10-10-2021, 02:24 PM
मेरी रूपाली दीदी के हरे भरे खेत को खूब अच्छी तरह जोतने के बाद ढोलू ने अपने मुसल लोड़े की मलाई मेरी बहना के छेद में भर दिया और उनके बगल में लेट गहरी गहरी सांसे लेते हुए मेरी तरफ देखने लगा और मुस्कुराने लगा... उसकी मुस्कान देखकर मैं अपना सर नीचे झुकाने के अलावा कुछ नहीं कर सकता था...
मेरी रूपाली दीदी उसके बगल में नंगी लेटी हुई अपनी चुनमुनिया से गाढ़ा सफेद रस बहा रही थी... और ऊपर पंखे की तरफ देख रही थी..
उस कमरे में अब बिल्कुल सन्नाटा था... बस गहरी गहरी सांसे सुनाई दे रही थी दोनों की.... मैं तो बस मूर्ति बना हुआ बैठा हुआ था..
थोड़ी देर बाद जब मेरी रुपाली दीदी उठने का प्रयास करने लगी तो लड़खड़ा रही थी... लेकिन ढोलू ने मेरी बहन को उठने नहीं दिया... उसने फिर से मेरी बहन को दबोच लिया...
ढोलू: अभी से कहां चल दी मेरी छम्मक छल्लो... मेरी जान अभी तक मैंने तेरी गांड तेरी गांड का बाजा भी तो नहीं बजाया...
और उसने मेरी दीदी को अपने बिस्तर पर घोड़ी बना दिया..
मेरी रूपाली दीदी: नहीं ढोलू..... ऐसा तो मत करो... प्लीज अब मुझे जाने दो बहुत देर होने लगी है... मेरी बेटी घर पर भूखी होगी...
ढोलू ने मेरी बहन की गुहार की कोई परवाह नहीं की... बल्कि तो उसने अपने लोड़े का सुपाड़ा मेरी बहन की गांड के छेद के ऊपर टिका दिया..
ढोलू: चुप कर साली रंडी... मुझे कोई मतलब नहीं तेरी बेटी से... मुझे तुम बिटिया की मम्मी से मतलब है... और उसकी मम्मी की अब गांड मारूंगा..
मेरी रुपाली दीदी: ओह… मेरी गांड उह्ह्ह.... दया करो मुझ पर....
मेरी रूपाली दीदी की सिसकियों और चीखों को सुनकर भी उस दरिंदे को मेरी बहन पर कोई दया नहीं आई... उसने तो एक झटके में ही अपना आधा मुसल मेरी दीदी की गांड के छेद में उतार दिया... और फिर बिना रुके धक्के पर धक्के देने लगा... मेरी दीदी झटपट आने लगी तड़पने लगी चीखने लगी... दर्द के मारे रोने लगे... लेकिन कुछ ही देर में मेरी रूपाली दीदी की तड़प उनकी कामुक सिसकियों में तब्दील हो चुकी थी..
ढोलू ने अपने एक हाथ से मेरी दीदी की कमर थाम रखी थी और दूसरे हाथ से उनके बाल पकड़ रखे थे... बड़ी बेरहमी से और बड़ी तेजी से बिल्कुल दरिंदे की तरह वह मेरी बहन की गांड मार रहा था...
जिस बेशर्मी और कामुकता से मेरी दीदी चीखने चिल्लाने लगी मेरे मन में तो डर था कि कहीं पड़ोसियों ने उनकी आवाज सुन ली तो फिर क्या होगा..
क्या पता वहां के सारे पड़ोसी मेरी बहन की कामुक सिसकियां सुन भी रहे होंगे...
तकरीबन 10 मिनट तक डोलू ने मेरी बहन की गांड मारी... और फिर अपना मक्खन गांड के छेद में ही भर दिया...
