14-10-2021, 05:18 PM
ये सून'कर में हैरान हो गया!! ठीक है. मेने संगीता दीदी को कहा के हम दोस्तो जैसे रहेंगे लेकिन मंगलसूत्र निकाल के रखना बहुत ही हो गया. खैर! मुझे उस'से कुच्छ आपत्ती नही थी बाल्की मेरी बहेन जैसा में कह रहा हूँ वैसा सुन रही है ये देख'कर में खूस हो रहा था. संगीता दीदी के बारे में मेने जो भी कामूक कल्पनाएं की थी वो अब मुझे सच होती नज़र आ रही थी और उस वजह से मेरे मन में खूशी के लड्डू फूट'ने लगे.
"हाँ तो, सागर! मेने तुम्हारी 'प्रेमीका' कहलाने के लिए इत'ना सब किया है चलेगा ना?" ऐसा कह'कर संगीता दीदी ने मुझे आँख मारी.
"चलेगा क्या, दीदी.. दौड़ेगा!" मेने खूस होकर कहा, "एकदम परफ़ेक्ट, सिस्टर!"
"क्या? क्या बोले तुम??" संगीता दीदी ने आँखें बड़ी बड़ी करके मुझे कहा, "नोट सिस्टर.. संगीता. से संगीता.!"
"ओहा. सारी, दी...... ऊफ.. संगीता." और हम दोनो खिल खिलाकर हंस'ने लगे.
"अच्च्छा, सागर! तो फिर चालू करे हमारी पिक'नीक?"
"वाइ नोट. संगीता!" हंसते हंसते 'संगीता' इस शब्द पर ज़ोर देकर मेने कहा और हाथ बढ़ा के उसे इशारा किया के वो मेरे हाथ में हाथ डाले.
"होल्ड आन. मिस्टर!" संगीता दीदी ने मुझे डाँट'ते हुए कहा, "ज़्यादा बेशरामी मत दिखाओ, सागर!"
"सारी, दी..... संगीता! में सिर्फ़ कह रहा था के तुम्हारा हाथ मेरे हाथ में डाल'कर चलो." मेने हड़बड़ा कर कहा ये सोच'कर के संगीता दीदी को मेरा वैसे कर'ना शायद पसंद नही आया. मेरे चेहरे का रंग उड़ गया और मुझे मायूस होते देख संगीता दीदी खिल खिल'कर हंस'ने लगी.
"इटस. ओके., सागर!" उस'ने हँसते हँसते कहा, "में मज़ाक कर रही थी. आय. डोन्ट माइंड, होल्डींग युवर हन्ड, डियर! लेकिन जब हम दोनो अकेले होंगे तभी!" ऐसा कह'कर हँसते हँसते संगीता दीदी ने मेरे हाथ में हाथ डाल दिया और मेरा हाथ अप'नी छाती पर दबाके पकड़ा. उसकी मुलायम छाती के स्पर्श से में तो हवा में उड़'ने लगा. एक अलग ही धुन में और अलग नाता जोड़ के हम दोनो, भाई-बहेन रूम से बाहर निकले
होटेल की लिफ्ट के बाहर आते आते संगीता दीदी ने मेरा हाथ छ्चोड़ दिया. फिर हम होटेल से बाहर आए. वहाँ पर हम'ने एक रिक्शा बुक की और उस रिक्शा से हम दो तीन अच्छे स्पॉट देख'ने के लिए गये. रिक्शा में संगीता दीदी मुझसे चिपक के बैठ'ती थी. कभी कभी वो मेरे हाथ में हाथ डाल'कर बैठ'ती थी जिस'से मेरी बाँहों पर उसकी छा'ती से मालीश होती थी. हम दोनो बातें कर रहे थे. में उसे खंडाला के बारे में बहुत कुच्छ बता रहा था. वो दो तीन दर्श'नीय स्थान देख'ने के बाद हम'ने रिक्शा छ्चोड़ दी.
