06-10-2021, 04:22 PM
वाह! क्या मीठी सुगंध थी! ऐसी सुगंध तो मोंट ब्लांक के पर्फ्यूम में भी नहीं आती होगी! मैं तो पूरा मदहोश हो गया और स्वर्गलोक के कमल के फूल की कल्पना करने लगा.
तभी निर्मला बोली- भैया, वहाँ मुँह लगाकर क्या कर रहे हो?
मैंने कोई ध्यान नहीं दिया और मैं चूत सूंघने में मस्त था. तो निर्मला मेरे बाल खींच कर बोली- भैया, क्या कर रहे हो?
मैंने सिर उठा कर कहा- कुछ नहीं डार्लिंग! तुम्हारी चूत ने तो मुझे पागल कर दिया है! यह कह कर मैं उसकी चूची चूसने लगा और उंगली को चूत में डाल कर आगे पीछे करने लगा. तभी वो बोली- भैया, मुझे कुछ हो रहा है! प्लीज़ आप मुझे छोड़ दो!
मैंने कहा- क्या हो रहा है?
तो बोली- मेरी चूत से कुछ आने वाला है!
मैंने कहा- प्लीज़ रुको! और मैं मुँह को नीचे ले कर चूत में जीभ डाल कर चूत को चाटने लगा औऱ एक हाथ से उसकी चूची को मसलने लगा और वो पूरी पागलों की तरह होकर बोली- प्लीज़ भैया! जल्दी कऱो! नहीं तो मैं मर जाऊँगी!
मैं जल्दी जल्दी उसकी चूत को चाटने लगा और हाथ से उसकी चूची मसलने लगा. करीब पाँच मिनट में ही वो ज़ोऱ से आऽऽऽऽ आऽऽऽऽऽ कर के झड़ गई और सारा चूतरस (प्रेमरस) मेरे मुँह में छोड़ दिया. मैंने पूरा माल चाट चाट कर साफ किया.
तभी मैंने उससे पूछा- मजा आया या नहीं?
तो शरमाते हुए बोली- भैया प्लीज़!
मैंने कहा- अब आगे का खेल खेलें या नहीं?
तो बोली- इससे आगे का खेल कौन सा है?
मैंने उसे सीधे ही कहा- अब मैं तुझे चोदूँगा!
तो बोली- कैसे?
मैंने लंड हाथ में लेकर हिलाते हुए उसकी चूत पर हाथ रखकर कहा- मैं इसे तुम्हारी चूत में डाल कर ज़ोऱ से चोदूँगा!
तो बोली- भैया, प्लीज़ आप अभी मुझे छोड़ दो! आप कल कर लेना!
मैंने कहा- क्यों?
तो बोली- मुझे कहीं जाना है! और मैं पहले ही लेट हो गई हूँ! प्लीज़ मुझे जाने दें, मैं आपसे वादा करती हूँ!
तो दोस्तो, मैंने भी कोई जबरदस्ती न करते हुए उसके चूचुक को मुँह में लेकर हल्का सा काट कर कहा- मैं तुझे बहुत प्यार करता हूँ, मैं तेरे साथ कोई ज़बरदस्ती नहीं करूंगा! तुम जब तुम्हारी मर्जी हो, मुझे बुला लेना, मैं हाज़िर हो जाऊँगा!
मैंने अपने कपड़े पहने और बाहर आकर हाल में बैठ कर टीवी. चला कर सोफ़ा पर बैठ गया. तभी वो पाँच मिनट के बाद निर्मला बाहर आई, मुझसे बोली- तुम आए क्यों थे?
मैं भी भूल गया था कि मेरे पास कैश का बैग था. मैंने कहा- तुम्हारे कमरे में मेरा कैश का बैग पड़ा है, मैं कैश देने आया था. लेकिन बुआ घर में नहीं थी तो मैंने सोचा कि तुम को दे दूँ. तो बोली- बैग कहाँ है?
मैंने कहा- तुम्हारे कमरे में कुर्सी के पास रखा है, तुम मुझे बैग ला कर दे दो.
निर्मला बैग लेने कमरे में गई. मैं भी पीछे गया और निर्मला को पकड़ कर घुमाया और उसके वक्ष मसलते हुए चूमने लगा. वो भी अपनी जीभ मेरे मुँह में डाल कर घुमाने लगी. करीब़ पाँच मिनट के बाद हम अलग हुए और मैंने बैग निर्मला के हाथ में देकर कहा- यह बैग अपने पापा को दे देना और सेल पर बात करा देना! और मैंने अपना सेल नम्बर उसे दे दिया.
और मैंने भी उसका सेल नम्बर ले लिया. उसको कहा- यह बात तुम किसी से मत करना और मैं भी किसी से नहीं कहूँगा, क्योंकि इसमें तुम्हारी और मेरे खानदान का इज़्ज़्त का सवाल है.
निर्मला बोली- मैं नहीं कहूँगी!
मैंने कहा- तुम्हारी फ्रेंड्स को भी नहीं बताना!
वो बोली- नहीं बताऊँगी भैया! आप मुझे इतना भी बेवकूफ़ मत समझो!
मैंने कहा- ठीक है! तुम मुझे फोन करोगी या मैं तुझे फोन करूँ?
तो बोली- मैं तुझे फोन करूंगी!
मैंने कहा- प्रॉमिस?
तो बोली- प्रॉमिस!
मैंने कहा- बाय!
