24-04-2019, 10:09 AM
कई विद्यार्थी दूर दूर से आए हुए थे। आसपास के सारे होटल भरे हुए थे। मैं कई होटलों में भटक चुका था लेकिन कोई कमरा खाली नहीं मिला। मेरी चचेरी बहन, कविता जिसकी उमर 20 साल हो चुकी थी (Now she is 20 years old), जिसे जीव विज्ञान में स्नातक की प्रवेश परीक्षा देनी थी वो भी मेरे साथ घूमते घूमते थक चुकी थी। ऊपर से जानलेवा गर्मी। हमारे कपड़े पसीने से भीग चुके थे।
एक दो होटलों में और देखने के बाद उसने कहा- भैय्या अब जहाँ भी जैसा भी कमरा मिले तुरंत ले लेना मुझसे और नहीं चला जाता। थोड़ी और परेशानी झेलने के बाद एक घटिया से होटल में सिंगल बेड रूम मिला। होटल दूर दूर से आए परीक्षार्थियों से भरा हुआ था। मैंने होटल के मैनेजर से एक अतिरिक्त गद्दा जमीन पर बिछाने के लिए कहा तो उसने एक घटिया सा कंबल लाकर जमीन पर बिछा दिया।
मैंने कविता से कहा- तुम थक गई होगी चलो बाहर कहीं से खाना खाकर आते हैं इस गंदे होटल में तो मुझसे खाना नहीं खाया जाएगा।
फिर हम लोग पास के एक रेस्टोरेंट से खाना खाकर आए। कविता को मैंने बेड पर सो जाने के लिए कहा और खुद नीचे सो गया।
रात को मैं बाथरूम जाने के लिए उठा और जैसे ही बत्ती जलाई मेरा दिल धक से रह गया। थकी होने के कारण कविता घोड़े बेचकर सो रही थी। इतनी गर्मी में कुछ ओढ़ने का तो सवाल ही नहीं उठता था। ऊपर से पंखा भी भगवान भरोसे ही चल रहा था। उसकी स्कर्ट उसकी जाँघों के ऊपर उठी हुई थी। अभी एक महीने पहले ही वो अठारह साल की हुई थी। उसकी हल्की साँवली जाँघें ट्यूबलाइट की रोशनी में ऐसी लग रही थीं जैसे चाँद की रोशनी में केले का तना।
उस वक्त मैं राजनीति शास्त्र में एमए करके इलाहाबाद से प्रशासकीय सेवाओं की तैयारी कर रहा था। मेरा ज्यादातर समय पढ़ाई में ही बीतता था। लड़कियों के बारे में मैंने दोस्तों से ही सुना था और युवाओं के मशहूर लेखक मस्तराम को पढ़कर हस्तमैथुन कर लिया करता था।
अचानक मुझे लगा कि मैं यह क्या कर रहा हूँ? यह लड़की मुझे भैया कहती है और मैं इसके बारे में ऐसा सोच रहा हूँ। मुझे बड़ी आत्मग्लानि महसूस हुई और मैं बाथरूम में चला गया। बाहर आकर मैंने सोचा कि इसकी स्कर्ट ठीक कर दूँ। फिर मुझे लगा कि अगर यह जग गई तो कहीं कुछ गलत न सोचने लग जाए इसलिए मैं बत्ती बुझाकर नीचे लेट गया और सोने की कोशिश करने लगा। लेकिन मुझे नींद कहाँ आ रहा थी।
ऐसा लग रहा था जैसे मेरे भीतर एक युद्ध चल रहा हो। मस्तराम की कहानियाँ रह रहकर मुझे याद आ रही थीं। मस्तराम की कहानियों में भाई बहन की बहुत सी कहानियाँ थीं मगर मैं उन्हें देखते ही छोड़ देता था। मुझे ऐसी कहानियाँ बेहद ही बचकाना एवं बेवकूफ़ी भरी लगती थीं। भला ऐसा भी कहीं होता है कि लड़की जिसे भैय्या कहे उसके साथ संभोग करे।
