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Incest हाए भैय्या,धीरे से, बहुत मोटा है
#10
जहाँ से दरार शुरू हो रही थी उसके ठीक नीचे मटर के फूल जैसी एक संरचना थी।  उसे भगनासा कहते हैं।

मैंने अपनी जुबान उस मटर के फूल से सटा दी। कविता चिहुँक पड़ी। उसने मेरे बालों को और कस कर जकड़ लिया। मैंने अपनी जुबान उस फूल पर फिरानी शुरू की तो कविता के शरीर का कंपन बढ़ने लगा।


[Image: 51hCLSn18tL._SX425_.jpg]

इस अवस्था में अब और ज्यादा कुछ कर पाना संभव नहीं था तो मैं खड़ा हुआ और उसे अपनी गोद में उठाकर बिस्तर पर ले गया। बिस्तर क्या था, दो फ़ोल्डिंग चारपाइयाँ एक दूसरे से सटाकर उन पर दो सिंगल बेड वाले गद्दे बिछा दिए गए थे।

दूसरा फोल्डिंग बेड मैं तभी बिछाता था जब गाँव से कोई दोस्त या पिताजी आते थे वरना उसको मोड़कर पहले वाले फोल्डिंग बेड के नीचे डाल देता था। इस बार गाँव जाने से पहले मैं दोनों फ़ोल्डिंग बेड बिछा कर गया था।

उसके ऊपर चादर बिछी हुई थी। मैंने कविता को लिटा दिया। पैंटी और सलवार अभी भी उसके पैरों से लिपटे हुए थे। मैंने उन्हें भी उतारकर बेड से नीचे फेंक दिया।अब वो बिल्कुल निर्वस्त्र मेरे सामने पड़ी हुई थी और मैं खिड़की से छनकर आती रोशनी में उसका शानदार जिस्म देख रहा था।

थोड़ी देर उसका जिस्म निहारने के बाद मैंने उसके घुटने मोड़ कर खड़े कर दिये और टाँगें चौड़ी कर दीं। फिर मैं अपना मुँह उसकी टाँगों के बीच करके लेट गया। उँगलियों से उसकी चूत की फाँको को इतना फैलाया कि उसकी सुरंग का छोटा सा मुहाना दिखाई पड़ने लगा। मैंने सोचा कि इतने छोटे से मुहाने से मेरा इतना मोटा लंड एक झटके में कैसे अंदर जा पाता।

मस्तराम वाकई हवाई लेखन करता है। मैंने अपनी जीभ उस छेद से सटा दी। मेरी जुबान पर स्याही जैसा स्वाद महसूस हुआ। मैंने जुबान अंदर घुसाने की कोशिश की तो कविता ने अपने चूतड़ ऊपर उठा दिये। अब उसकी चूत का छेद थोड़ा और खुल गया और मुझे जुबान का अगला हिस्सा अंदर घुसाने में आसानी हुई।

फिर मैंने अपनी जुबान बाहर निकाली और फिर से अंदर डाल दी। उसके शरीर को झटका लगा। उसने अभी भी चूतड़ ऊपर की तरफ उठा रखा था। मैंने बगल से तकिया उठाया और उसके नितंबों के नीचे लगा दिया।

फिर मैंने अपनी तरजनी उँगली उसके छेद में घुसाने की कोशिश की। मेरी जुबान ने पहले ही गुफा को काफी चिकना बना रखा था। तरजनी धीरे धीरे अंदर घुसने लगी। जब उँगली अंदर चली गई तो मैं उसे अंदर ही मोड़कर उसकी चूत के आंतरिक हिस्सों को छूने लगा। मुझे अपनी उँगली पर गीली रुई जैसा अहसास हो रहा था। कुछ हिस्से थोड़ा खुरदुरे भी थे। उनको उँगली से सहलाने पर कविता काँप उठती थी।

मैंने सोचा अब दो उँगलियाँ डाल कर देखी जाए। मैं तरजनी और उसके बगल की उँगली एक साथ धीरे धीरे उसकी गुफा में घुसेड़ने लगा। थोड़ी सी रुकावट और कविता के मुँह से एक कराह निकलने के बाद दोनों उँगलियाँ भीतर प्रवेश कर गईं। अब कविता की गुफा से पानी का रिसाव काफी तेजी से हो रहा था। मैंने तकिया हटाया और उसकी जाँघें अपनी जाँघों पर चढ़ा लीं। फिर मैं अपना लंड मुंड उसकी चूत पर रगड़ने लगा और वो अपनी कमर उठा उठा कर मेरा साथ देने लगी।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



thanks
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RE: हाए भैय्या,धीरे से, बहुत मोटा है - by neerathemall - 24-04-2019, 10:15 AM
REसाहित्य - by neerathemall - 01-08-2019, 03:29 AM



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