23-04-2019, 08:17 AM
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गुलबिया : सावन में फागुन
![[Image: Gulabiya-Madhurima-in-Saree-01.jpg]](https://picsbees.com/images/2018/12/02/Gulabiya-Madhurima-in-Saree-01.jpg)
लेकिन अँधेरा जबरदस्त था, पानी की धार भी तेज थी और बाग में नीचे जमीन एकदम कीचड़ हो गई थी। चलना भी आसान नहीं था, हम सब थोड़ी खुली जगह पे थे जहाँ कीचड़ तो बहुत था लेकिन किसी पेड़ की डाल के गिरने का डर नहीं था। चलना भी आसान नहीं थी।
“अरे झूला न सही त चला सावन में ननदन के होली क मजा देवल जाय न…”
ये आवाज गुलबिया की थी।
मुझे क्या मालूम ये बात वो किसके लिए कह रही थी। लेकिन जब अगले ही पल उसने और एक और भौजी ने धक्का देकर मुझे कीचड़ में गिरा दिया तब मैं समझी। ब्लाउज तो पहले ही फट चुका था। एक किसी ने मेरे दोनों हाथों को पकड़ के घसीटा और मैं गड्ढे में।
गुलबिया ने बस वहीं से कीचड़ उठा-उठा के मेरे जोबन पे लगाना शुरू कर दिया।
![[Image: nips.jpg]](https://picsbees.com/images/2018/12/02/nips.jpg)
मैं क्यों छोड़ती आखिर, मैं भी तो अपनी भौजी की ननद थी, और इतने दिनों में चम्पा भाभी और बसंती की संगत में काफी खेल तमाशे सीख चुकी थी। फिर दिनेश ने भी मेरे साथ आँगन में कीचड़ की होली खेली थी।
मैंने दोनों हाथों में कीचड़ लेकर सीधे गुलबिया की दोनों चूंचियों पे, 36+ रही होंगी लेकिन एकदम कड़ी, गोल-गोल।
लेकिन गुलबिया ने खूब खुश होकर मुझे गले लगा लिया और बोली-
“मान गए… हो तुम हमार लहुरी ननदिया। बहुत मजा आई तोहरे साथ…”
“एकदम भौजी, आखिर मजा लेवे आई हूँ तोहरे गाँव, न देबू ता जबरन लेब…”
![[Image: lez-nip-tumblr_oebe4mD7DS1u36wjlo1_500.gif]](https://picsbees.com/images/2018/12/02/lez-nip-tumblr_oebe4mD7DS1u36wjlo1_500.gif)
मुश्कुरा के मैं बोली और उसकी चूची पे लगे कीचड़ को जोर-जोर से रगड़ने लगी।
मेरी साड़ी तो सरक के छल्ला बन गई थी कमर पे और ब्लाउज कामिनी भाभी और बसंती ने फाड़ के बराबर कर दिया था।
मैंने भी गुलबिया की चोली कुछ फाड़ी कुछ खोल दी थी।
लेकिन गुलबिया, मैंने कहा था न बसंती के टक्कर की थी, तो बस नीचे से पैर फंसा के उसने ऐसी पलटी दी की मैं नीचे वो ऊपर।
और अब मैं समझी की गाँव सारी लड़कियां गुलबिया के नाम से डरती क्यों थी?
मुझे अजय की याद आ गई, जिस तरह बँसवाड़ी में उसने मेरी चूंचियां रगड़ीं थी, उसी तरह। पहले दोनों हाथों की हथेलियों से, फिर पकड़ के कुचलते हुए, और साथ में उसकी चूत मेरी चूत पे घिस्से लगा रही थी, पूरी ताकत से।
![[Image: lez-pussy-rubbing-18264568.gif]](https://picsbees.com/images/2018/12/02/lez-pussy-rubbing-18264568.gif)
jpg[/img]
गुलबिया के जोर से मेरे चूतड़ नीचे कीचड़ में रगड़े जा रहे थे। मैं सिसक रही थी लेकिन मैं धक्कों का जवाब धक्कों से दे रही थी, चूत मेरी भी घिस्सों पर घिस्से मार रही थी।
पानी करीब करीब बंद हो गया था, बस हल्की-हल्की बूंदें पड़ रही थीं।
मैं बस… लग रहा था की पहले बसंती और फिर कामिनी भाभी चूत में आग लगाकर छोड़ दी, तो अब गुलबिया ही बारिश करा के…”
उधर उस कच्ची कली, सुनील की बहन को भी दो भौजाइयों ने दबोच रखा था, और खुल के उसकी रगड़ाई मसलाई हो रही थी।
और इधर मेरी भी, गुलबिया ने गचाक से एक उंगली मेरी चूत में पेल दी और मेरी कच्ची कसी चूत ने उसे जोर से दबोच लिया, कहा-
“बहुत कसी है, एकदम टाइट, लेकिन अब हमरे हाथ में पड़ गई हो न, देखना भोसड़ी वाली बना के भेजूंगी…”
![[Image: Lez-Gu-9239736.gif]](https://picsbees.com/images/2018/12/02/Lez-Gu-9239736.gif)
मैं- “पक्का भौजी, तोहरे मुँह में घी शक्कर…”
खिलखिलाते हुए मैंने कहा और जोर से अपनी चूत सिकोड़ ली।
तब तक नीरू ने दोनों भौजाइयों से बचने की कोशिश करते हुए बोला-
“भाभी, अरे बरसात बंद हो गई है अब चलूँ?”
