24-04-2019, 09:15 AM
(This post was last modified: 13-01-2021, 05:17 PM by neerathemall. Edited 2 times in total. Edited 2 times in total.)
अचानक मोटी मोटी बून्दों की बरसात शुरू हो गई। बून्दें मेरे शरीर पर अंगारे की तरह लग रही थी।रवि ने मुझे दो कदम पीछे ले कर अन्दर कर लिया।
मैंने अन्जानी चाह से रवि को देखा... नजरें चार हुई... ना जाने नजरों ने क्या कहा और क्या समझा... रवि ने मेरी कमर को कस लिया और मेरे चेहरे पर झुक गया। मैं बेबस सी, मूढ़ सी उसे देखती रह गई। उसके होंठ मेरे होंठों से चिपकने लगे। मेरे नीचे के होंठ को उसने धीरे से अपने मुख में ले लिया। मैं तो जाने किस जहाँ में खोने सी लगी। मेरी जीभ से उसकी जीभ टकरा गई।
उसने प्यार से मेरे बालों पर हाथ फ़ेरा... मेरी आँखें बन्द होने लगी... शरीर कांपता हुआ उसके बस में होता जा रहा था। मेरे उभरे हुये मम्मे उसकी छाती से दबने लगे। उसने अपनी छाती से मेरी छाती को रगड़ा मार दिया, मेरे तन में मीठी सी चिन्गारी सुलग उठी।
उसका एक हाथ अब मेरे वक्ष पर आ गया था और फिर उसका एक हल्का सा दबाव ! मेरी तो जैसे जान ही निकल गई।
"रवि ... अह्ह्ह्ह...!"
"दीदी, यह बरसात और ये ठण्डी हवायें... कितना सुहाना मौसम हो गया है, है ना..."
और फिर उसके लण्ड की गुदगुदी भरी चुभन नीचे मेरी चूत के आस-पास होने लगी। उसका लण्ड सख्त हो चुका था। यह गड़ता हुआ लण्ड मोमबत्ती से बिल्कुल अलग था। नर्म सा... कड़क सा... मधुर स्पर्श देता हुआ। मैं अपनी चूत उसके लण्ड से और चिपकाने लगी। उसके लण्ड का उभार अब मुझे जोर से चुभ रहा था। तभी हवा के एक झोंके के साथ वर्षा की एक फ़ुहार हम पर पड़ीं। मैंने जल्दी से मुड़ कर दरवाजा बन्द ही कर दिया।
ओह्ह ! यह क्या ?
मेरे घूमते ही रवि मेरी पीठ से चिपक गया और अपने दोनों हाथ मेरे सख़्त और मोटे मम्मों पर रख दिये। मैंने नीचे मम्मों को देखा... मेरे दोनों कबूतरों को जो उसके हाथों की गिरफ़्त में थे। उसने एक झटके में मुझे अपने से चिपका लिया और अपना बलिष्ठ लण्ड मेरे चूतड़ों की दरार में घुमाने लगा। मैंने अपनी दोनों टांगों को खोल कर उसे अपना लण्ड ठीक से घुसाने में मदद की।
उफ़्फ़ ! ये तो मोमबत्ती जैसा बिल्कुल भी नहीं लगा। कैसा नरम-सख्त सा मेरी गाण्ड के छेद से सटा हुआ... गुदगुदा रहा था।
मैंने सारे आनन्द को अपने में समेटे हुये अपना चेहरा घुमा कर ऊपर दिया और अपने होंठ खोल दिये। रवि ने बहुत सम्हाल कर मेरे होंठों को फिर से पीना शुरू कर दिया। इन सारे अहसास को... चुभन को... मेरे मोटे मम्मों को दबाने से लेकर चुम्बन तक के अहसास को महसूस करते करते मेरी चूत से पानी की दो बून्दें रिस कर निकल गई। मेरी चूत में एक मीठेपन की कसक भरने लगी।
मेरे घूमते ही रवि मेरी पीठ से चिपक गया और अपने दोनों हाथ मेरे मम्मों पर रख दिये। मैंने नीचे मम्मों को देखा... मेरे दोनों कबूतरों को जो उसके हाथों की गिरफ़्त में थे। उसने एक झटके में मुझे अपने से चिपका लिया और अपना बलिष्ठ लण्ड मेरे चूतड़ों की दरार में घुमाने लगा। मैंने अपनी दोनों टांगों को खोल कर उसे अपना लण्ड ठीक से घुसाने में मदद की।
उफ़्फ़ ! ये तो मोमबत्ती जैसा बिल्कुल भी नहीं लगा। कैसा नरम-सख्त सा मेरी गाण्ड के छेद से सटा हुआ... गुदगुदा रहा था।
मैंने सारे आनन्द को अपने में समेटे हुये अपना चेहरा घुमा कर ऊपर दिया और अपने होंठ खोल दिये। रवि ने बहुत सम्हाल कर मेरे होंठों को फिर से पीना शुरू कर दिया। इन सारे अहसास को... चुभन को... मम्मों को दबाने से लेकर चुम्बन तक के अहसास को महसूस करते करते मेरी चूत से पानी की दो बून्दें रिस कर निकल गई। मेरी चूत में एक मीठेपन की कसक भरने लगी।
"दीदी... प्लीज मेरा लण्ड पकड़ लो ना... प्लीज !"
