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Incest हाए भैय्या,धीरे से, बहुत मोटा है
#8
मैंने भी उतने ही धीरे से जवाब दिया,"यहाँ कोई नहीं आता मेरी जान, आज मुझे मत रोको। तुम नहीं जानती पिछले दो हफ़्ते मैंने कैसे गुजारे हैं तुम्हारी याद में। प्लीज आज मुझे मत रोको कविता , प्लीज।"

ऐसा कहने के बाद मेरे हाथ उसके सलवार के नाड़े से उलझ गए। कुछ ही पलों बाद उसकी सलवार उसके घुटनों के नीचे गिरी हुई थी और उसकी चिकनी जाँघें खिड़की के पर्दे से छनकर आ रही रोशनी में चमक रही थीं। मैं तुरंत घुटनों के बल बैठ गया और उसकी चिकनी जाँघों को चूमने लगा। मेरे हर चुम्बन पर वो सिहर उठती थी। उसके मूँह से सिसकियाँ निकल रही थी, फिर मैंने उसका कमीज़ ऊपर उठाया। उसने गुलाबी रंग की पैंटी पहन रखी थी। कमीज़ उठाते हुए मैंने उसके शरीर से बाहर निकाल दिया। अब वो सफेद बनियान और गुलाबी पैंटी में मेरे सामने खड़ी थी।

उफ़ ! क्या नजारा था !

कितना तरसा था मैं किसी लड़की को इस तरह देखने के लिए। फिर मैंने उसकी बनियान उतारनी शुरू की। उसने मेरा हाथ पकड़ लिया। मैंने पूछा,"क्या हुआ?"

वो बोली,"वो पर्दा ठीक से बंद नहीं है।"

ये लड़कियाँ भी जब देखो तब खड़े लंड पर डंडा मार देती हैं। अरे यहाँ कुत्ता भी नहीं आता। पर्दा न भी लगाऊँ तो भी कोई फ़र्क नहीं पड़ेगा, मैंने सोचा।

बहरहाल मैं उसको नाराज नहीं करना चाहता था। मैंने पर्दा अच्छी तरह से खींच-खींचकर बंद किया। फिर मैं उसके पास आया और बिना देर किए उसकी बनियान उतार दी। उसने शर्म के मारे अपनी हथेलियों में मुँह छिपा लिया। उसके हल्के साँवले मुम्मे मेरी तरफ तने हुए थे, जिनके बीचोंबीच छोटे छोटे कत्थई रंग के चूचुक चूसने का निमंत्रण दे रहे थे।

मैंने दोनों मुम्मों को अपनी हथेलियों में लेकर सहलाना शुरू कर दिया। उफ़ क्या आनन्द था। आज पहली बार मैं उसके चूचुकों को रोशनी में देख रहा था और उनसे खेल रहा था। कुछ देर बाद मैंने उसके एक चूचुक को अपने होंठों के बीच दबा लिया। उसके मुँह से सीत्कार निकल पड़ी। मैंने धीरे धीरे उसके चुचुकों को चूसते हुए उसके उभारों को और ज्यादा अपने मुँह में लेना शुरू किया। उसका बदन मस्ती से काँपने लगा था। यही क्रिया मैंने उसके दूसरे उभार के साथ भी दुहराई।

फिर मैंने अपने कपड़े उतारने शुरू किये। अंडरवियर को छोड़कर मैंने सबकुछ उतार दिया। कविता अभी तक अपना मुँह हथेलियों में छुपाये हुये थी।

मैंने उसकी हथेलियाँ पकड़ीं और उसके मुँह से हटाकर अपनी कमर पर रख दीं और उसे खुद से चिपका लिया। उसके मुम्मे मेरे सीने से चिपक गये। कुछ भी कहिये, जो मजा किसी काम को पहली बार करने में आता है वो उसके बाद फिर कभी नहीं आता।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



thanks
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RE: हाए भैय्या,धीरे से, बहुत मोटा है - by neerathemall - 24-04-2019, 10:11 AM
REसाहित्य - by neerathemall - 01-08-2019, 03:29 AM



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