और मैं घर से निकल गया और सीधा घर आकर सो गया. कब रात के नौ बजे, मुझे पता ही नहीं चला. मम्मी ने मुझे जगाया. मैं खाना खाकर घूमने चला गया, रात को ग्यारह बजे घर आकर सो गया.
तभी निर्मला बोली- भैया, वहाँ मुँह लगाकर क्या कर रहे हो?
मैंने कोई ध्यान नहीं दिया और मैं चूत सूंघने में मस्त था. तो निर्मला मेरे बाल खींच कर बोली- भैया, क्या कर रहे हो?
मैंने सिर उठा कर कहा- कुछ नहीं डार्लिंग! तुम्हारी चूत ने तो मुझे पागल कर दिया है! यह कह कर मैं उसकी चूची चूसने लगा और उंगली को चूत में डाल कर आगे पीछे करने लगा. तभी वो बोली- भैया, मुझे कुछ हो रहा है! प्लीज़ आप मुझे छोड़ दो!
मैंने कहा- क्या हो रहा है?
तो बोली- मेरी चूत से कुछ आने वाला है!
मैंने कहा- प्लीज़ रुको! और मैं मुँह को नीचे ले कर चूत में जीभ डाल कर चूत को चाटने लगा औऱ एक हाथ से उसकी चूची को मसलने लगा और वो पूरी पागलों की तरह होकर बोली- प्लीज़ भैया! जल्दी कऱो! नहीं तो मैं मर जाऊँगी!
मैं जल्दी जल्दी उसकी चूत को चाटने लगा और हाथ से उसकी चूची मसलने लगा. करीब पाँच मिनट में ही वो ज़ोऱ से आऽऽऽऽ आऽऽऽऽऽ कर के झड़ गई और सारा चूतरस (प्रेमरस) मेरे मुँह में छोड़ दिया. मैंने पूरा माल चाट चाट कर साफ किया.
तभी मैंने उससे पूछा- मजा आया या नहीं?
तो शरमाते हुए बोली- भैया प्लीज़!
मैंने कहा- अब आगे का खेल खेलें या नहीं?
तो बोली- इससे आगे का खेल कौन सा है?
मैंने उसे सीधे ही कहा- अब मैं तुझे चोदूँगा!
तो बोली- कैसे?
मैंने लंड हाथ में लेकर हिलाते हुए उसकी चूत पर हाथ रखकर कहा- मैं इसे तुम्हारी चूत में डाल कर ज़ोऱ से चोदूँगा!
तो बोली- भैया, प्लीज़ आप अभी मुझे छोड़ दो! आप कल कर लेना!
मैंने कहा- क्यों?
तो बोली- मुझे कहीं जाना है! और मैं पहले ही लेट हो गई हूँ! प्लीज़ मुझे जाने दें, मैं आपसे वादा करती हूँ!
तो दोस्तो, मैंने भी कोई जबरदस्ती न करते हुए उसके चूचुक को मुँह में लेकर हल्का सा काट कर कहा- मैं तुझे बहुत प्यार करता हूँ, मैं तेरे साथ कोई ज़बरदस्ती नहीं करूंगा! तुम जब तुम्हारी मर्जी हो, मुझे बुला लेना, मैं हाज़िर हो जाऊँगा!
मैंने अपने कपड़े पहने और बाहर आकर हाल में बैठ कर टीवी. चला कर सोफ़ा पर बैठ गया. तभी वो पाँच मिनट के बाद निर्मला बाहर आई, मुझसे बोली- तुम आए क्यों थे?
मैं भी भूल गया था कि मेरे पास कैश का बैग था. मैंने कहा- तुम्हारे कमरे में मेरा कैश का बैग पड़ा है, मैं कैश देने आया था. लेकिन बुआ घर में नहीं थी तो मैंने सोचा कि तुम को दे दूँ. तो बोली- बैग कहाँ है?
मैंने कहा- तुम्हारे कमरे में कुर्सी के पास रखा है, तुम मुझे बैग ला कर दे दो.
निर्मला बैग लेने कमरे में गई. मैं भी पीछे गया और निर्मला को पकड़ कर घुमाया और उसके वक्ष मसलते हुए चूमने लगा. वो भी अपनी जीभ मेरे मुँह में डाल कर घुमाने लगी. करीब़ पाँच मिनट के बाद हम अलग हुए और मैंने बैग निर्मला के हाथ में देकर कहा- यह बैग अपने पापा को दे देना और सेल पर बात करा देना! और मैंने अपना सेल नम्बर उसे दे दिया.
और मैंने भी उसका सेल नम्बर ले लिया. उसको कहा- यह बात तुम किसी से मत करना और मैं भी किसी से नहीं कहूँगा, क्योंकि इसमें तुम्हारी और मेरे खानदान का इज़्ज़्त का सवाल है.
निर्मला बोली- मैं नहीं कहूँगी!
मैंने कहा- तुम्हारी फ्रेंड्स को भी नहीं बताना!
वो बोली- नहीं बताऊँगी भैया! आप मुझे इतना भी बेवकूफ़ मत समझो!
मैंने कहा- ठीक है! तुम मुझे फोन करोगी या मैं तुझे फोन करूँ?
तो बोली- मैं तुझे फोन करूंगी!
मैंने कहा- प्रॉमिस?
तो बोली- प्रॉमिस!
मैंने कहा- बाय!
और मैं घर से निकल गया और सीधा घर आकर सो गया. कब रात के नौ बजे, मुझे पता ही नहीं चला. मम्मी ने मुझे जगाया. मैं खाना खाकर घूमने चला गया, रात को ग्यारह बजे घर आकर सो गया.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.