जवाब बसंती ने दिया, जो तब तक वहां शामिल हो गई थी-
“अरी ननद रानी, अबही कहाँ, असली बरसात तो बाकी है, तनी उसका भी तो स्वाद चख लो…”
और वहीं से गुलबिया को गुहार लगाई। गुलबिया की मंझली उंगली, मेरी कसी गीली गुलाबी चूत के अंदर खरोंच रही थी।
मुझे छोड़ते हुए वो बोली-
“बिन्नो, हमार तोहार उधार…”
और बंसती की ओर चली गई।
मैं किसी तरह लथपथ कीचड़ से उठी तो कामिनी भाभी ने मेरा हाथ पकड़ के सहारा देके उठाया।
चम्पा भाभी ने इशारा किया की बाकी सब अभी नीरू के साथ फँसी है मैं निकल चलूँ।
ब्लाउज तो फट ही गया था, किसी तरह साड़ी को लपेटा मैंने, और मैं उन दोनों लोगों के साथ निकल चली।
![[Image: boobs-jethani-champa-15095573_1325382605...3502_n.jpg]](https://picsbees.com/images/2018/12/02/boobs-jethani-champa-15095573_132538260557328_79165503984823502_n.jpg)
बारिश बंद हो गई थी और अब हवा एक बार फिर तेज चलने लगी थी। आसमान में बादल भी छिटक गए थे और चाँद निकल आया था। पेड़ों के झुरमुट में मुड़ने के पहले एक बार एक पल ठहर कर मैंने देखा, तो सुनील की बहन छटपटा रही थी, लेकिन उसके दोनों हाथ, एक हाथ से बसंती ने पकड़ रखा था, और दूसरे हाथ से उसके फूले-फूले गाल जोर से दबा रखे थे।
![[Image: Gulabiya-Madhurima-in-Saree-01.jpg]](https://picsbees.com/images/2018/12/02/Gulabiya-Madhurima-in-Saree-01.jpg)
लेकिन अँधेरा जबरदस्त था, पानी की धार भी तेज थी और बाग में नीचे जमीन एकदम कीचड़ हो गई थी। चलना भी आसान नहीं था, हम सब थोड़ी खुली जगह पे थे जहाँ कीचड़ तो बहुत था लेकिन किसी पेड़ की डाल के गिरने का डर नहीं था। चलना भी आसान नहीं थी।
“अरे झूला न सही त चला सावन में ननदन के होली क मजा देवल जाय न…”
ये आवाज गुलबिया की थी।
मुझे क्या मालूम ये बात वो किसके लिए कह रही थी। लेकिन जब अगले ही पल उसने और एक और भौजी ने धक्का देकर मुझे कीचड़ में गिरा दिया तब मैं समझी। ब्लाउज तो पहले ही फट चुका था। एक किसी ने मेरे दोनों हाथों को पकड़ के घसीटा और मैं गड्ढे में।
गुलबिया ने बस वहीं से कीचड़ उठा-उठा के मेरे जोबन पे लगाना शुरू कर दिया।
![[Image: nips.jpg]](https://picsbees.com/images/2018/12/02/nips.jpg)
मैं क्यों छोड़ती आखिर, मैं भी तो अपनी भौजी की ननद थी, और इतने दिनों में चम्पा भाभी और बसंती की संगत में काफी खेल तमाशे सीख चुकी थी। फिर दिनेश ने भी मेरे साथ आँगन में कीचड़ की होली खेली थी।
मैंने दोनों हाथों में कीचड़ लेकर सीधे गुलबिया की दोनों चूंचियों पे, 36+ रही होंगी लेकिन एकदम कड़ी, गोल-गोल।
लेकिन गुलबिया ने खूब खुश होकर मुझे गले लगा लिया और बोली-
“मान गए… हो तुम हमार लहुरी ननदिया। बहुत मजा आई तोहरे साथ…”
“एकदम भौजी, आखिर मजा लेवे आई हूँ तोहरे गाँव, न देबू ता जबरन लेब…”
![[Image: lez-nip-tumblr_oebe4mD7DS1u36wjlo1_500.gif]](https://picsbees.com/images/2018/12/02/lez-nip-tumblr_oebe4mD7DS1u36wjlo1_500.gif)
मुश्कुरा के मैं बोली और उसकी चूची पे लगे कीचड़ को जोर-जोर से रगड़ने लगी।
मेरी साड़ी तो सरक के छल्ला बन गई थी कमर पे और ब्लाउज कामिनी भाभी और बसंती ने फाड़ के बराबर कर दिया था।
मैंने भी गुलबिया की चोली कुछ फाड़ी कुछ खोल दी थी।
लेकिन गुलबिया, मैंने कहा था न बसंती के टक्कर की थी, तो बस नीचे से पैर फंसा के उसने ऐसी पलटी दी की मैं नीचे वो ऊपर।
और अब मैं समझी की गाँव सारी लड़कियां गुलबिया के नाम से डरती क्यों थी?
