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Romance मोहब्बत का सफ़र
#3
जब इस तरह की बाधा होती है, तो लड़कियों से दोस्ती करने वाले सपने पूरे नहीं होते। ऐसे सपने तब ही पूरे हो सकते हैं जब आपके जीवन में ईश्वरीय हस्तक्षेप हो। तो इस मामले में मुझे एक ईश्वरीय हस्तक्षेप मिला। मैं पढ़ाई लिखाई में अच्छा था - वास्तव में - बहुत अच्छा। एक दिन, हमारी क्लास टीचर, जो हमारी हिंदी (साहित्य, व्याकरण, कविता और संस्कृत) की शिक्षिका भी थीं, ने दो दो छात्रों के स्टडी ग्रुप्स बना दिए, ताकि हम एक दूसरे के साथ प्रश्न-उत्तर रीवाइस कर सकें। सौभाग्य से रचना मेरे साथ जोड़ी गई थी। क्या किस्मत! बिलारी के भाग से छींका टूटा! तो, हम आपस में प्रश्नोत्तर कर रहे थे, और बीच बीच में कभी-कभी बात भी कर रहे थे।

ऐसे ही एक बार मैंने कुढ़ते हुए कहा, “ये लङ्लकार नहीं, लण्ड लकार है..” [लकार संस्कृत भाषा में ‘काल’ को कहते हैं, और लङ्लकार भूत-काल है]

मैंने बस लिखे हुए एक शब्द के उच्चारण को भ्रष्ट किया था। लेकिन उतने में ही अर्थ का अनर्थ हो गया। मैंने सचमुच में यह नादानी में किया था, और मुझे इस नए शब्द का क्या नहीं मालूम था। यह कोई शब्द भी था, मुझे तो यह भी नहीं मालूम था। रचना मेरी बात सुन कर चौंक गई। सबसे पहले तो उसको मेरी बात पर विश्वास ही नहीं हुआ। वो मुझे एक ईमानदार और सभ्य व्यक्ति समझती थी। मैंने आज तक एक भी गाली-नुमा शब्द नहीं बोला था। बेशक, रचना हैरान थी कि मैंने ऐसा शब्द कैसे बोल दिया। खैर, अंततः उसने मुझसे कहा, 

“नहीं अमर, हम ऐसी बात नहीं करते।”

“क्यों क्या हुआ?”

“क्या तुम इसका मतलब नहीं जानते?”

“किसका मतलब?”

“इसी शब्द का... जो तुमने अभी अभी कहा।”

“शब्द? कौन सा? तुम्हारा मतलब लण्ड से है?”

“हाँ - वही। और इसे ज़ोर से मत बोलो। कोई सुन लेगा।”
 
“सुन लेगा? अरे, लेकिन मुझे पता ही नहीं है कि इसका क्या मतलब है! क्या इसका कोई मतलब भी होता है?” मैं वाकई उलझन में था।
 
बाद में, लंच ब्रेक के दौरान रचना ने मुझे ‘लण्ड’ शब्द का अर्थ बताया। मुझे आश्चर्य हुआ कि एक लिंग का ऐसा नाम भी हो सकता है। जब मैंने उसे बताया कि लिंग के लिए मुझे जो एकमात्र शब्द पता था वह था ‘छुन्नी’, तो वो ज़ोर ज़ोर से वह हँसने लगी। उसने मुझे समझाया छोटे लड़कों के लिंग को छुन्नी या छुन्नू कह कर बुलाते हैं। लड़कियों के पास छुन्नी नहीं होती है। उसने मुझे यह भी बताया कि बड़े लड़कों और आदमियों के लिंग को लण्ड कहा जाता है। यह कुछ और नहीं, बस छुन्नी है, जिसका आकार बढ़ सकता है, और सख़्त हो सकता है। एक दिलचस्प जानकारी! है ना? 

“अच्छा, एक बात बताओ। तुम्हारा छुन्नू ... क्या उसका आकार बढ़ता है?” रचना ने उत्सुकता से पूछा। 

मुझे थोड़ा हिचकिचाहट सी हुई कि मेरी सहपाठिन मुझसे ऐसा प्रश्न पूछ रही है, फिर भी मैंने उसके प्रश्न की पुष्टि करी, “हाँ! बढ़ता तो है, लेकिन कभी-कभी ही ऐसा होता है।” फिर कुछ सोच कर, “रचना यार, तुम किसी को बताना मत!”