अगला एक घंटा ऐसे ही गुजरा। कामदेव ने मौका देखकर अपने सबसे घातक दिव्यास्त्र मेरे सीने पर छोड़े। मैं कब तक बचता। आखिर मैं उठा और मैंने कमरे की बत्ती जला दी। कविता की स्कर्ट और ऊपर उठ गई थी और अब उसकी नीले रंग की पैंटी थोड़ा थोड़ा दिखाई पड़ रही थी। उसकी जाँघें बहुत मोटी नहीं थीं और मुम्मे भी संतरे से थोड़ा छोटे ही थे। मैं थोड़ी देर तक उस रमणीय दृष्य को देखता रहा। मेरा लंड मेरे पजामे में तम्बू बना रहा था। अगर इस वक्त कविता जग जाती तो पता नहीं क्या सोचती।
फिर मेरे दिमाग में एक विचार आया और मैंने बत्ती बुझा दी। थोड़ी देर तक मैं वैसे ही खड़ा रहा धीरे धीरे मेरी आँखें अँधेरे की अभ्यस्त हो गईं। फिर मैं बेड के पास गया और बहुत ही धीरे धीरे उसकी स्कर्ट को पकड़कर ऊपर उठाने लगा। जब मुझे लगा कि स्कर्ट और ज्यादा ऊपर नहीं उठ सकती तो मैंने स्कर्ट छोड़कर थोड़ी देर इंतजार किया और कमरे की बत्ती जला दी। जो दिखा उसे देखकर मैं दंग रह गया। ऐसा लग रहा था जैसे पैंटी के नीचे कविता ने डबल रोटी छुपा रक्खी हो या नीचे आसमान के नीचे गर्म रेत का एक टीला बना हुआ हो। मैं थोड़ी देर तक उसे देखता रहा।
फिर मैंने बत्ती बुझाई और बेड के पास आकर उसकी जाँघों पर अपनी एक उँगली रक्खी। मैंने थोड़ी देर तक इंतजार किया लेकिन कहीं कोई हरकत नहीं हुई। मेरा दिल रेस के घोड़े की तरह दौड़ रहा था और मेरे लंड में आवश्यकता से अधिक रक्त पहुँचा रहा था। फिर मैंने दो उँगलियाँ उसकी जाँघों पर रखीं और फिर भी कोई हरकत न होते देखकर मैंने अपना पूरा हाथ उसकी जाँघों पर रख दिया।
धीरे धीरे मैंने अपने हाथों का दबाव बढ़ाया मगर फिर भी कोई हरकत नहीं हुई। कविता वाकई घोड़े बेचकर सो रही थी।
एक दो होटलों में और देखने के बाद उसने कहा- भैय्या अब जहाँ भी जैसा भी कमरा मिले तुरंत ले लेना मुझसे और नहीं चला जाता। थोड़ी और परेशानी झेलने के बाद एक घटिया से होटल में सिंगल बेड रूम मिला। होटल दूर दूर से आए परीक्षार्थियों से भरा हुआ था। मैंने होटल के मैनेजर से एक अतिरिक्त गद्दा जमीन पर बिछाने के लिए कहा तो उसने एक घटिया सा कंबल लाकर जमीन पर बिछा दिया।
मैंने कविता से कहा- तुम थक गई होगी चलो बाहर कहीं से खाना खाकर आते हैं इस गंदे होटल में तो मुझसे खाना नहीं खाया जाएगा।
फिर हम लोग पास के एक रेस्टोरेंट से खाना खाकर आए। कविता को मैंने बेड पर सो जाने के लिए कहा और खुद नीचे सो गया।
रात को मैं बाथरूम जाने के लिए उठा और जैसे ही बत्ती जलाई मेरा दिल धक से रह गया। थकी होने के कारण कविता घोड़े बेचकर सो रही थी। इतनी गर्मी में कुछ ओढ़ने का तो सवाल ही नहीं उठता था। ऊपर से पंखा भी भगवान भरोसे ही चल रहा था। उसकी स्कर्ट उसकी जाँघों के ऊपर उठी हुई थी। अभी एक महीने पहले ही वो अठारह साल की हुई थी। उसकी हल्की साँवली जाँघें ट्यूबलाइट की रोशनी में ऐसी लग रही थीं जैसे चाँद की रोशनी में केले का तना।
