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Incest हाए भैय्या,धीरे से, बहुत मोटा है
#13
कविता थोड़ा कसमसाई पर बोली कुछ नहीं। फिर मैंने कामदेव का नाम लेकर हल्का सा झटका दिया और इस बार लगा कि जैसे मेरे लंडमुंड की खाल चिर गई हो। कविता के मुँह से भी कराह निकली मगर कामदेव की कॄपा से इस बार लंडमुंड अंदर चला गया था। कविता ने अपनी कमर हिलाने की कोशिश की लेकिन मैंने उसकी जाँघें कसकर पकड़ रखी थीं। वो हिल नहीं पाई। एक दो बार और कोशिश करने के बाद वो ढीली पड़ गई। मैं प्रतीक्षा करता रहा। जब मुझे लगा कि अब यह मेरा लंड बाहर निकालने की कोशिश नहीं करेगी तब मैंने उसकी जाँघें छोड़ दीं और लंड पर दबाब बढ़ाया। मेरा लंड थोड़ा और अंदर घुसा। क्या कसाव था, क्या आनन्द था।

मैंने लंड थोड़ा सा बाहर खींचा और फिर दबाव बढ़ाते हुये अंदर डाल दिया। धीरे धीरे मैं लंड अंदर बाहर कर रहा था। लेकिन मैं लंडमुंड को बाहर नहीं आने दे रहा था। क्या पता कविता दुबारा डलवाने से मना कर दे। लंड और चूत पर अच्छी तरह लगा हुआ सरसों का तेल मेरे प्रथम संभोग में बहुत सहायता कर रहा था।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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RE: हाए भैय्या,धीरे से, बहुत मोटा है - by neerathemall - 24-04-2019, 10:17 AM
REसाहित्य - by neerathemall - 01-08-2019, 03:29 AM



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