“अरे ये तो अच्छी बात है। छुन्नू का आकार तो बढ़ना ही चाहिए। इसमें शर्मिंदा होने की कोई बात नहीं है। इसका मतलब है कि तुम अब एक आदमी में बदल रहे हो!” रचना से मुस्कुराते हुए मुझसे कहा, “वैसे मैं क्यों किसी को यह सब बताऊँगी?”

“नहीं! बस ऐसे ही कहा, तुमको आगाह करने के लिए। माँ और डैड को भी नहीं मालूम है न, इसलिए!”

“हम्म्म!”

“रचना?”

“हाँ?”

“एक बात कहूँ?”

“हाँ! बोलो।”

“तुम्हारे ... ये जो ... तुम्हारे दूध हैं न, वो मेरी माँ जैसे हैं।”

“सच में?”

मैंने ‘हाँ’ में सर हिलाया।

“हम्म इसका मतलब आंटी के दूध छोटे हैं।”

“हैं?”

“हाँ! मेरी मम्मी के मुझसे दो-गुनी साइज़ के होंगे। बाल-बच्चे वाली औरतों के दूध तो बड़े ही होते हैं न!”

“ओह!”

“मेरे उतने बड़े नहीं हैं। बाकी लड़कियों जितने ही हैं। लेकिन मैं शर्ट के नीचे केवल शमीज़ पहनती हूँ। बाकी लड़कियाँ ब्रा भी पहनती हैं!”

“ओह?”

रचना ने मेरा उलझन में पड़ी शकल देखी और हँसते हुए बोली, “तुमको नहीं मालूम कि ब्रा और शमीज़ क्या होती है?”

“नहीं!” मैं शरमा गया। 

“कोई बात नहीं। बाद में कभी बता दूँगी। लेकिन एक बात बताओ, तुमको हमारे ‘दूध’ में इतना इंटरेस्ट क्यों है?” रचना ने मेरी टाँग खींची। 

“उनमे से दूध निकलता है न, इसलिए!”

“बुद्धू हो तुम!” रचना ने हँसते हुए प्रतिकार किया, “मेरे ख़याल से ये शरीर के सबसे बेकार अंगों में से एक हैं। सड़क पर निकलो तो हर किसी की आँखें इनको ही घूरती रहती हैं। ब्रा पहनो तो दर्द होने लगता है। ठीक से दौड़ भी नहीं सकती, क्योंकि दौड़ने पर ये उछलते हैं, और दर्द करते हैं। तुम लोग तो अपनी छाती खोल कर बैठ सकते हो, लेकिन हमको तो इन्हे ढँक कर रखना पड़ता है!”

जाहिर सी बात है, रचना अपने स्तनों पर चर्चा नहीं करना चाहती थी, इसलिए मैंने इस मामले को आगे नहीं बढ़ाया। लेकिन उस दिन के बाद से मैं और रचना बहुत अच्छे दोस्त बन गए। जब एक दूसरे की अंतरंग बातें मालूम होती हैं, तब मित्रता में प्रगाढ़ता आ जाती है। 


उन दिनों लड़कियों का अपने सहपाठी लड़कों के घर आना जाना एक असामान्य सी बात थी। लेकिन एक अच्छी बात यह हुई कि हमारी माएँ एक दूसरे की बहुत अच्छी दोस्त बन गई थीं। क्योंकि जैसा कि मैंने आपको पहले भी बताया था कि हमारे पिता एक ही विभाग में थे। चूंकि, कक्षा में, रचना और मैं स्टडी पार्टनर थे, इसलिए हमारे माता-पिता के लिए हमें घर पर भी साथ पढ़ने की अनुमति देना तार्किक रूप से ठीक था। इसलिए, रचना और मैं दोनों ही एक-दूसरे के घर पढ़ाई के लिए जाते थे। वैसे रचना ही थी जो अक्सर मेरे घर आती थी, क्योंकि उसे मेरी माँ के हाथ का खाना बहुत पसंद था और वह उसका स्वाद लेने का कोई मौका नहीं छोड़ती थी। उसकी माँ भी इसके लिए उसको रोकती नहीं थीं। 

