Thread Rating:
  • 5 Vote(s) - 1.8 Average
  • 1
  • 2
  • 3
  • 4
  • 5
Incest हाए भैय्या,धीरे से, बहुत मोटा है
#6
बहरहाल मैंने उसकी पैंटी की इलास्टिक में अपनी उंगली फँसाई और उसे नीचे खींचने लगा। उसने अपने चूतड़ ऊपर उठा दिए और मेरा काम आसान हो गया। पैंटी उतारने के बाद मैं अपना मुँह उसकी चूत के पास ले गया। एक अजीब सी गंध मेरे नथुनों से टकराई। मैंने साँस रोककर उसकी चूत को चूम लिया।

वो उछल पड़ी।

अब स्वयं पर नियंत्रण रख पाना मेरे लिए मुश्किल था। मैंने तुरंत पजामा उतार दिया। शायद "आदमी हो या पजामा" वाली कहावत यहीं से बनी है। ऐसी स्थिति में भी जो पजामा पहने रहे वो वाकई आदमी नहीं पजामा है। मैंने बनियान भी उतारी और उसके बाद अपने अंतिम अंतर्वस्त्र को भी बेड के नीचे फेंक दिया। कविता की टाँगें चौड़ी की और महान लेखक मस्तराम की कहानियों की तरह लंड उसकी चूत पर रखकर एक जोरदार झटका मारा।

लंड तो घुसा नहीं कविता चीख पड़ी सो अलग।

यह क्या हो गया मैंने सोचा। मस्तराम की कहानियों में तो दो तीन झटकों और थोड़े से दर्द के बाद आनन्द ही आनन्द होता है। यहाँ कविता कराह रही है।

मैं तुरंत कविता के बगल लेट गया और उसे कसकर खुद से चिपटा लिया, मैंने पूछा- क्या हुआ बेबी?

वो बोली- भैय्या, बहुत दर्द हुआ, इतने जोर से मत कीजिए। धीरे धीरे कीजिए न।

बार बार मेरी हिम्मत टूट रही थी और कविता बार बार मेरी हिम्मत बढ़ा रही थी। शायद कामदेव ने उसके ऊपर भी अपने सारे अमोघ अस्त्रों का प्रयोग कर दिया था। मैं दुबारा उसकी जाँघों के बीच बैठा और इस बार महान लेखक मस्तराम के लिखे को न मानते हुए मैंने अपना लंड उसकी चूत पर रगड़ना शुरू किया। वो भी अपनी कमर उठा उठा कर मेरा साथ देने लगी। फिर मैंने उसकी गुफा के मुहाने पर लंडमुंड का दबाव बढ़ाया। इस बार उसने कुछ नहीं कहा।

मैंने थोड़ा और दबाव बढ़ाया तो वो बोली- भैय्या।

मैंने कहा- हाँ।

वो बोली- आपकी भी प्रवेश परीक्षा चल रही है।

उसकी बात सुनकर मेरे मुँह से बेसाख्ता हँसी निकल गई। मैं समझ गया कि लंड रगड़ने के दौरान ही कविता आनंद के चरम पर पहुँच गई थी और अब वो केवल मेरा साथ देने के लिए लेटी हुई है। ऐसी स्थिति में अंदर घुसाने की कोशिश करना बेकार भी था और खतरनाक भी।

मैं उसकी चूत पर ही अपना लंड रगड़ने लगा और रगड़ते रगड़ते एक वक्त ऐसा भी आया जब मेरे भीतर सारा लावा फूट कर उसकी चूत पर बिखरने लगा। फिर मैंने उसकी पैंटी उठाई और उसकी चूत पर गिरे अपने वीर्य को साफ करने के पश्चात अपने हाथों से उसे पहना दी। फिर मैंने उठकर अपने कपड़े पहने और कविता को बाहों में भरकर सो गया।

सुबह ग्यारह बजे मेरी नींद खुली, कविता तब भी घोड़े बेचकर सो रही थी, मैंने उसे जगाया।

उसकी प्रवेश परीक्षा दस बजे से थी। अब कुछ नहीं हो सकता था।

मैंने कहा- ट्रेन तो शाम को है, चलो इस बहाने आज घूमते हैं।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



thanks
[+] 2 users Like neerathemall's post
Like Reply


Messages In This Thread
RE: हाए भैय्या,धीरे से, बहुत मोटा है - by neerathemall - 24-04-2019, 10:11 AM
REसाहित्य - by neerathemall - 01-08-2019, 03:29 AM



Users browsing this thread: 8 Guest(s)