24-04-2019, 09:15 AM
"नहीं... वो तो बिस्तर पर घूंघट डाले दुल्हन की चुदाई होती है।"
तो दीदी, दुल्हन बन जाओ ना... मैं दूल्हा... फिर अपन दोनों सुहागरात मनायें?"
मैंने उसे देखा... वो तो मुझे जैसे चोदने पर उतारू था। मेरे दिल में एक गुदगुदी सी हुई, दुल्हन बन कर चुदने की
इच्छा... मैं बिस्तर पर जा कर बैठ गई और अपनी चुन्नी सर पर दुल्हनिया की तरह डाल ली।
वो मेरे पास दूल्हे की तरह से आया और धीरे से मेरी चुन्नी वाला घूँघट ऊपर किया। मैंने नीचे देखते हुये थरथराते हुये रस भरे होंठों को ऊपर कर दिया। उसने अपने अधर एक बार फ़िर मेरे अधरों से लगा दिये... मुझे तो सच में लगने लगा कि जैसे मैं दुल्हन ही हूँ। फिर उसने मेरे शरीर पर जोर डालते हुये मुझे लेटा दिया और वो मेरे ऊपर छाने लगा।
मेरी कठोर चूचियाँ उसने दबा दी। मेरी दोनों टांगों के बीच वो पसरने लगा। नीचे से तो हम दोनो नंगे ही थे। उसका मोटा लण्ड मेरी कोमल चूत से भिड़ गया।
"उफ़्फ़्फ़... उसका सुपारा... " मेरी चूत को खोलने की कोशिश करने लगा। मेरी चूत लपलपा उठी। पानी से चिकनी चूत ने अपना मुख खोल ही दिया और उसके सुपारे को सरलता से निगल लिया- यह तो बहुत ही लजीज है... सख्त और चमड़ी तो मुलायम है।
"भैया... बहुत मस्त है... जोर से घुसा दे... आह्ह्ह्ह्ह... मेरे राजा..."
मैंने कैंची बना कर उसे जैसे जकड़ लिया। उसने अपने चूतड़ उठा कर फिर से धक्का मारा...
"उफ़्फ़्फ़्फ़्फ़... मर गई रे... दे जरा मचका के... लण्ड तो लण्ड ही होता है… और वो भी इतना मोटा..."
उसके धक्के तो तेज होते जा रहे थे... फ़च फ़च की आवाजें तेज हो गई... यह किसी मर्द के साथ मेरी पहली चुदाई थी... जिसमें कोई झिल्ली नहीं फ़टी... कोई खून नहीं निकला... बस स्वर्ग जैसा सुख... चुदाई का पहला सुख... मैं तो जैसे खुशी के मारे लहक उठी। फिर मैं धीरे धीरे चरमसीमा को छूने लगी। आनन्द कभी ना समाप्त हो । मैं अपने आप को झड़ने से रोकती रही... फिर आखिर मैं हार ही गई... मैं जोर से झड़ने लगी। तभी रवि भी चूत के भीतर ही झड़ने लगा। मुझसे चिपक कर वो यों लेट गया कि मानो मैं कोई बिस्तर हूँ।
"हो गई ना सुहागरात हमारी...?"
"हाँ दीदी... कितना मजा आया ना...!"
"मुझे तो आज पता चला कि चुदने में कितना मजा आता है ..."
