14-10-2021, 05:24 PM
अंदर आने के बाद मेने झट से अप'ने पूरे कपड़े निकाल दिए और में नंगा हो गया. मेने देखा के संगीता दीदी ने अपना गीला लिबास शावर की रोड पर सूख'ने के लिए डाला था. वो देख'कर मेने झट से सोचा के जैसे उस'का लिबास गीला हो गया है वैसे उसकी ब्रेसीयर और पैंटी भी गीली हो गयी थी तो फिर उस'ने वो कहाँ पर सूख'ने के लिए डाली होंगी? क्योंकी मुझे उसके वो वस्त्र दिखाई नही दे रहे थे. मेने उस'का लिबास उठाकर देखा तो उसके नीचे मुझे वे नज़र आए.
फिर क्या!! मेने संगीता दीदी की वो गीली ब्रेसीयर और पैंटी निकाली. उनको सिर्फ़ हाथ में लेते ही मेरा लंड स्प्रिंग की तरह उठ गया. पैंटी की वो जगहा जहाँ पर मेरी बहेन की चूत चिप'की होती है, उस जगह को मेने प्यार से सूंघ लिया. उसकी चूत की गंध से नशीला होकर अप'ने आप मेरा हाथ मेरे कड़े लंड पर गया और में मूठ मार'ने लगा. फिर मेने उसकी ब्रेसीयर ले ली और उस'का कप में चूस'ने लगा. नीचे उसकी पैंटी मेने मेरे लंड'पर लपेट ली और मेरा लंड ज़ोर ज़ोर्से हिला'ने लगा. फिर में आँखे बंद कर के याद कर'ने लगा के संगीता दीदी के साथ होटेल के रूम से बाहर निकल'ने के बाद से वापस आने तक मेने कैसे कैसे उस'का स्पर्श सुख और नयन सुख लिया था. उन ख़याल से दो मिनिट में ही मेरे लंड से वीर्य की पिच'करी छुट गयी और संगीता दीदी की पैंटी उस'से भर गयी.
मेरे विर्यपतन के बाद में थोड़ा शांत हो गया. फिर मेने संगीता दीदी की पैंटी पानी से साफ की और फिर वो ब्रेसीयर और पैंटी मेने ड्रेस के नीचे पह'ले जैसी वापस रख दी. मेरे गीले कपड़े भी मेने वहाँ सूख'ने के लिए डाल दिए. झट से में फ्रेश हो गया और दूसरा लिबास पहन'कर बाहर आया. मेने देखा के संगीता दीदी आईने में देख'कर मेक अप कर रही थी. उस'ने आसमानी रंग की साऱी पहन ली थी.
"अरे, दीदी! तुम'ने वापस साऱी पहन ली?"
"फिर क्या करूँ, सागर? मेरे पास एक ही लिबास था जो गीला हो गया. तो मुझे वापस साऱी पहेन'नी पड़ी,"
आईने में से मेरी तरफ देख'कर संगीता दीदी ने कहा, "लेकिन तुम फ़िक्र मत करो, सागर. भले मेने साऱी पहन ली है फिर भी में तुम्हारी दोस्त ही रहूंगी."
"ओहा, दीदी! मुझे इस में कोई ऐतराज नही है. साऱी तो तुम्हे अच्च्ची ही दिख'ती है. उलटा में ये कहूँगा के ड्रेस से ज़्यादा तुम साऱी में अच्छी दिख'ती हो."
"वो तो में लगूंगी ही, सागर. अब क्या मेरी उम्र लिबास पहन'ने जैसी रही क्या?"
"ऐसा क्यों कह रही हो, दीदी? तुम्हें लिबास भी अच्छा दिखता है. सच कहूँ तो तुम'हे बीच बीच में लिबास पहनना चाहिए."
"अब वो संभव नही है, सागर! क्योंकी तुम्हारे जीजू को मेरा लिबास पहेनना पसंद नही है. काफ़ी महीने हो गये मेने लिबास पहना ही नही था. लेकिन ठीक है! मुझे उस'से कोई ऐतराज नही है. मुझे भी साऱी पहनना अच्च्छा लगता है."
'और मुझे भी!'.
फिर क्या!! मेने संगीता दीदी की वो गीली ब्रेसीयर और पैंटी निकाली. उनको सिर्फ़ हाथ में लेते ही मेरा लंड स्प्रिंग की तरह उठ गया. पैंटी की वो जगहा जहाँ पर मेरी बहेन की चूत चिप'की होती है, उस जगह को मेने प्यार से सूंघ लिया. उसकी चूत की गंध से नशीला होकर अप'ने आप मेरा हाथ मेरे कड़े लंड पर गया और में मूठ मार'ने लगा. फिर मेने उसकी ब्रेसीयर ले ली और उस'का कप में चूस'ने लगा. नीचे उसकी पैंटी मेने मेरे लंड'पर लपेट ली और मेरा लंड ज़ोर ज़ोर्से हिला'ने लगा. फिर में आँखे बंद कर के याद कर'ने लगा के संगीता दीदी के साथ होटेल के रूम से बाहर निकल'ने के बाद से वापस आने तक मेने कैसे कैसे उस'का स्पर्श सुख और नयन सुख लिया था. उन ख़याल से दो मिनिट में ही मेरे लंड से वीर्य की पिच'करी छुट गयी और संगीता दीदी की पैंटी उस'से भर गयी.
मेरे विर्यपतन के बाद में थोड़ा शांत हो गया. फिर मेने संगीता दीदी की पैंटी पानी से साफ की और फिर वो ब्रेसीयर और पैंटी मेने ड्रेस के नीचे पह'ले जैसी वापस रख दी. मेरे गीले कपड़े भी मेने वहाँ सूख'ने के लिए डाल दिए. झट से में फ्रेश हो गया और दूसरा लिबास पहन'कर बाहर आया. मेने देखा के संगीता दीदी आईने में देख'कर मेक अप कर रही थी. उस'ने आसमानी रंग की साऱी पहन ली थी.
"अरे, दीदी! तुम'ने वापस साऱी पहन ली?"
"फिर क्या करूँ, सागर? मेरे पास एक ही लिबास था जो गीला हो गया. तो मुझे वापस साऱी पहेन'नी पड़ी,"
आईने में से मेरी तरफ देख'कर संगीता दीदी ने कहा, "लेकिन तुम फ़िक्र मत करो, सागर. भले मेने साऱी पहन ली है फिर भी में तुम्हारी दोस्त ही रहूंगी."
"ओहा, दीदी! मुझे इस में कोई ऐतराज नही है. साऱी तो तुम्हे अच्च्ची ही दिख'ती है. उलटा में ये कहूँगा के ड्रेस से ज़्यादा तुम साऱी में अच्छी दिख'ती हो."
"वो तो में लगूंगी ही, सागर. अब क्या मेरी उम्र लिबास पहन'ने जैसी रही क्या?"
"ऐसा क्यों कह रही हो, दीदी? तुम्हें लिबास भी अच्छा दिखता है. सच कहूँ तो तुम'हे बीच बीच में लिबास पहनना चाहिए."
"अब वो संभव नही है, सागर! क्योंकी तुम्हारे जीजू को मेरा लिबास पहेनना पसंद नही है. काफ़ी महीने हो गये मेने लिबास पहना ही नही था. लेकिन ठीक है! मुझे उस'से कोई ऐतराज नही है. मुझे भी साऱी पहनना अच्च्छा लगता है."
'और मुझे भी!'.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.