उस वक्त मैं राजनीति शास्त्र में एमए करके इलाहाबाद से प्रशासकीय सेवाओं की तैयारी कर रहा था। मेरा ज्यादातर समय पढ़ाई में ही बीतता था। लड़कियों के बारे में मैंने दोस्तों से ही सुना था और युवाओं के मशहूर लेखक मस्तराम को पढ़कर हस्तमैथुन कर लिया करता था।
अचानक मुझे लगा कि मैं यह क्या कर रहा हूँ? यह लड़की मुझे भैया कहती है और मैं इसके बारे में ऐसा सोच रहा हूँ। मुझे बड़ी आत्मग्लानि महसूस हुई और मैं बाथरूम में चला गया। बाहर आकर मैंने सोचा कि इसकी स्कर्ट ठीक कर दूँ। फिर मुझे लगा कि अगर यह जग गई तो कहीं कुछ गलत न सोचने लग जाए इसलिए मैं बत्ती बुझाकर नीचे लेट गया और सोने की कोशिश करने लगा। लेकिन मुझे नींद कहाँ आ रहा थी।
ऐसा लग रहा था जैसे मेरे भीतर एक युद्ध चल रहा हो। मस्तराम की कहानियाँ रह रहकर मुझे याद आ रही थीं। मस्तराम की कहानियों में भाई बहन की बहुत सी कहानियाँ थीं मगर मैं उन्हें देखते ही छोड़ देता था। मुझे ऐसी कहानियाँ बेहद ही बचकाना एवं बेवकूफ़ी भरी लगती थीं। भला ऐसा भी कहीं होता है कि लड़की जिसे भैय्या कहे उसके साथ संभोग करे।
अगला एक घंटा ऐसे ही गुजरा। कामदेव ने मौका देखकर अपने सबसे घातक दिव्यास्त्र मेरे सीने पर छोड़े। मैं कब तक बचता। आखिर मैं उठा और मैंने कमरे की बत्ती जला दी। कविता की स्कर्ट और ऊपर उठ गई थी और अब उसकी नीले रंग की पैंटी थोड़ा थोड़ा दिखाई पड़ रही थी। उसकी जाँघें बहुत मोटी नहीं थीं और मुम्मे भी संतरे से थोड़ा छोटे ही थे। मैं थोड़ी देर तक उस रमणीय दृष्य को देखता रहा। मेरा लंड मेरे पजामे में तम्बू बना रहा था। अगर इस वक्त कविता जग जाती तो पता नहीं क्या सोचती।
फिर मेरे दिमाग में एक विचार आया और मैंने बत्ती बुझा दी। थोड़ी देर तक मैं वैसे ही खड़ा रहा धीरे धीरे मेरी आँखें अँधेरे की अभ्यस्त हो गईं। फिर मैं बेड के पास गया और बहुत ही धीरे धीरे उसकी स्कर्ट को पकड़कर ऊपर उठाने लगा। जब मुझे लगा कि स्कर्ट और ज्यादा ऊपर नहीं उठ सकती तो मैंने स्कर्ट छोड़कर थोड़ी देर इंतजार किया और कमरे की बत्ती जला दी। जो दिखा उसे देखकर मैं दंग रह गया। ऐसा लग रहा था जैसे पैंटी के नीचे कविता ने डबल रोटी छुपा रक्खी हो या नीचे आसमान के नीचे गर्म रेत का एक टीला बना हुआ हो। मैं थोड़ी देर तक उसे देखता रहा।
फिर मैंने बत्ती बुझाई और बेड के पास आकर उसकी जाँघों पर अपनी एक उँगली रक्खी। मैंने थोड़ी देर तक इंतजार किया लेकिन कहीं कोई हरकत नहीं हुई। मेरा दिल रेस के घोड़े की तरह दौड़ रहा था और मेरे लंड में आवश्यकता से अधिक रक्त पहुँचा रहा था। फिर मैंने दो उँगलियाँ उसकी जाँघों पर रखीं और फिर भी कोई हरकत न होते देखकर मैंने अपना पूरा हाथ उसकी जाँघों पर रख दिया।
धीरे धीरे मैंने अपने हाथों का दबाव बढ़ाया मगर फिर भी कोई हरकत नहीं हुई। कविता वाकई घोड़े बेचकर सो रही थी।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.