बाद में हम दोनो पैदल ही घूमे. में संगीता दीदी को हरदम खूस रख'ने की कोशीष करता था. जो भी वो बोल'ती थी या माँग'ती थी वो सब में उसे देता था. उसकी काफ़ी 'इच्छाये' में पूरी कर रहा था. उसे अगर किसी जगह जाना है तो में उसे ले जाया करता था. उसे अगर घोड़े पर बैठना है तो में उसे बिठाता. उसे अगर कुच्छ खाना है तो में उसे वो देता था. दोपहर तक हमलोग घूम रहे थे और तकरीबन आधे दर्श'नीय स्थान हम'ने देख लिए.
"हाँ तो, सागर! मेने तुम्हारी 'प्रेमीका' कहलाने के लिए इत'ना सब किया है चलेगा ना?" ऐसा कह'कर संगीता दीदी ने मुझे आँख मारी.
"चलेगा क्या, दीदी.. दौड़ेगा!" मेने खूस होकर कहा, "एकदम परफ़ेक्ट, सिस्टर!"
"क्या? क्या बोले तुम??" संगीता दीदी ने आँखें बड़ी बड़ी करके मुझे कहा, "नोट सिस्टर.. संगीता. से संगीता.!"
"ओहा. सारी, दी...... ऊफ.. संगीता." और हम दोनो खिल खिलाकर हंस'ने लगे.
"अच्च्छा, सागर! तो फिर चालू करे हमारी पिक'नीक?"
"वाइ नोट. संगीता!" हंसते हंसते 'संगीता' इस शब्द पर ज़ोर देकर मेने कहा और हाथ बढ़ा के उसे इशारा किया के वो मेरे हाथ में हाथ डाले.
"होल्ड आन. मिस्टर!" संगीता दीदी ने मुझे डाँट'ते हुए कहा, "ज़्यादा बेशरामी मत दिखाओ, सागर!"
"सारी, दी..... संगीता! में सिर्फ़ कह रहा था के तुम्हारा हाथ मेरे हाथ में डाल'कर चलो." मेने हड़बड़ा कर कहा ये सोच'कर के संगीता दीदी को मेरा वैसे कर'ना शायद पसंद नही आया. मेरे चेहरे का रंग उड़ गया और मुझे मायूस होते देख संगीता दीदी खिल खिल'कर हंस'ने लगी.
"इटस. ओके., सागर!" उस'ने हँसते हँसते कहा, "में मज़ाक कर रही थी. आय. डोन्ट माइंड, होल्डींग युवर हन्ड, डियर! लेकिन जब हम दोनो अकेले होंगे तभी!" ऐसा कह'कर हँसते हँसते संगीता दीदी ने मेरे हाथ में हाथ डाल दिया और मेरा हाथ अप'नी छाती पर दबाके पकड़ा. उसकी मुलायम छाती के स्पर्श से में तो हवा में उड़'ने लगा. एक अलग ही धुन में और अलग नाता जोड़ के हम दोनो, भाई-बहेन रूम से बाहर निकले
होटेल की लिफ्ट के बाहर आते आते संगीता दीदी ने मेरा हाथ छ्चोड़ दिया. फिर हम होटेल से बाहर आए. वहाँ पर हम'ने एक रिक्शा बुक की और उस रिक्शा से हम दो तीन अच्छे स्पॉट देख'ने के लिए गये. रिक्शा में संगीता दीदी मुझसे चिपक के बैठ'ती थी. कभी कभी वो मेरे हाथ में हाथ डाल'कर बैठ'ती थी जिस'से मेरी बाँहों पर उसकी छा'ती से मालीश होती थी. हम दोनो बातें कर रहे थे. में उसे खंडाला के बारे में बहुत कुच्छ बता रहा था. वो दो तीन दर्श'नीय स्थान देख'ने के बाद हम'ने रिक्शा छ्चोड़ दी.
बाद में हम दोनो पैदल ही घूमे. में संगीता दीदी को हरदम खूस रख'ने की कोशीष करता था. जो भी वो बोल'ती थी या माँग'ती थी वो सब में उसे देता था. उसकी काफ़ी 'इच्छाये' में पूरी कर रहा था. उसे अगर किसी जगह जाना है तो में उसे ले जाया करता था. उसे अगर घोड़े पर बैठना है तो में उसे बिठाता. उसे अगर कुच्छ खाना है तो में उसे वो देता था. दोपहर तक हमलोग घूम रहे थे और तकरीबन आधे दर्श'नीय स्थान हम'ने देख लिए.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.