10:15 मिनट के अंतराल के बाद ढोलू ने एक बार फिर मेरी रूपाली दीदी को पेला... इस बार उनकी प्यासी नाजुक चुनमुनिया के अंदर... मेरे वहां मौजूद होने के बावजूद भी मेरी दीदी खुल के सहयोग दे रही थी ढोलू को..
मैं तो बुरी तरह से कंफ्यूज होने लगा था कि मेरी बहन एक सती सावित्री औरत है जो अपने पति और अपने परिवार की रक्षा के लिए कुछ भी कर सकती है या फिर एक कामुक रांड जो खुद को गैर मर्दों के ऊपर न्योछावर कर रही है... जानबूझकर...
तीन बार मेरी बहन के अलग-अलग छेद में अपना मक्खन डालने के बाद ढोलू ने मुझे और मेरी बहन को बड़ी शराफत और इज्जत से अपने घर से बाहर जाने दिया...
मेरी दीदी तो लड़खड़ा रही थी... मैंने उनको सहारा दिया... और किसी तरह से ढोलू के घर से बाहर निकल कर बाहर सड़क पर आकर खड़े हो गए... मैंने अपने दोस्त बिल्लू को फोन किया ऑटो लेकर आने के लिए... वह ऑटो ड्राइवर था... उसकी अपनी ऑटो थी...
मैं और मेरी बहन सड़क पर खड़े होकर बिल्लू के आने का इंतजार कर रहे थे... और ढोलू के पड़ोसी अपने घरों से बाहर निकलकर मेरी दीदी को अजीब नजरों से देख रहे थे... उनमें से कई अंकल और आंटी हम दोनों को अच्छी तरह पहचान रहे थे...
मेरी रुपाली दीदी की हालत ही कुछ ऐसी थी... उनकी हालत देखकर कोई भी आसानी से समझ सकता था... बुरी तरह से बिगड़ा हुआ मेकअप, लड़खड़ा रही चाल और इन सबसे बढ़कर अभी कुछ देर पहले जब मेरी दीदी जबरदस्त कामुक सिसकियां ले रही थी... ढोलू के नीचे लेटी हुई... शायद इन लोगों ने सुन लिया था और अच्छी तरह समझ गए थे..
उनमें से एक अंकल जिनका नाम प्रदीप था वह हमें बड़ी गंदी निगाहों से देख रहे थे... उनका हमारे घर आना जाना भी था... वह मेरी मम्मी को भाभी भाभी कहकर बुलाते थे...
तकरीबन 20 मिनट के बाद बिल्लू आ गया था... बिल्लू को भी मेरी बहन की हालत देख कर हैरानी हो रही थी..
बिल्लू: दीदी आपकी तबीयत तो ठीक है ना..
मेरी रूपाली दीदी: नहीं मेरी तबीयत ठीक नहीं है..
मैं: मेरी रुपाली दीदी की तबीयत ठीक नहीं है... तुम जल्दी से हमें हमारे घर पहुंचा दो..
बिल्लू: ठीक है आओ जल्दी बैठ जाओ..
हम दोनों ऑटो में बैठ गया... बिल्लू की नजर तुम मेरी रूपाली दीदी के ऊपर टिकी हुई थी... बार-बार वह अपने साइड मिरर को एडजस्ट करके मेरी रूपाली दीदी को निहार रहा था... मुझे तो बुरा लग रहा था... लेकिन इस समय कुछ बोलना बिल्कुल ठीक नहीं था..
मेरी रूपाली दीदी तो अपनी ही दुनिया में खोई हुई थी... पता नहीं क्या सोच रही थी..
एक मेडिकल शॉप के पास आने के बाद मेरी दीदी ने बिल्लू को ऑटो रोकने के लिए कहा...
ऑटो के रुकने के बाद मेरी रूपाली दीदी ऑटो से निकलकर मेडिकल शॉप के पर पहुंच चुकी थी... मैं भी पीछे पीछे उनके जाकर खड़ा हो गया...