मुझे अजय की याद आ गई, जिस तरह बँसवाड़ी में उसने मेरी चूंचियां रगड़ीं थी, उसी तरह। पहले दोनों हाथों की हथेलियों से, फिर पकड़ के कुचलते हुए, और साथ में उसकी चूत मेरी चूत पे घिस्से लगा रही थी, पूरी ताकत से।
![[Image: lez-pussy-rubbing-18264568.gif]](https://picsbees.com/images/2018/12/02/lez-pussy-rubbing-18264568.gif)
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गुलबिया के जोर से मेरे चूतड़ नीचे कीचड़ में रगड़े जा रहे थे। मैं सिसक रही थी लेकिन मैं धक्कों का जवाब धक्कों से दे रही थी, चूत मेरी भी घिस्सों पर घिस्से मार रही थी।
पानी करीब करीब बंद हो गया था, बस हल्की-हल्की बूंदें पड़ रही थीं।
मैं बस… लग रहा था की पहले बसंती और फिर कामिनी भाभी चूत में आग लगाकर छोड़ दी, तो अब गुलबिया ही बारिश करा के…”
उधर उस कच्ची कली, सुनील की बहन को भी दो भौजाइयों ने दबोच रखा था, और खुल के उसकी रगड़ाई मसलाई हो रही थी।
और इधर मेरी भी, गुलबिया ने गचाक से एक उंगली मेरी चूत में पेल दी और मेरी कच्ची कसी चूत ने उसे जोर से दबोच लिया, कहा-
“बहुत कसी है, एकदम टाइट, लेकिन अब हमरे हाथ में पड़ गई हो न, देखना भोसड़ी वाली बना के भेजूंगी…”
![[Image: Lez-Gu-9239736.gif]](https://picsbees.com/images/2018/12/02/Lez-Gu-9239736.gif)
मैं- “पक्का भौजी, तोहरे मुँह में घी शक्कर…”
खिलखिलाते हुए मैंने कहा और जोर से अपनी चूत सिकोड़ ली।
तब तक नीरू ने दोनों भौजाइयों से बचने की कोशिश करते हुए बोला-
“भाभी, अरे बरसात बंद हो गई है अब चलूँ?”
जवाब बसंती ने दिया, जो तब तक वहां शामिल हो गई थी-
“अरी ननद रानी, अबही कहाँ, असली बरसात तो बाकी है, तनी उसका भी तो स्वाद चख लो…”
और वहीं से गुलबिया को गुहार लगाई। गुलबिया की मंझली उंगली, मेरी कसी गीली गुलाबी चूत के अंदर खरोंच रही थी।
मुझे छोड़ते हुए वो बोली-
“बिन्नो, हमार तोहार उधार…”
और बंसती की ओर चली गई।
मैं किसी तरह लथपथ कीचड़ से उठी तो कामिनी भाभी ने मेरा हाथ पकड़ के सहारा देके उठाया।
चम्पा भाभी ने इशारा किया की बाकी सब अभी नीरू के साथ फँसी है मैं निकल चलूँ।
ब्लाउज तो फट ही गया था, किसी तरह साड़ी को लपेटा मैंने, और मैं उन दोनों लोगों के साथ निकल चली।
![[Image: boobs-jethani-champa-15095573_1325382605...3502_n.jpg]](https://picsbees.com/images/2018/12/02/boobs-jethani-champa-15095573_132538260557328_79165503984823502_n.jpg)
बारिश बंद हो गई थी और अब हवा एक बार फिर तेज चलने लगी थी। आसमान में बादल भी छिटक गए थे और चाँद निकल आया था। पेड़ों के झुरमुट में मुड़ने के पहले एक बार एक पल ठहर कर मैंने देखा, तो सुनील की बहन छटपटा रही थी, लेकिन उसके दोनों हाथ, एक हाथ से बसंती ने पकड़ रखा था, और दूसरे हाथ से उसके फूले-फूले गाल जोर से दबा रखे थे।