छ कर'ने की ज़रूरत नही है, दीदी!" मेने अपना चह'रा उपर किया और संगीता दीदी की नज़र से नज़र मिलाकर कहा, "तुम खूस हो तो में खूस हूँ. तुम सुखी हो तो में सुखी हूँ. तुम हमेशा खूस रहो यही में चाहता हूँ, दीदी!"

"ओह ! सागर!. मेरे प्यारे भाई.!" ऐसा कह'कर संगीता दीदी ने मुझे ज़ोर से आलींगन दिया. अचानक मुझे आह'सास हुआ के में संगीता दीदी की बाँहों में तकरीबन उसके बदन पर लेट गया हूँ. मेरा सर उसकी भारी हुई छाती के दोनो उभारों के बीच था और मेरा दायां हाथ उसकी कमर पर था. मुझे उसकी कड़ी फिर भी उत'नी ही मुलायम छाती का स्पर्श महसूस हो रहा था. मेरी जाँघो का भाग और मेरा लंड उसके घुट'ने के उप्परी टाँगों पर सटा हुआ था.

जब मेने उसकी कमर के नीचे देखा तो मुझे हँसी आई. हमारी कमर में फरक होने की वजह से मेरी जींस उसे कमर पर हो नही रही थी. जींस के बटन की जगहा पर तकरीबन दो ढाई इंच का गॅप पड़ गया था और इस'लिए वो बटन नही लगा सकी. लेकिन जींस नीचे ना सरके इस'लिए उस'ने बेल्ट लगाया था. बटन की जगहा गॅप होने की वजह से वो ज़ीप पूरी ना लग के आधी ही लग स'की. इस वजह से आधी खुली ज़ीप के उपर और बेल्ट के नीचे एक त्रिकोण बन गया था जो खुला था. और उस खुले त्रिकोण में के उपर के आधे भाग में उसकी गोरी गोरी

चमड़ी नज़र आ रही थी और नीचे के आधे भाग में उसकी नीले रंग की पैंटी नज़र आ रही थी. काफ़ी देर तक में बिना जीझक मेरी बहन को उपर से नीचे निहार रहा था और वो आगे, पिछे से खुद को मुझे दिखा रही था.

"सिर्फ़ देख क्या रहे हो, सागर. कुच्छ बोलो भी तो. कैसी लग रही हूँ में?" संगीता दीदी ने बेसब्री से कहा.

"एक'दम झकास, दीदी!! लेकिन मेरी जींस छोटी पड़ गयी आपको. वारना उस त्रिकोण का प्रदर्शन नही होता." उसके खुले त्रिकोण की तरफ बीना जीझक उंगली दिखा के मेने कहा.

"नालायक, लड़के! बेशरामी मत करो. और वहाँ पर देख'ना नही! सिर्फ़ मुझे इतना बता दे के में कैसी दिख'ती हूँ?" ऐसा कह'कर वो ड्रेसंग टेबल के साम'ने गई और खुद को आईने में निहार'ने लगी.

मेने सप'ने में तो कई बार कल्पना की थी के संगीता दीदी ने जींस और टी-शर्ट पहना है लेकिन आज में पह'ली बार उसे हक़ीक़त में इन कप'डो में देख रहा था. अब में उसे क्या बताऊ के वो कैसी दिख रही थी?

मेने मन ही मन कहा के मेरे लंड को पुच्छ लो तुम कैसी दिख रही हो, जो तुम्हे देख'कर पागल हो रहा है और कड़ा होते जा रहा है. में संगीता दीदी के पिछे जा के खड़ा हो गया और बिना शर'माए उसकी कमर पर हाथ रख दिए. फिर आईने में से उसकी तरफ देख'कर मेने कहा,

"तुम एक'दम आकर्षक लग रही हो, दीदी!"

"सिर्फ़ आकर्षक?. और कुच्छ नही??" संगीता दीदी ने तिरछी नज़र से आईने से ही मुझे देख'कर वापस सवाल किया.

"और बोले तो. तुम आकर्षक दिख रही हो. और ग्रेट दिख रही हो. और. और." में आगे बोल ना सका और दीदी ने मुझे चुप कर'ते कहा,

"और. सेक्सी भी. बराबर ना, सागर?"

"ओह ! येस!!" मेने झट से कहा, "तुम सेक्सी भी दिख रही हो. उलटा इस लिबास में तुम किसी और लिबास से ज़्यादा सेक्सी दिख'ती हो!"

"ओह ! कम ऑन, सागर! कभी तुम कह'ते हो में साऱी में एक'दम सेक्सी दिख'ती हूँ तो कभी तुम कह'ते हो में पंजाबी लिबास में एक'दम सेक्सी दिख'ती हूँ. और अब तुम कह रहे हो में इस जींस, टी-शर्ट में एक'दम सेक्सी दिख रही हूँ. तुम अच्छी तरह से सोच'कर तय कर लो और मुझे बताओ के में कौन से लिबास में सेक्सी लग'ती हूँ." संगीता दीदी ने शरारत से हंस'ते हुए मज़ाक में मुझ'से पुछा.

उसके सवाल से पह'ले तो में बौखला गया लेकिन उसे क्या जवाब देना है ये मुझे अच्छी तराहा से मालूम था. मन ही मन मेने खुद को वो जवाब हज़ारो बार कहा था.

"सच बताउ, दीदी?. सेक्सीनेस तुम्हारी साऱी में नही तुम्हारे पंजाबी ड्रेस में नही तुम्हारे कोई भी लिबास में नही है. अगर है तो. वो.. तुम्हारे अंदर है. तुम्हारे बदन में है. इस'लिए तुम'ने कोई भी लिबास पहन लिया तो तुम सेक्सी दिख'ती हो. और इसी वजह से कभी मुझे तुम साऱी में सुंदर नज़र लग'ती हो तो कभी पंजाबी लिबास में. और अभी तुम मुझे इस मॉडर्न जींस में अच्छी लग रही हो" मेने एक ही साँस में ये सब कह डाला.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



thanks
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RE: दीदी ने पूरी की भाई की इच्छा - by neerathemall - 14-10-2021, 05:38 PM



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