मेडिकल शॉप पर एक बुड्ढा अंकल बैठा हुआ था... और उसका नौकर जिसका नाम मुन्ना है वह काम कर रहा था... मेरी रूपाली दीदी को देखकर दोनों अपना काम छोड़कर उनको ही घूरने लगे थे...
मेरी बहन ने अपनी साड़ी का पल्लू दुरुस्त करने के बाद...
बुड्ढे अंकल को कहा.
मेरी रूपाली दीदी(शरमाते हुए): अंकल जी मुझे एक गर्भनिरोधक दे दीजिए..
बुड्ढा अंकल: हां बिटिया रानी अभी देता हूं...अरे मुन्ना... निकाल दे मेरी बिटिया रानी के लिए गर्भनिरोधक की गोली..
बुड्ढा अंकल: शायद तुम मुझे नहीं जानती होगी बिटिया... मेरा नाम बलबीर है... मैं तुम्हारे पिताजी का बहुत अच्छा दोस्त था... मैं कई बार तुम्हारे घर भी आया हूं जब तुम छोटी थी.. तुम्हारी मम्मी तो मुझे बहुत अच्छी तरह से जानती है..
बुड्ढे बलबीर अंकल की बात सुनकर मेरी रुपाली दीदी बुरी तरह से घबरा उठी थी... फिर भी उन्होंने संयम से काम लिया...
मेरी रूपाली दीदी: जी अंकल जी नमस्ते..
बलवीर अंकल: यह लड़का जो तुम्हारे पीछे खड़ा है यह तुम्हारा भाई है ना...
मेरी रूपाली दीदी: जी अंकल...
बलवीर अंकल: मैं इसकी शक्ल देखकर ही पहचान गया था... दिखने में तुम्हारा भाई बिल्कुल तुम्हारे पिताजी की तरह है...
मुन्ना: यह लीजिए गर्भनिरोधक की गोलियां...
मुन्ना और बलवीर अंकल की निगाहे मेरी रूपाली दीदी की घबराहट के कारण उठती गिरती हुई उनकी चुचियों के ऊपर ही टिकी हुई थी...
मेरे साथ साथ मेरी दीदी भी इस बात को अच्छी तरह समझ रही थी...
दीदी ने अपने पर्स में उस गर्भनिरोधक की गोलियों को रख लिया... और ₹100 का नोट निकालकर बलबीर अंकल को देने लगी.... तब तो उस ठरकी बलबीर अंकल ने मेरी बहन का हाथ ही पकड़ लिया...
बलबीर अंकल: ना .....ना मेरी बिटिया रानी... ऐसा पाप हमसे मत करवाओ... तुम से पैसा लेकर मैं अपने सर के ऊपर पाप नहीं चढ़ाना चाहता हूं... तुम्हारा बाप तो मेरा बहुत अच्छा दोस्त था..
मेरी रूपाली दीदी की कलाई को मसलते हुए... बहुत मजे किए हैं हम लोगों ने अपनी जवानी में साथ मिलकर...
तुम्हारा नाम क्या है बिटिया रानी...
मेरी रूपाली दीदी: अंकल जी मेरा नाम रुपाली है..
बलवीर अंकल: बहुत सुंदर नाम है बिटिया रानी तुम्हारा... बिल्कुल तुम्हारी तरह... तुम्हारी मम्मी भी जवानी में दिखने में बिल्कुल तुम्हारी तरह ही थी...
मेरी रूपाली दीदी का हाथ मसलते हुए बलवीर अंकल अपने घटिया पन पर उतर आए थे.. मेरी मासूम दीदी उनकी नियत को समझने के बावजूद भी कुछ नहीं कर पा रही थी..
मैं इसीलिए सामने जाकर खड़ा हो गया...
और बलवीर अंकल से बोला...
मैं: अंकल जी आपका बहुत-बहुत धन्यवाद... कभी आप हमारे घर आइए... हमें तो अभी घर जाना है...
