29-09-2021, 03:15 PM
मगर उसके बाद हम दोनों आपस में बहुत ज़्यादा खुल गई, एक दूसरी को कुत्ती, कामिनी, रंडी, गश्ती, मादरचोद, बहनचोद तो यूं ही मज़ाक में कह दिया करती थी। कभी हमें एक दूसरी की किसी भी बात पर गुस्सा आता ही नहीं था।
यूरोप से भारत वापिस आई, तो उसके बाद तो हम दोनों सहेलियों ने और भी बहुत से लोगों से चुदवाया, साथ में भी अलग अलग भी।
अब मुझे मेरे व्यक्तित्व के कारण और पारिवारिक प्रष्ठभूमि के कारण बार बार राजनीति में आने का दबाव बन रहा था, तो मैंने सोचा, सब कह रहे हैं, तो राजनीति में आ ही जाते हैं।
सबसे पहले मुझे अपनी ही पार्टी की महिला विंग की प्रधान बना दिया गया, उसके बाद मैं पार्षद का चुनाव जीता, और फिर अगली बार मैंने विधायक के चुनाव में खड़े होने की सोची। मगर जितना मैंने सोचा था, उस से कहीं मुश्किल लगा मुझे विधायक का चुनाव जीतना।
इतनी भाग दौड़, इतना शोरोगुल, इतनी मानसिक और शारीरिक थकावट।
यूरोप से भारत वापिस आई, तो उसके बाद तो हम दोनों सहेलियों ने और भी बहुत से लोगों से चुदवाया, साथ में भी अलग अलग भी।
अब मुझे मेरे व्यक्तित्व के कारण और पारिवारिक प्रष्ठभूमि के कारण बार बार राजनीति में आने का दबाव बन रहा था, तो मैंने सोचा, सब कह रहे हैं, तो राजनीति में आ ही जाते हैं।
सबसे पहले मुझे अपनी ही पार्टी की महिला विंग की प्रधान बना दिया गया, उसके बाद मैं पार्षद का चुनाव जीता, और फिर अगली बार मैंने विधायक के चुनाव में खड़े होने की सोची। मगर जितना मैंने सोचा था, उस से कहीं मुश्किल लगा मुझे विधायक का चुनाव जीतना।
इतनी भाग दौड़, इतना शोरोगुल, इतनी मानसिक और शारीरिक थकावट।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.