एक दिन वह मेरे घर आई, और हमने अपना अध्ययन सत्र शुरू किया। हमने अपना होमवर्क किया, और अगले दिन के लिए लेसन पढ़ लिया। आज यह सब बहुत जल्दी ही हो गया था, और अचानक ही, हमारे पास करने के लिए कुछ नहीं था। रचना अपने घर जाने के बजाय टालमटोल करने लगी। 
ऐसा नहीं है कि मुझे उसका साथ पसंद नहीं था। मैं भी चाहता था कि वो जितना संभव है, मेरे साथ रहे। 

“क्या तुम कुछ खेलना चाहती हो?” मैंने कुछ देर बाद पूछा।

“जैसे क्या?”

“लूडो?” मैंने सुझाव दिया।

उसने सर हिलाया, “ठीक है।”

हम कुछ देर तक लूडो खेले, लेकिन यह चार लोगों के साथ बैठ कर खेलने जैसा मजेदार नहीं था। बस एक काम चलाऊ खेल था। हम लगभग आधे घंटे तक खेले, और फिर जल्दी से ऊबने लगे। अगर उसको रोकना का कोई बहाना नहीं है, तो जाहिर सी बात है कि उसे अपने घर के लिए निकल जाना चाहिए। मैंने आह भरी।

“क्या हुआ?” उसने पूछा।

“ऊब गया यार! मेरा मतलब है, लूडो खेलना मजेदार है, लेकिन एक दो बार ही!”

“हाँ... और तुम्हारे पास टीवी भी नहीं है।” उसने कहा।

मेरे माँ और डैड ने टीवी नहीं खरीदने का फैसला किया - हमारे पास मनोरंजन के लिए केवल एक रेडियो और एक कैसेट प्लेयर था, और हम बस कभी कभार ही फिल्मों के लिए बाहर जाते थे, शायद साल में दो तीन बार।

“हाँ।” मैंने कुछ देर सोचा, “ठीक है, कुछ और है, जो तुम खेलना चाहती हो?”

“क्यों?” उसने इठलाते हुए पूछा। 

“तुम्हारे साथ मुझे अच्छा लगता है!” में पूरी संजीदगी से कहा। 

वो मुस्कुराई। उसने एक पल के लिए कुछ सोचा और फिर कहा, “अगर तुम चाहो तो हम कुछ नया खेल खेल सकते हैं।”

“क्या?” मुझे उत्सुकता हुई। 

“तुम्हें वो दिन याद है जब तुम क्लास में लण्ड लण्ड चिल्ला रहे थे?”

“मैं चिल्ला नहीं रहा था।” उस दिन को याद करके मुझे शर्म आ रही थी। मासूमियत एक अनमोल वस्तु है। जितना अधिक आप जानने लगते हैं, आप उतने ही अधिक जागरूक होते जाते हैं, और उतनी ही मासूमियत आप खोने लगते हैं।

“ठीक है ठीक है! अच्छा बाबा, तुम चिल्ला नहीं रहे थे।” उसने दाँत निपोरते हुए कहा। 

“लेकिन तुम खेलने के बारे में क्या कह रही थी?”

“सोच रही थी कि क्या तुम मुझे अपनी छुन्नी से खेलने दे सकते हो?”

“क्या! क्या तुम पागल हो गई हो? माँ देखेगी, तो मुझे और तुम्हें मार डालेगी।”

“अमर, तुम डरते क्यों हो? तुम्हारी माँ अपनी पड़ोसी से बात कर रही हैं, और उनके लौटने में कुछ समय लगेगा।”

रचना की इच्छा! ऐसे कैसे मैं उसके सामने नंगा हो जाऊँ? मैं अनिश्चय से घबराया हुआ था और सबसे बड़ी बात, शर्मिंदा था। माँ और डैड के सामने नंगा होना एक बात है, लेकिन अपनी सहपाठिन के सामने कैसे?

“अच्छा,” उसने अपना मास्टरस्ट्रोक मारा, “अगर मैं तुम्हें अपना दूध (स्तन) देखने दूँ तो? क्या कहते हो?”