मैंने कड़े स्वर में कहा था... जिसके कारण बलवीर अंकल ने मेरी दीदी का हाथ छोड़ दिया... लेकिन उसके पहले ही उस ठरकी इंसान में दबाव बनाकर मेरी रूपाली दीदी की हाथों की चूड़ियां तोड़ दी थी..
बलबीर अंकल: हां बेटा... जरूर आऊंगा जब तुम बुलाओगे... तुम्हारे घर की चाय और दूध पीने के लिए....
बुड्ढे अंकल की डबल मीनिंग बात सुनकर मेरे ऊपर ही दीदी शर्मा गई...
मैं: ठीक है अंकल जी आप कल हमारे घर आइएगा...
बोलते हुए मैंने अपनी दीदी का हाथ पकड़ा और उसे मेडिकल शॉप से बाहर निकलने लगे...
मुझे और मेरी रूपाली दीदी को अपनी दुकान से बाहर जाते हुए देख कर बलबीर अंकल और उनका नौकर मुन्ना दोनों ही मेरी बहन की पीठ और उनकी गांड को निहार रहे थे...
मन में सोच रहे थे क्या मस्त पटाखा आइटम है यह साली.. इस रंडी को चोदने में कितना मजा आएगा...
दोनों का अपने-अपने पजामे में टेंट बन गया था... लेकिन कुछ कर नहीं सकते थे... मैं अपनी बहन को लेकर वापस ऑटो में आ चुका था.... हम घर की तरफ चल पड़े ....
बिल्लू रास्ते भर मेरी बहन को अपनी साइड मिरर में देखते हुए मुंगेरीलाल के हसीन सपने देख रहा था... मैं और दीदी उसकी परवाह भी नहीं कर रहे थे... हम दोनों अपनी अपनी चिंता में खोए हुए थे..
जब हम अपने घर के सामने पहुंचे... और ऑटो से उतरे... हमारे आंखों के सामने अंधेरा छाने लगा... सामने का दृश्य ही कुछ ऐसा था... मेरी रूपाली दीदी तो बेहोश होने लगी थी.... मैंने उनको सहारा दिया..
दरअसल हमारे घर के आगे सिक्युरिटी जीप खड़ी की.. जिसके अंदर मेरी मम्मी बैठी हुई थी... सिक्युरिटी मेरी मम्मी को अपनी जीप के पीछे बिठाकर ले जा रही थी....
मेरी रूपाली दीदी उसके बगल में नंगी लेटी हुई अपनी चुनमुनिया से गाढ़ा सफेद रस बहा रही थी... और ऊपर पंखे की तरफ देख रही थी..
उस कमरे में अब बिल्कुल सन्नाटा था... बस गहरी गहरी सांसे सुनाई दे रही थी दोनों की.... मैं तो बस मूर्ति बना हुआ बैठा हुआ था..
थोड़ी देर बाद जब मेरी रुपाली दीदी उठने का प्रयास करने लगी तो लड़खड़ा रही थी... लेकिन ढोलू ने मेरी बहन को उठने नहीं दिया... उसने फिर से मेरी बहन को दबोच लिया...
ढोलू: अभी से कहां चल दी मेरी छम्मक छल्लो... मेरी जान अभी तक मैंने तेरी गांड तेरी गांड का बाजा भी तो नहीं बजाया...
और उसने मेरी दीदी को अपने बिस्तर पर घोड़ी बना दिया..
मेरी रूपाली दीदी: नहीं ढोलू..... ऐसा तो मत करो... प्लीज अब मुझे जाने दो बहुत देर होने लगी है... मेरी बेटी घर पर भूखी होगी...
ढोलू ने मेरी बहन की गुहार की कोई परवाह नहीं की... बल्कि तो उसने अपने लोड़े का सुपाड़ा मेरी बहन की गांड के छेद के ऊपर टिका दिया..
ढोलू: चुप कर साली रंडी... मुझे कोई मतलब नहीं तेरी बेटी से... मुझे तुम बिटिया की मम्मी से मतलब है... और उसकी मम्मी की अब गांड मारूंगा..
