24-04-2019, 10:09 AM
धीरे धीरे मेरी हिम्मत बढ़ती जा रही थी। फिर मैंने अपना हाथ उसकी जाँघों से हटाकर उसकी पैंटी के ऊपर रखा। मेरी हिम्मत और बढ़ी। मैंने अपने हाथों का दबाव बढ़ाया। अचानक मुझे लगा कि उसके जिस्म में हरकत होने वाली है। मैंने तुरंत अपना हाथ हटा लिया। उसके जिस्म में वाकई हरकत हुई और उसने करवट बदली। मैं फौरन जाकर नीचे लेट गया। फिर वो उठी और उसने कमरे की लाइट जलाई। मैंने कस कर आँखें बंद कर लीं और ईश्वर से दुआ करने लगा- प्रभो इस बार बचा ले ! आगे से मैं ऐसा कुछ भी नहीं करूँगा। वो बाथरूम का दरवाजा खोलकर अंदर चली गई। अब मेरी समझ में आया कि वो बाथरूम गई है। वो वापस आई। ट्यूबलाइट की रोशनी सीधे मेरी आँखों पर आ रही थी इसलिए आँख बंद करने के बावजूद ट्यूब लाइट की रोशनी की तीव्रता कम होने से मैंने महसूस किया कि वो ट्यूबलाइट के पास जाकर खड़ी हो गई है। वो थोड़ी देर तक वैसे ही खड़ी रही मेरा दिल फिर धड़कने लगा।
अचानक उसने ट्यूबलाइट बंद कर दी और अपने बिस्तर पर जाकर लेट गई। तब मुझे समझ में आया कि वो ट्यूबलाइट के पास क्यूँ खड़ी थी। मेरे लंड ने पजामे में तंबू बनाया हुआ था और मैं बनियान पहनकर सो रहा था। हो न हो ये जरूर मेरे लंड को ही देख रही होगी आखिर जीव विज्ञान की छात्रा है मुझसे ज्यादा तो मैथुन क्रिया के बारे में इसे पता होगा।
यह सोचकर मेरी हिम्मत बढ़ गई और मैं हस्तमैथुन करने लगा। थोड़ी देर बाद ढेर सारा वीर्य फर्श पर गिरा। मैंने उस गंदे कंबल के निचले हिस्से से फर्श पोंछा और सो गया।
अगले दिन सुबह जब मैं उठा तो वह बाथरूम में थी। मेरी निगाह अब उसके लिए बदल चुकी थी और मेरी हिम्मत भी इस वक्त बहुत बढ़ी हुई थी। मैंने तलाश किया तो उस घटिया होटल के घटिया से बाथरूम के पुराने दरवाज़े में एक छोटा सा सुराख फर्श से एक फीट ऊपर दिखाई दिया। अंदर से कपड़े धोने की आवाज़ आ रही थी लेकिन बैठकर भी उस सुराख से झाँका नहीं जा सकता था। तो मैं वहीं फर्श पर लेट गया और अपनी आँखें उस सुराख पर लगा दीं।
अंदर का दृश्य देखकर फौरन मेरा लंड उत्तेजित अवस्था में आ गया। कविता बिल्कुल नंगी होकर कपड़े धो रही थी। उसके निर्वस्त्र पीठ और चूतड़ मेरी तरफ थे। जैसे दो पके चूतड़ रात्रिभोज का निमंत्रण दे रहे थे। फिर वो खड़ी हो गई और मुझे उसकी सिर्फ़ टाँगें दिखाई पड़ने लगीं। मैं किसी योगी की तरह उसी आसन में चूत के दर्शन पाने का इंतजार करने लगा।
आखिरकार इंतजार खत्म हुआ। वो मेरी तरफ मुँह करके बैठी और उसने अपनी जाँघों पर साबुन लगाना शुरू किया। फिर उसने अपनी टाँगें फैलाई तब मुझे पहली बार उस डबल रोटी के दर्शन मिले जिसको चखने के लिए मैं कल रात से बेताब था। हल्के हल्के बालों से ढकी हुई चूत ऐसी लग रही थी जैसे हिमालय पर काली बर्फ़ गिरी हुई हो और बीच में एक पतली सूखी नदी बर्फ़ के पिघलने और अपने पानी पानी होने का इंतजार कर रही थी। पहली बार मैंने सचमुच की चूत देखी।
अचानक उसने ट्यूबलाइट बंद कर दी और अपने बिस्तर पर जाकर लेट गई। तब मुझे समझ में आया कि वो ट्यूबलाइट के पास क्यूँ खड़ी थी। मेरे लंड ने पजामे में तंबू बनाया हुआ था और मैं बनियान पहनकर सो रहा था। हो न हो ये जरूर मेरे लंड को ही देख रही होगी आखिर जीव विज्ञान की छात्रा है मुझसे ज्यादा तो मैथुन क्रिया के बारे में इसे पता होगा।
यह सोचकर मेरी हिम्मत बढ़ गई और मैं हस्तमैथुन करने लगा। थोड़ी देर बाद ढेर सारा वीर्य फर्श पर गिरा। मैंने उस गंदे कंबल के निचले हिस्से से फर्श पोंछा और सो गया।
अगले दिन सुबह जब मैं उठा तो वह बाथरूम में थी। मेरी निगाह अब उसके लिए बदल चुकी थी और मेरी हिम्मत भी इस वक्त बहुत बढ़ी हुई थी। मैंने तलाश किया तो उस घटिया होटल के घटिया से बाथरूम के पुराने दरवाज़े में एक छोटा सा सुराख फर्श से एक फीट ऊपर दिखाई दिया। अंदर से कपड़े धोने की आवाज़ आ रही थी लेकिन बैठकर भी उस सुराख से झाँका नहीं जा सकता था। तो मैं वहीं फर्श पर लेट गया और अपनी आँखें उस सुराख पर लगा दीं।
अंदर का दृश्य देखकर फौरन मेरा लंड उत्तेजित अवस्था में आ गया। कविता बिल्कुल नंगी होकर कपड़े धो रही थी। उसके निर्वस्त्र पीठ और चूतड़ मेरी तरफ थे। जैसे दो पके चूतड़ रात्रिभोज का निमंत्रण दे रहे थे। फिर वो खड़ी हो गई और मुझे उसकी सिर्फ़ टाँगें दिखाई पड़ने लगीं। मैं किसी योगी की तरह उसी आसन में चूत के दर्शन पाने का इंतजार करने लगा।
आखिरकार इंतजार खत्म हुआ। वो मेरी तरफ मुँह करके बैठी और उसने अपनी जाँघों पर साबुन लगाना शुरू किया। फिर उसने अपनी टाँगें फैलाई तब मुझे पहली बार उस डबल रोटी के दर्शन मिले जिसको चखने के लिए मैं कल रात से बेताब था। हल्के हल्के बालों से ढकी हुई चूत ऐसी लग रही थी जैसे हिमालय पर काली बर्फ़ गिरी हुई हो और बीच में एक पतली सूखी नदी बर्फ़ के पिघलने और अपने पानी पानी होने का इंतजार कर रही थी। पहली बार मैंने सचमुच की चूत देखी।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.
