14-10-2021, 05:28 PM
संगीता दीदी को पिछे से निहार'ते मेने मन ही मन में कहा. में उसके पिछे ऐसे खड़ा था जिस'से उसे आईने से नज़र नही आ रहा था के में कहाँ देख रहा हूँ. हमेशा की तरह उस'ने साऱी अच्छी तरह लपेट के पह'नी हुई थी जिस'से उसकी फिगर उभर के दिख रही थी.
मेक अप कर'ने के लिए वो थोड़ा झुक गयी थी और उसके भरे हुए चूतड उभर आए थे. जैसे आदत से मजबूर वैसे मेने उसके चूतड को गौर से देखा और मुझे उसके चूतड़'पर अंदर पह'नी हुई पैंटी की लाइन नज़र आई और में खूस हुआ. लड़कियों और औरतों के चूतड को निहार कर उनके अंदर पह'नी हुई पैंटी की लाइन ढूँढना मेरा पसंदीदा खेल था और उस'से मुझे एक अलग ही खुशी मिल'ती थी. और वो चूतड अगर मेरे बहन के हो तो फिर में कुच्छ ज़्यादा ही खूश होता हूँ. भूके भेड़ीये की तरह में संगीता दीदी के चूतड को पिछे से देख रहा था.
हम लोग तैयार हो गये और फिर एक रेस्टोरेंट में खाना खाने गये. खाने के बाद बाकी जो हरे भरे दर्श'नीय स्थान रह गये थे उन्हे देख'ना हम'ने चालू किया. ज़्यादा तर दर्श'नीय स्थान शांत जगह के थे. हम दोनो भाई-बहेन वहाँ प्रेमी जोड़ी की तरह घूमे. फिरते सम'य कभी कभी संगीता दीदी मासूमीयत से मेरा हाथ पकड़ लेती थी. किसी जगह चढ़'ने, उतर'ने के लिए उसे में हाथ देकर मदद करता था और बाद में वो मेरा हाथ वैसे ही पकड़ के रख'ती थी. कोई साँस रोक'नेवाला, बहुत ही प्यारा सीन देख'ते सम'य वो मुझे ज़ोर से चिप'का के खड़ी रह'ती थी. कभी वो मेरे पिछे खड़ी रह'ती थी तो कभी में उसके पिछे उसे चिपक के खड़ा रहता था.
संगीता दीदी जब मुझ से चिपक के खड़ी रह'ती थी तब उसकी गदराई छा'ती मेरे बदन पर दब'ती थी. किसी दर्श'नीय स्थान पर अगर रेलंग है तो में उस पर हाथ रख'कर खड़ा रहता और संगीता दीदी आकर मुझसे चिपक के खड़ी रह'ती थी. उस'से कभी कभी मेरा हाथ उसकी टाँगो के बीच में दब जाता था. में ठीक से बोल नही सकता लेकिन शायद मेरे हाथ को उसकी चूत या चूत के उप्पर की जगह का स्पर्श महसूस होता था. जब में उसके पिछे उस'से सट के खड़ा रहता था तब उसके भरे हुए चुत्तऱ पर मेरा लंड दब जाता था और उस'से मेरा लंड थोड़ा सा कड़क हो जाता था. उसे वो महसूस होता होगा लेकिन कभी वो बाजू में हटी नही. उलटा जब मेरा लंड ज़्यादा ही कड़क होता था तब में खुद बाजू हटता था ये सोच'कर के उसे वो ज़्यादा महसूस ना हो.
मेक अप कर'ने के लिए वो थोड़ा झुक गयी थी और उसके भरे हुए चूतड उभर आए थे. जैसे आदत से मजबूर वैसे मेने उसके चूतड को गौर से देखा और मुझे उसके चूतड़'पर अंदर पह'नी हुई पैंटी की लाइन नज़र आई और में खूस हुआ. लड़कियों और औरतों के चूतड को निहार कर उनके अंदर पह'नी हुई पैंटी की लाइन ढूँढना मेरा पसंदीदा खेल था और उस'से मुझे एक अलग ही खुशी मिल'ती थी. और वो चूतड अगर मेरे बहन के हो तो फिर में कुच्छ ज़्यादा ही खूश होता हूँ. भूके भेड़ीये की तरह में संगीता दीदी के चूतड को पिछे से देख रहा था.
हम लोग तैयार हो गये और फिर एक रेस्टोरेंट में खाना खाने गये. खाने के बाद बाकी जो हरे भरे दर्श'नीय स्थान रह गये थे उन्हे देख'ना हम'ने चालू किया. ज़्यादा तर दर्श'नीय स्थान शांत जगह के थे. हम दोनो भाई-बहेन वहाँ प्रेमी जोड़ी की तरह घूमे. फिरते सम'य कभी कभी संगीता दीदी मासूमीयत से मेरा हाथ पकड़ लेती थी. किसी जगह चढ़'ने, उतर'ने के लिए उसे में हाथ देकर मदद करता था और बाद में वो मेरा हाथ वैसे ही पकड़ के रख'ती थी. कोई साँस रोक'नेवाला, बहुत ही प्यारा सीन देख'ते सम'य वो मुझे ज़ोर से चिप'का के खड़ी रह'ती थी. कभी वो मेरे पिछे खड़ी रह'ती थी तो कभी में उसके पिछे उसे चिपक के खड़ा रहता था.
संगीता दीदी जब मुझ से चिपक के खड़ी रह'ती थी तब उसकी गदराई छा'ती मेरे बदन पर दब'ती थी. किसी दर्श'नीय स्थान पर अगर रेलंग है तो में उस पर हाथ रख'कर खड़ा रहता और संगीता दीदी आकर मुझसे चिपक के खड़ी रह'ती थी. उस'से कभी कभी मेरा हाथ उसकी टाँगो के बीच में दब जाता था. में ठीक से बोल नही सकता लेकिन शायद मेरे हाथ को उसकी चूत या चूत के उप्पर की जगह का स्पर्श महसूस होता था. जब में उसके पिछे उस'से सट के खड़ा रहता था तब उसके भरे हुए चुत्तऱ पर मेरा लंड दब जाता था और उस'से मेरा लंड थोड़ा सा कड़क हो जाता था. उसे वो महसूस होता होगा लेकिन कभी वो बाजू में हटी नही. उलटा जब मेरा लंड ज़्यादा ही कड़क होता था तब में खुद बाजू हटता था ये सोच'कर के उसे वो ज़्यादा महसूस ना हो.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.