मेरी रुपाली दीदी: ओह… मेरी गांड उह्ह्ह.... दया करो मुझ पर....
मेरी रूपाली दीदी की सिसकियों और चीखों को सुनकर भी उस दरिंदे को मेरी बहन पर कोई दया नहीं आई... उसने तो एक झटके में ही अपना आधा मुसल मेरी दीदी की गांड के छेद में उतार दिया... और फिर बिना रुके धक्के पर धक्के देने लगा... मेरी दीदी झटपट आने लगी तड़पने लगी चीखने लगी... दर्द के मारे रोने लगे... लेकिन कुछ ही देर में मेरी रूपाली दीदी की तड़प उनकी कामुक सिसकियों में तब्दील हो चुकी थी..
ढोलू ने अपने एक हाथ से मेरी दीदी की कमर थाम रखी थी और दूसरे हाथ से उनके बाल पकड़ रखे थे... बड़ी बेरहमी से और बड़ी तेजी से बिल्कुल दरिंदे की तरह वह मेरी बहन की गांड मार रहा था...
जिस बेशर्मी और कामुकता से मेरी दीदी चीखने चिल्लाने लगी मेरे मन में तो डर था कि कहीं पड़ोसियों ने उनकी आवाज सुन ली तो फिर क्या होगा..
क्या पता वहां के सारे पड़ोसी मेरी बहन की कामुक सिसकियां सुन भी रहे होंगे...
तकरीबन 10 मिनट तक डोलू ने मेरी बहन की गांड मारी... और फिर अपना मक्खन गांड के छेद में ही भर दिया...
10:15 मिनट के अंतराल के बाद ढोलू ने एक बार फिर मेरी रूपाली दीदी को पेला... इस बार उनकी प्यासी नाजुक चुनमुनिया के अंदर... मेरे वहां मौजूद होने के बावजूद भी मेरी दीदी खुल के सहयोग दे रही थी ढोलू को..
मैं तो बुरी तरह से कंफ्यूज होने लगा था कि मेरी बहन एक सती सावित्री औरत है जो अपने पति और अपने परिवार की रक्षा के लिए कुछ भी कर सकती है या फिर एक कामुक रांड जो खुद को गैर मर्दों के ऊपर न्योछावर कर रही है... जानबूझकर...
तीन बार मेरी बहन के अलग-अलग छेद में अपना मक्खन डालने के बाद ढोलू ने मुझे और मेरी बहन को बड़ी शराफत और इज्जत से अपने घर से बाहर जाने दिया...
मेरी दीदी तो लड़खड़ा रही थी... मैंने उनको सहारा दिया... और किसी तरह से ढोलू के घर से बाहर निकल कर बाहर सड़क पर आकर खड़े हो गए... मैंने अपने दोस्त बिल्लू को फोन किया ऑटो लेकर आने के लिए... वह ऑटो ड्राइवर था... उसकी अपनी ऑटो थी...
मैं और मेरी बहन सड़क पर खड़े होकर बिल्लू के आने का इंतजार कर रहे थे... और ढोलू के पड़ोसी अपने घरों से बाहर निकलकर मेरी दीदी को अजीब नजरों से देख रहे थे... उनमें से कई अंकल और आंटी हम दोनों को अच्छी तरह पहचान रहे थे...
मेरी रुपाली दीदी की हालत ही कुछ ऐसी थी... उनकी हालत देखकर कोई भी आसानी से समझ सकता था... बुरी तरह से बिगड़ा हुआ मेकअप, लड़खड़ा रही चाल और इन सबसे बढ़कर अभी कुछ देर पहले जब मेरी दीदी जबरदस्त कामुक सिसकियां ले रही थी... ढोलू के नीचे लेटी हुई... शायद इन लोगों ने सुन लिया था और अच्छी तरह समझ गए थे..
उनमें से एक अंकल जिनका नाम प्रदीप था वह हमें बड़ी गंदी निगाहों से देख रहे थे... उनका हमारे घर आना जाना भी था... वह मेरी मम्मी को भाभी भाभी कहकर बुलाते थे...