बाहर बरसात अभी भी तेजी पर थी। रवि मुझे मेरा टॉप उतारने को कहने लगा। उसने अपनी बनियान उतार दी और पूरा ही नंगा हो गया। उसने मेरा भी टॉप उतारने की गरज से उसे ऊपर खींचा। मैंने भी यंत्रवत हाथ ऊपर करके उसे टॉप उतारने की सहूलियत दे दी।
हम दोनो जवान थे, आग फिर भड़कने लगी थी... बरसाती मौसम वासना बढ़ाने में मदद कर रहा था। रवि बिस्तर पर बैठे बैठे ही मेरे पास सरक आया और मुझसे पीछे से चिपकने लगा। वहाँ उसका इठलाया हुआ सख्त लण्ड लहरा रहा था। उसने मेरी गाण्ड का निशाना लिया और मेरी गाण्ड पर लण्ड को दबाने लगा।
मैंने तुरन्त उसे कहा- तुम्हारे लण्ड को पहले देखने तो दो... फिर उसे चूसना भी है।
वो खड़ा हो गया और उसने अपना तना हुआ लण्ड मेरे होंठों से रगड़ दिया। मेरा मुख तो जैसे आप ही खुल गया और उसका लण्ड मेरे मुख में फ़ंसता चला गया। बहुत मोटा जो था। मैंने उसे सुपारे के छल्ले को ब्ल्यू फ़िल्म की तरह नकल करते हुये जकड़ लिया और उसे घुमा घुमा कर चूसने लगी। मुझे तो होश भी नहीं रहा कि आज मैं ये सब सचमुच में कर रही हूँ।
तभी उसकी कमर भी चलने लगी... जैसे मुँह को चोद रहा हो। उसके मुख से तेज सिसकारियाँ निकलने लगी। तभी रवि का वीर्य निकल पड़ा। वीर्य की मात्रा बहुत ज़्यादा थी । मुझे एकदम से खांसी उठ गई... शायद गले में वीर्य फ़ंसने के कारण। रवि ने जल्दी से मुझे पानी पिलाया।
पानी पिलाने के बाद मुझे पूर्ण होश आ चुका था। मैं पहले चुदने और फिर मुख मैथुन के अपने इस कार्य से बेहद विचलित सी हो गई थी... मुझे बहुत ही शर्म आने लगी थी। मैं सर झुकाये पास में पड़ी कुर्सी पर बैठ गई।
"रवि ... सॉरी... सॉरी..."
"दीदी, आप तो बेकार में ही ऐसी बातें कर रहीं हैं... ये तो इस उम्र में अपने आप हो जाता है... फिर आपने तो अभी किया ही क्या है?"
"इतना सब तो कर लिया... बचा क्या है?"
"सुहागरात तो मना ली... अब तो बस गाण्ड मारनी बाकी है।"
मुझे शरम आते हुये भी उसकी इस बात पर हंसी आ गई।
"यह बात हुई ना... दीदी... हंसी तो फ़ंसी... तो हो जाये एक बार...?"
"एक बार क्या हो जाये..." मैंने उसे हंसते हुये कहा।
तो दीदी, दुल्हन बन जाओ ना... मैं दूल्हा... फिर अपन दोनों सुहागरात मनायें?"
मैंने उसे देखा... वो तो मुझे जैसे चोदने पर उतारू था। मेरे दिल में एक गुदगुदी सी हुई, दुल्हन बन कर चुदने की
इच्छा... मैं बिस्तर पर जा कर बैठ गई और अपनी चुन्नी सर पर दुल्हनिया की तरह डाल ली।
वो मेरे पास दूल्हे की तरह से आया और धीरे से मेरी चुन्नी वाला घूँघट ऊपर किया। मैंने नीचे देखते हुये थरथराते हुये रस भरे होंठों को ऊपर कर दिया। उसने अपने अधर एक बार फ़िर मेरे अधरों से लगा दिये... मुझे तो सच में लगने लगा कि जैसे मैं दुल्हन ही हूँ। फिर उसने मेरे शरीर पर जोर डालते हुये मुझे लेटा दिया और वो मेरे ऊपर छाने लगा।
मेरी कठोर चूचियाँ उसने दबा दी। मेरी दोनों टांगों के बीच वो पसरने लगा। नीचे से तो हम दोनो नंगे ही थे। उसका मोटा लण्ड मेरी कोमल चूत से भिड़ गया।
"उफ़्फ़्फ़... उसका सुपारा... " मेरी चूत को खोलने की कोशिश करने लगा। मेरी चूत लपलपा उठी। पानी से चिकनी चूत ने अपना मुख खोल ही दिया और उसके सुपारे को सरलता से निगल लिया- यह तो बहुत ही लजीज है... सख्त और चमड़ी तो मुलायम है।
"भैया... बहुत मस्त है... जोर से घुसा दे... आह्ह्ह्ह्ह... मेरे राजा..."
मैंने कैंची बना कर उसे जैसे जकड़ लिया। उसने अपने चूतड़ उठा कर फिर से धक्का मारा...