मैंने अपनी आँखें जैसे सुप्तावस्था से खोली, मुझे और क्या चाहिये था। मैंने अपना हाथ नीचे बढ़ाते हुये अपने दिल की इच्छा भी पूरी की। उसका लण्ड पजामे के ऊपर से पकड़ लिया।
"भैया ! बहुत अच्छा है... कितना मोटा है... और लम्बा भी है... ओह्ह्ह्ह्ह !"
उसने अपना पजामा नीचे सरका दिया तो वो नीचे गिर पड़ा। फिर उसने अपनी छोटी सी अण्डरवियर भी नीचे खिसका दी। उसका नंगा लण्ड तो बिल्कुल मोमबत्ती जैसा नहीं था ... ओह्ह्ह्ह्ह !" !! यह तो बहुत ही गुदगुदा... कड़क... और टोपे पर गीला सा था। मेरी चूत लपलपा उठी... मोमबती लेते हुये बहुत समय हो गया था अब असली लण्ड की बारी थी। उसने मेरे पाजामे का नाड़ा खींचा और वो झम से नीचे मेरे पांवों पर गिर पड़ा।
"दीदी चलो, एक बात कहूँ?"
"क्या...?"
"सुहागरात ऐसे ही मनाते हैं ! है ना...?"
मैंने अन्जानी चाह से रवि को देखा... नजरें चार हुई... ना जाने नजरों ने क्या कहा और क्या समझा... रवि ने मेरी कमर को कस लिया और मेरे चेहरे पर झुक गया। मैं बेबस सी, मूढ़ सी उसे देखती रह गई। उसके होंठ मेरे होंठों से चिपकने लगे। मेरे नीचे के होंठ को उसने धीरे से अपने मुख में ले लिया। मैं तो जाने किस जहाँ में खोने सी लगी। मेरी जीभ से उसकी जीभ टकरा गई।
उसने प्यार से मेरे बालों पर हाथ फ़ेरा... मेरी आँखें बन्द होने लगी... शरीर कांपता हुआ उसके बस में होता जा रहा था। मेरे उभरे हुये मम्मे उसकी छाती से दबने लगे। उसने अपनी छाती से मेरी छाती को रगड़ा मार दिया, मेरे तन में मीठी सी चिन्गारी सुलग उठी।
उसका एक हाथ अब मेरे वक्ष पर आ गया था और फिर उसका एक हल्का सा दबाव ! मेरी तो जैसे जान ही निकल गई।
"रवि ... अह्ह्ह्ह...!"
"दीदी, यह बरसात और ये ठण्डी हवायें... कितना सुहाना मौसम हो गया है, है ना..."
और फिर उसके लण्ड की गुदगुदी भरी चुभन नीचे मेरी चूत के आस-पास होने लगी। उसका लण्ड सख्त हो चुका था। यह गड़ता हुआ लण्ड मोमबत्ती से बिल्कुल अलग था। नर्म सा... कड़क सा... मधुर स्पर्श देता हुआ। मैं अपनी चूत उसके लण्ड से और चिपकाने लगी। उसके लण्ड का उभार अब मुझे जोर से चुभ रहा था। तभी हवा के एक झोंके के साथ वर्षा की एक फ़ुहार हम पर पड़ीं। मैंने जल्दी से मुड़ कर दरवाजा बन्द ही कर दिया।
ओह्ह ! यह क्या ?