तकरीबन 20 मिनट के बाद बिल्लू आ गया था... बिल्लू को भी मेरी बहन की हालत देख कर हैरानी हो रही थी..
बिल्लू: दीदी आपकी तबीयत तो ठीक है ना..
मेरी रूपाली दीदी: नहीं मेरी तबीयत ठीक नहीं है..
मैं: मेरी रुपाली दीदी की तबीयत ठीक नहीं है... तुम जल्दी से हमें हमारे घर पहुंचा दो..
बिल्लू: ठीक है आओ जल्दी बैठ जाओ..
हम दोनों ऑटो में बैठ गया... बिल्लू की नजर तुम मेरी रूपाली दीदी के ऊपर टिकी हुई थी... बार-बार वह अपने साइड मिरर को एडजस्ट करके मेरी रूपाली दीदी को निहार रहा था... मुझे तो बुरा लग रहा था... लेकिन इस समय कुछ बोलना बिल्कुल ठीक नहीं था..
मेरी रूपाली दीदी तो अपनी ही दुनिया में खोई हुई थी... पता नहीं क्या सोच रही थी..
एक मेडिकल शॉप के पास आने के बाद मेरी दीदी ने बिल्लू को ऑटो रोकने के लिए कहा...
ऑटो के रुकने के बाद मेरी रूपाली दीदी ऑटो से निकलकर मेडिकल शॉप के पर पहुंच चुकी थी... मैं भी पीछे पीछे उनके जाकर खड़ा हो गया...
मेडिकल शॉप पर एक बुड्ढा अंकल बैठा हुआ था... और उसका नौकर जिसका नाम मुन्ना है वह काम कर रहा था... मेरी रूपाली दीदी को देखकर दोनों अपना काम छोड़कर उनको ही घूरने लगे थे...
मेरी बहन ने अपनी साड़ी का पल्लू दुरुस्त करने के बाद...
बुड्ढे अंकल को कहा.
मेरी रूपाली दीदी(शरमाते हुए): अंकल जी मुझे एक गर्भनिरोधक दे दीजिए..
बुड्ढा अंकल: हां बिटिया रानी अभी देता हूं...अरे मुन्ना... निकाल दे मेरी बिटिया रानी के लिए गर्भनिरोधक की गोली..
बुड्ढा अंकल: शायद तुम मुझे नहीं जानती होगी बिटिया... मेरा नाम बलबीर है... मैं तुम्हारे पिताजी का बहुत अच्छा दोस्त था... मैं कई बार तुम्हारे घर भी आया हूं जब तुम छोटी थी.. तुम्हारी मम्मी तो मुझे बहुत अच्छी तरह से जानती है..
बुड्ढे बलबीर अंकल की बात सुनकर मेरी रुपाली दीदी बुरी तरह से घबरा उठी थी... फिर भी उन्होंने संयम से काम लिया...
मेरी रूपाली दीदी: जी अंकल जी नमस्ते..
बलवीर अंकल: यह लड़का जो तुम्हारे पीछे खड़ा है यह तुम्हारा भाई है ना...
मेरी रूपाली दीदी: जी अंकल...
बलवीर अंकल: मैं इसकी शक्ल देखकर ही पहचान गया था... दिखने में तुम्हारा भाई बिल्कुल तुम्हारे पिताजी की तरह है...
मुन्ना: यह लीजिए गर्भनिरोधक की गोलियां...
मुन्ना और बलवीर अंकल की निगाहे मेरी रूपाली दीदी की घबराहट के कारण उठती गिरती हुई उनकी चुचियों के ऊपर ही टिकी हुई थी...
मेरे साथ साथ मेरी दीदी भी इस बात को अच्छी तरह समझ रही थी...
दीदी ने अपने पर्स में उस गर्भनिरोधक की गोलियों को रख लिया... और ₹100 का नोट निकालकर बलबीर अंकल को देने लगी.... तब तो उस ठरकी बलबीर अंकल ने मेरी बहन का हाथ ही पकड़ लिया...
