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Incest हाए भैय्या,धीरे से, बहुत मोटा है
#14
फिर मैंने लंड अंदर बाहर करने की गति थोड़ा और बढ़ा दी। लंड अभी भी पूरा नहीं घुसा था लेकिन अब कविता मेरे हर धक्के पर अपना चूतड़ उठा उठाकर मेरा साथ दे रही थी।

अब मैं आश्वस्त हो गया था कि लंड निकल भी गया तो भी कविता दुबारा डालने से मना नहीं करेगी। मैंने लंड निकाला और मैं कविता के ऊपर लेट गया। लंड मैंने हाथ से पकड़कर उसकी चूत के द्वार पर रखा और फिर से धक्का दिया कविता को थोड़ी सी दिक्कत इस बार भी हुई लेकिन वो सह गई। उसे भी अब पता चल गया था कि लंड और चूत के मिलन से कितना आनन्द आता है। पहले धीरे धीरे फिर तेजी से मैं धक्के लगाने लगा।

धीरे धीरे मैं आनन्द के सागर में गहरे और गहरे उतरता जा रहा था। पता नहीं कैसे मेरे मुँह से ये शब्द निकलने लगे,"कविता , मेरी जान ! दो हफ़्ते कितना मुट्ठ मारा है मैंने तुम्हें याद कर करके। आज मैं तुम्हारी चूत फाड़ दूँगा रानी। आज अपना सारा वीर्य तुम्हारी चूत में डालूँगा मेरी जान। ओ कविता मेरी जान। पहले क्यूँ नहीं मिली मेरी जान। इतनी मस्त चूत अब तक किसलिए बचा के रखी थी रानी। फट गई न तेरी चूत, बता मेरी जान फट गई ना।"

कविता भी अपना नियंत्रण खो चुकी थी, वो बोली,"हाँ भैय्या, फट गई, आपने फाड़ दी मेरी चूत भैय्या।"
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



thanks
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Messages In This Thread
RE: हाए भैय्या,धीरे से, बहुत मोटा है - by neerathemall - 24-04-2019, 10:18 AM
REसाहित्य - by neerathemall - 01-08-2019, 03:29 AM



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