मेरे घूमते ही रवि मेरी पीठ से चिपक गया और अपने दोनों हाथ मेरे सख़्त और मोटे मम्मों पर रख दिये। मैंने नीचे मम्मों को देखा... मेरे दोनों कबूतरों को जो उसके हाथों की गिरफ़्त में थे। उसने एक झटके में मुझे अपने से चिपका लिया और अपना बलिष्ठ लण्ड मेरे चूतड़ों की दरार में घुमाने लगा। मैंने अपनी दोनों टांगों को खोल कर उसे अपना लण्ड ठीक से घुसाने में मदद की।
उफ़्फ़ ! ये तो मोमबत्ती जैसा बिल्कुल भी नहीं लगा। कैसा नरम-सख्त सा मेरी गाण्ड के छेद से सटा हुआ... गुदगुदा रहा था।
मैंने सारे आनन्द को अपने में समेटे हुये अपना चेहरा घुमा कर ऊपर दिया और अपने होंठ खोल दिये। रवि ने बहुत सम्हाल कर मेरे होंठों को फिर से पीना शुरू कर दिया। इन सारे अहसास को... चुभन को... मेरे मोटे मम्मों को दबाने से लेकर चुम्बन तक के अहसास को महसूस करते करते मेरी चूत से पानी की दो बून्दें रिस कर निकल गई। मेरी चूत में एक मीठेपन की कसक भरने लगी।
मेरे घूमते ही रवि मेरी पीठ से चिपक गया और अपने दोनों हाथ मेरे मम्मों पर रख दिये। मैंने नीचे मम्मों को देखा... मेरे दोनों कबूतरों को जो उसके हाथों की गिरफ़्त में थे। उसने एक झटके में मुझे अपने से चिपका लिया और अपना बलिष्ठ लण्ड मेरे चूतड़ों की दरार में घुमाने लगा। मैंने अपनी दोनों टांगों को खोल कर उसे अपना लण्ड ठीक से घुसाने में मदद की।
उफ़्फ़ ! ये तो मोमबत्ती जैसा बिल्कुल भी नहीं लगा। कैसा नरम-सख्त सा मेरी गाण्ड के छेद से सटा हुआ... गुदगुदा रहा था।
मैंने सारे आनन्द को अपने में समेटे हुये अपना चेहरा घुमा कर ऊपर दिया और अपने होंठ खोल दिये। रवि ने बहुत सम्हाल कर मेरे होंठों को फिर से पीना शुरू कर दिया। इन सारे अहसास को... चुभन को... मम्मों को दबाने से लेकर चुम्बन तक के अहसास को महसूस करते करते मेरी चूत से पानी की दो बून्दें रिस कर निकल गई। मेरी चूत में एक मीठेपन की कसक भरने लगी।
"दीदी... प्लीज मेरा लण्ड पकड़ लो ना... प्लीज !"
मैंने अपनी आँखें जैसे सुप्तावस्था से खोली, मुझे और क्या चाहिये था। मैंने अपना हाथ नीचे बढ़ाते हुये अपने दिल की इच्छा भी पूरी की। उसका लण्ड पजामे के ऊपर से पकड़ लिया।
"भैया ! बहुत अच्छा है... कितना मोटा है... और लम्बा भी है... ओह्ह्ह्ह्ह !"
उसने अपना पजामा नीचे सरका दिया तो वो नीचे गिर पड़ा। फिर उसने अपनी छोटी सी अण्डरवियर भी नीचे खिसका दी। उसका नंगा लण्ड तो बिल्कुल मोमबत्ती जैसा नहीं था ... ओह्ह्ह्ह्ह !" !! यह तो बहुत ही गुदगुदा... कड़क... और टोपे पर गीला सा था। मेरी चूत लपलपा उठी... मोमबती लेते हुये बहुत समय हो गया था अब असली लण्ड की बारी थी। उसने मेरे पाजामे का नाड़ा खींचा और वो झम से नीचे मेरे पांवों पर गिर पड़ा।
"दीदी चलो, एक बात कहूँ?"
"क्या...?"
"सुहागरात ऐसे ही मनाते हैं ! है ना...?"
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.