बलबीर अंकल: ना .....ना मेरी बिटिया रानी... ऐसा पाप हमसे मत करवाओ... तुम से पैसा लेकर मैं अपने सर के ऊपर पाप नहीं चढ़ाना चाहता हूं... तुम्हारा बाप तो मेरा बहुत अच्छा दोस्त था..
मेरी रूपाली दीदी की कलाई को मसलते हुए... बहुत मजे किए हैं हम लोगों ने अपनी जवानी में साथ मिलकर...
तुम्हारा नाम क्या है बिटिया रानी...
मेरी रूपाली दीदी: अंकल जी मेरा नाम रुपाली है..
बलवीर अंकल: बहुत सुंदर नाम है बिटिया रानी तुम्हारा... बिल्कुल तुम्हारी तरह... तुम्हारी मम्मी भी जवानी में दिखने में बिल्कुल तुम्हारी तरह ही थी...
मेरी रूपाली दीदी का हाथ मसलते हुए बलवीर अंकल अपने घटिया पन पर उतर आए थे.. मेरी मासूम दीदी उनकी नियत को समझने के बावजूद भी कुछ नहीं कर पा रही थी..
मैं इसीलिए सामने जाकर खड़ा हो गया...
और बलवीर अंकल से बोला...
मैं: अंकल जी आपका बहुत-बहुत धन्यवाद... कभी आप हमारे घर आइए... हमें तो अभी घर जाना है...
मैंने कड़े स्वर में कहा था... जिसके कारण बलवीर अंकल ने मेरी दीदी का हाथ छोड़ दिया... लेकिन उसके पहले ही उस ठरकी इंसान में दबाव बनाकर मेरी रूपाली दीदी की हाथों की चूड़ियां तोड़ दी थी..
बलबीर अंकल: हां बेटा... जरूर आऊंगा जब तुम बुलाओगे... तुम्हारे घर की चाय और दूध पीने के लिए....
बुड्ढे अंकल की डबल मीनिंग बात सुनकर मेरे ऊपर ही दीदी शर्मा गई...
मैं: ठीक है अंकल जी आप कल हमारे घर आइएगा...
बोलते हुए मैंने अपनी दीदी का हाथ पकड़ा और उसे मेडिकल शॉप से बाहर निकलने लगे...
मुझे और मेरी रूपाली दीदी को अपनी दुकान से बाहर जाते हुए देख कर बलबीर अंकल और उनका नौकर मुन्ना दोनों ही मेरी बहन की पीठ और उनकी गांड को निहार रहे थे...
मन में सोच रहे थे क्या मस्त पटाखा आइटम है यह साली.. इस रंडी को चोदने में कितना मजा आएगा...
दोनों का अपने-अपने पजामे में टेंट बन गया था... लेकिन कुछ कर नहीं सकते थे... मैं अपनी बहन को लेकर वापस ऑटो में आ चुका था.... हम घर की तरफ चल पड़े ....
बिल्लू रास्ते भर मेरी बहन को अपनी साइड मिरर में देखते हुए मुंगेरीलाल के हसीन सपने देख रहा था... मैं और दीदी उसकी परवाह भी नहीं कर रहे थे... हम दोनों अपनी अपनी चिंता में खोए हुए थे..
जब हम अपने घर के सामने पहुंचे... और ऑटो से उतरे... हमारे आंखों के सामने अंधेरा छाने लगा... सामने का दृश्य ही कुछ ऐसा था... मेरी रूपाली दीदी तो बेहोश होने लगी थी.... मैंने उनको सहारा दिया..
दरअसल हमारे घर के आगे सिक्युरिटी जीप खड़ी की.. जिसके अंदर मेरी मम्मी बैठी हुई थी... सिक्युरिटी मेरी मम्मी को अपनी जीप के पीछे बिठाकर ले जा रही थी....