‘क्या सच में?’ मैंने सोचा! यह एक बड़ी साहसी बात थी। ऐसी बात आज तक किसी भी लड़की ने मुझसे नहीं कही थी।

“क्या!” मुझे विश्वास ही नहीं हुआ कि वो मुझे अपने स्तन दिखाने की बात कह रही थी। 

रचना ने थोड़ा मुस्कुराते हुए कहा, “तुम मुझे नंगा देखना चाहती हो?”

“नहीं …” मैंने झूठ बोल दिया। 

रचना ने मुँह बनाते हुए कहा, “तू झूठ बोल रहा है अमर।”

“नहीं!” मैंने विरोध किया। लेकिन आवाज़ में दम नहीं था। 

“मैं साफ़ देख रही हूँ कि तुम झूठ बोल रहे हो ... तुम्हारी छुन्नी देखो - उसका आकार बढ़ रहा है!” उसने मेरी दशा का मज़ाक उड़ाते हुए कहा। 

“क्या …!” मैंने नीचे देखा; मेरे निक्कर के अंदर मेरा छुन्नू एक छोटा सा तम्बू बना रहा था। कोई भी देख कर समझ सकता था। 

“बोलो फिर? तुम मुझे नंगी देखना चाहते हो, या नहीं?”

बात तो उसकी सोलह आने सही थी, “ठीक है, हाँ, ठीक है!” मैं बुदबुदाया।

“क्या ठीक है?” रचना ने खिंचाई करने है मधुरता से पूछा।

“देखना चाहता हूँ,” मैंने कहा, “तुमको नंगा!”

“हा हा हा! उसके लिए, माई डीयर फ्रेंड, तुम्हे पहले मुझको अपनी छुन्नी दिखानी होगी।”

मैंने कुछ कहा नहीं। क्या कहता? रचना ने अपना हाथ बढ़ाया। मेरे दोनों टाँगों पर निक्कर का निचला सिरा पकड़ कर उसने नीचे की तरफ खींच लिया। निक्कर के नीचे मैं कुछ भी नहीं पहनता था। मुझे लगता है कि रचना भी यह बात जान गई थी। अचानक ही मेरी साँसें तेज़ तेज़ चले लगीं - जैसे कि मैं कोई लंबी दूरी की दौड़ दौड़ कर आया था। मेरी दिल की धड़कन बहुत बढ़ गई थी। मुझे पक्का यकीन है कि वह मेरे दिल की धड़कन सुन सकती थी। निक्कर का बैण्ड मेरे पुट्ठों से होते हुए नीचे सरक आया और उसी के साथ मेरा लिंग भी उसको ‘सल्यूट’ करते हुए बाहर निकल आया। उसका रंग भी मेरे शरीर के रंग के जैसा ही था - गेहुँआ, चिकना और बिना बालों वाला! मेरा लिंग उसके सामने हिल रहा था, और मेरे दिल की हर धड़कन के साथ साथ स्पंदन कर रहा था। उस समय यह लगभग तीन इंच लंबा था, और यथासंभव स्तंभित था। ऐसा लग रहा था कि यह अपनी ही चमड़ी पर जोर दे रहा हो। नीचे, मेरे अंडकोष ऊपर की तरफ खिंचे हुए लग रहे थे। रचना ने मेरे अंडकोषों को अपने हाथ में लिया।

मैंने साँस छोड़ी और एक पल के लिए अपनी सांस रोक ली। जो भी कुछ हो रहा था, वो मेरे लिए बिलकुल अनोखा अनुभव था। रचना ने मेरे चेहरे की तरफ देखा, और अपने दूसरे हाथ से मेरा निक्कर पूरी तरह उतार दिया। अब मैं केवल शर्ट पहने बैठा था।  मेरा लिंग मेरे पैरों के बीच खड़ा हुआ, लगभग काँप रहा था। मेरा लिंग ही क्या, मेरा पूरा शरीर ही काँप रहा था। और मेरी सांसें लगभग धौंकनी के जैसे चल रही थीं। उसने मुझे और मेरी नंगेपन को बड़ी दिलचस्पी से देखा। लगभग दो-तीन मिनट के मूल्यांकन के बाद, उसने अपना फैसला सुनाया,

“कितना सुंदर है।”

‘सुन्दर है!’ 
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मोहब्बत का सफ़र - by avsji - 14-10-2021, 12:52 PM
RE: मोहब्बत का सफ़र - by avsji - 14-10-2021, 12:59 PM



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