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Incest दीदी ने पूरी की भाई की इच्छा
#57
संगीता दीदी काफ़ी देर वैसे पड़ी थी और शायद थकान की वजह से उसकी आँख लग गयी थी. में उसके बाजू में सो गया और मेरा चेहरा उसकी बगल के नज़दीक आया. उसके बगल के पसीने की गंध मुझे महसूस हुई. मेरी बहन के पसीने की गंध मुझे बेहद पसंद है और वो अगर उसकी बगल से आ रहा हो तो उस'से मुझे वास'ना का एक अलग ही नशा चढ़ता है. मेरे दिल ने चाहा के उसकी पसीने से भरी बगल चाट लूँ लेकिन वैसा कर के में मुसीबत में नही पड़ना चाहता था इस'लिए मेने उसे उठाने के बारे में सोचा. उसे स्पर्श ना हो इस बात का ध्यान रख'कर में हो सके उतना उसके नज़दीक सरक गया. मेरे एक हाथ पर मेरा वजन देकर में थोड़ा उप्पर उठ गया और दूसरे हाथ से मेने संगीता दीदी की छाती के नीचे छूकर उसे में उठाने लगा.

"संगीता दीदी! उठो अभी!"

"अँ.? क्या.?" संगीता दीदी बौखलाकर उठ गयी.

"मेने कहा. उठ जाओ अभी, रानी सहीबा!" मेने हंस'कर उसे कहा.

"सॉरी, सागर! मेरी आँख लग गयी थी" संगीता दीदी ने अध खुली आँखों से हंस'कर जवाब दिया.

"अरे, दीदी! उस में सारी क्या कह'ना? में समझ सकता हूँ. इतना घूम'ने के बाद तुम थक गयी होगी."

"हाँ! थोड़ी थकान महसूस हो गयी मुझे लेकिन अब में ठीक हूँ" संगीता दीदी ने अब अच्छी तराहा से आँखें खोल दी और मेरी तरफ देख'कर कहा, "आज में बहुत खूस हूँ, सागर. खंडाला जैसी खूबसूरत जगह देख'ने की मेरी बहुत दिन की 'इच्छा' आज पूरी हो गयी. और ये सब तुम्हारी वजह से हुआ, सागर! थॅंक्स, ब्रदर!"

"दीदी. इस में थॅंक्स कह'ने की क्या ज़रूरत? तुम्हें खूस कर'ने के लिए और तुम्हें सुख देने के लिए में हमेशा तैयार हूँ!"

"ओह ! सागर!. तुम बहन का कित'ना ध्यान कर'ते हो! मुझे तुम पर नाज़ है, ब्रदर!!" ऐसा कह'कर संगीता दीदी ने मुझे अप'ने उप्पर खींच लिया और अप'नी बाँहों में भर'कर कहा,

"तुम'ने मुझे बहुत बहुत खुशियाँ दी है, सागर! और मुझे लग'ता है के में भी तुम्हें उतना ही खूस कर दूं. उसके लिए में कुच्छ भी कर'ने को तैयार हूँ. तो फिर बताओ मुझे. में क्या करूँ जिस'से तुम्हें उत'नी ही खूशी मिले जित'नी मुझे मिली है?"

थोड़ी देर हम दोनो भाई-बहेन वैसे ही चिपक के पड़े रहे. संगीता दीदी मेरी बाँहों में सुरक्षा महसूस कर रही थी और में उसके गदराए बदन का स्पर्श महसूस कर रहा था. उस के मन में ममता थी, प्यार था और मेरे मन में काम वास'ना थी. मेरा लंड ज़्यादा ही कड़क होते जा रहा था और वो उसकी टाँगों को छू रहा था. उसकी समझ में वो ना आए इस'लिए मुझे उस'से दूर होना पड़ा.

"कम ऑन, दीदी! उठो अभी.. हम फ्रेश हो जाते है और आराम से सो जाते है." ऐसा कह'ते में बेड से उठ गया. मेने बॅग में से मेरा रात को पहन'ने का लिबास निकाला. फिर कमर पर टेवेल लपेट कर मेने मेरी जींस निकाल दी और टी-शर्ट भी निकाल'कर बाजू के चेअर पर डाल दिए. फिर में बाथरूम में नहाने के लिए गया. काफ़ी सम'य लेकर मेने जी भर के शावर के नीचे स्नान लिया और मेरा पूरा बदन अच्छी तरह से साफ किया. ख़ास कर के मेरा लंड और जाँघो का भाग मेने अच्छी तरह से घिस के साफ किया इस पागल ख़याल से के मेरी बहन उन भागों को चाट लेगी. मुझे मालूम था वैसे कुच्छ होनेवाला नही था लेकिन फिर भी मन में एक उम्मीद थी.

जब में बाथरूम से बाहर आया तब मेने देखा के संगीता दीदी पूरे बदन'पर बेड शीट ओढ़ के चेर पर बैठी थी. वैसे बैठ के वो मेरी तरफ देख रही थी और शरार'ती अंदाज में हंस रही थी. मुझे थोड़ा अजीब सा लगा के वो ऐसी क्यों बैठी है और मेरी तरफ देख के ऐसे क्यों हंस रही है.

"क्या हुआ, दीदी? तुम्हें ठंड लग रही है क्या?" मेने परेशान होकर उसे पुछा.

"ना.. ही ..! !" उस'ने बड़े लाड से जवाब दिया.

"तो फिर तुम ऐसी बदन पर बेडशीट ओढ़ कर क्यों बैठी हो?" मेने आश्चर्य से पुछा.

"क्योंकी.. क्योंकी.." ऐसे कह'ते संगीता दीदी उठ खड़ी हुई और अप'ने बदन से बेडशीट पिछे धकेल के खुद को मेरे साम'ने पेश कर'ते बोली,

"क्योंकी इस'लिए, सागर." जब मेने उसे देखा तो में दंग रहा गया. संगीता दीदी ने मेरी जींस और टी-शर्ट पहन लिया था.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



thanks
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RE: दीदी ने पूरी की भाई की इच्छा - by neerathemall - 14-10-2021, 05:35 PM



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