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Incest हाए भैय्या,धीरे से, बहुत मोटा है
#7
हम दोनों तैयार होकर निकल पड़े। रास्ते में मैं सोच रहा था कि हम दोनों की प्रवेश परीक्षा अधूरी रह गई लेकिन हम दोनों ही बहुत खुश थे। यह कालेज नहीं तो कोई और कालेज सही। कहीं न कहीं तो दाखिला मिलेगा ही।

विश्वविद्यालय की प्रवेश परीक्षा के दो सप्ताह बाद कविता को विश्वविद्यालय की प्रवेश परीक्षा देनी थी। उन दिनों में किराए पर कमरा लेकर प्रशासनिक सेवाओं की तैयारी कर रहा था। मेरा कमरा प्रयाग स्टेशन से दो मिनट की दूरी पर था। मेरे मकान मालिक, उनकी माँ, उनकी पत्नी और उनकी बेटी वहाँ रहते थे। उनका एक बेटा भी था जो पंतनगर से यांत्रिक अभियांत्रिकी में स्नातक कर रहा था।

उनका मकान दो मंजिला था लेकिन ऊपर की मंजिल पर केवल एक कमरा, रसोई और बाथरूम थे जो उन्होंने मुझे किराए पर दे रखा था। उनका परिवार नीचे की मंजिल में रहता था। ऊपर चढ़ने के लिए घर के बाहर से ही सीढ़ियाँ थीं ताकि किराएदार की वजह से उन लोगों को कोई परेशानी न हो। मकान मालिक मुझे बहुत पसंद करते थे। कारण था कि मैं अपनी पढ़ाई लिखाई में ही व्यस्त रहता था। मेरे दोस्त भी एक दो ही थे और वो भी बहुत कम मेरे पास आते थे। लड़कियों से तो मेरा दूर दराज का कोई नाता नहीं था। उनकी बेटी मुझे भैय्या कहती थी।

जब मैं कविता के साथ प्रयाग स्टेशन पर उतरा तो मेरा दिल जोर जोर से धड़क रहा था। बनारस से लौटने के बाद मैं इलाहाबाद चला आया था। कल रात कविता को इलाहाबाद लाने के लिए गाँव रवाना हुआ था। उस समय से ही कविता के साथ फिर से रात गुजारने के बारे में सोच-सोच कर मेरे लंड का बुरा हाल था। कविता ने सलवार सूट पहना हुआ था और देखने में बिल्कुल ही भोली भाली और नादान लग रही थी।

मैं उसको लेकर पहले मकान मालिक के पास गया। उनको बताना जरूरी था कि कविता कौन थी और मेरे साथ क्या कर रही थी। मकान मालिक कहीं बाहर गए हुए थे। मैंने मकान मालकिन का परिचय कविता से कराया और यह भी बताया कि यह इलाहाबाद विश्वविद्यालय की प्रवेश परीक्षा देने आई है। अगर इसका दाखिला हो गया तो यहीं महिला छात्रावास में रहकर पढ़ाई करेगी।

परिचय कराने के बाद मैं कविता को लेकर ऊपर गया। कविता के अंदर आते ही मैंने दरवाजा अंदर से बंद कर लिया। मुझे पता था कि अब यहाँ कोई नहीं आने वाला।

कविता मेरी तरफ देख रही थी, मैंने तुरंत उसे कसकर अपनी बाहों में भर लिया। उफ़ क्या आनन्द था। वो भी लता की तरह मुझसे लिपटी हुई थी। फिर मैंने उसे चूमना शुरू किया गाल, गर्दन, पलकें, ठोढ़ी और होंठ। उसके होंठ बहुत रसीले नहीं थे। मैंने अपनी जीभ से उसके होंठ खोलने चाहे लेकिन उसने मुँह नहीं खोला। फिर मैंने अपना एक हाथ उसके सूट के अंदर डाल दिया और उसके रसीले संतरों को मसलने लगा। उसके चूचूकों को अपनी दो उँगलियों के बीच लेकर रगड़ने लगा तो उसके मुँह से सिसकारियाँ निकलने लगीं।

कविता ने धीरे से कहा,"भैय्या कोई आ जाएगा।"
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



thanks
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RE: हाए भैय्या,धीरे से, बहुत मोटा है - by neerathemall - 24-04-2019, 10:11 AM
REसाहित्य - by neerathemall - 01-08-2019, 03:29 AM



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