"उफ़्फ़्फ़्फ़्फ़... मर गई रे... दे जरा मचका के... लण्ड तो लण्ड ही होता है… और वो भी इतना मोटा..."
उसके धक्के तो तेज होते जा रहे थे... फ़च फ़च की आवाजें तेज हो गई... यह किसी मर्द के साथ मेरी पहली चुदाई थी... जिसमें कोई झिल्ली नहीं फ़टी... कोई खून नहीं निकला... बस स्वर्ग जैसा सुख... चुदाई का पहला सुख... मैं तो जैसे खुशी के मारे लहक उठी। फिर मैं धीरे धीरे चरमसीमा को छूने लगी। आनन्द कभी ना समाप्त हो । मैं अपने आप को झड़ने से रोकती रही... फिर आखिर मैं हार ही गई... मैं जोर से झड़ने लगी। तभी रवि भी चूत के भीतर ही झड़ने लगा। मुझसे चिपक कर वो यों लेट गया कि मानो मैं कोई बिस्तर हूँ।
"हो गई ना सुहागरात हमारी...?"
"हाँ दीदी... कितना मजा आया ना...!"
"मुझे तो आज पता चला कि चुदने में कितना मजा आता है ..."
बाहर बरसात अभी भी तेजी पर थी। रवि मुझे मेरा टॉप उतारने को कहने लगा। उसने अपनी बनियान उतार दी और पूरा ही नंगा हो गया। उसने मेरा भी टॉप उतारने की गरज से उसे ऊपर खींचा। मैंने भी यंत्रवत हाथ ऊपर करके उसे टॉप उतारने की सहूलियत दे दी।
हम दोनो जवान थे, आग फिर भड़कने लगी थी... बरसाती मौसम वासना बढ़ाने में मदद कर रहा था। रवि बिस्तर पर बैठे बैठे ही मेरे पास सरक आया और मुझसे पीछे से चिपकने लगा। वहाँ उसका इठलाया हुआ सख्त लण्ड लहरा रहा था। उसने मेरी गाण्ड का निशाना लिया और मेरी गाण्ड पर लण्ड को दबाने लगा।
मैंने तुरन्त उसे कहा- तुम्हारे लण्ड को पहले देखने तो दो... फिर उसे चूसना भी है।
वो खड़ा हो गया और उसने अपना तना हुआ लण्ड मेरे होंठों से रगड़ दिया। मेरा मुख तो जैसे आप ही खुल गया और उसका लण्ड मेरे मुख में फ़ंसता चला गया। बहुत मोटा जो था। मैंने उसे सुपारे के छल्ले को ब्ल्यू फ़िल्म की तरह नकल करते हुये जकड़ लिया और उसे घुमा घुमा कर चूसने लगी। मुझे तो होश भी नहीं रहा कि आज मैं ये सब सचमुच में कर रही हूँ।
तभी उसकी कमर भी चलने लगी... जैसे मुँह को चोद रहा हो। उसके मुख से तेज सिसकारियाँ निकलने लगी। तभी रवि का वीर्य निकल पड़ा। वीर्य की मात्रा बहुत ज़्यादा थी । मुझे एकदम से खांसी उठ गई... शायद गले में वीर्य फ़ंसने के कारण। रवि ने जल्दी से मुझे पानी पिलाया।
पानी पिलाने के बाद मुझे पूर्ण होश आ चुका था। मैं पहले चुदने और फिर मुख मैथुन के अपने इस कार्य से बेहद विचलित सी हो गई थी... मुझे बहुत ही शर्म आने लगी थी। मैं सर झुकाये पास में पड़ी कुर्सी पर बैठ गई।
"रवि ... सॉरी... सॉरी..."
"दीदी, आप तो बेकार में ही ऐसी बातें कर रहीं हैं... ये तो इस उम्र में अपने आप हो जाता है... फिर आपने तो अभी किया ही क्या है?"
"इतना सब तो कर लिया... बचा क्या है?"
"सुहागरात तो मना ली... अब तो बस गाण्ड मारनी बाकी है।"
मुझे शरम आते हुये भी उसकी इस बात पर हंसी आ गई।
"यह बात हुई ना... दीदी... हंसी तो फ़ंसी... तो हो जाये एक बार...?"
"एक बार क्या हो जाये..." मैंने उसे हंसते हुये कहा।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.
