29-09-2021, 03:14 PM
मगर अब जब इतने बड़े घर से हूँ, तो मायके में भी और ससुराल में भी पैसे की या किसी भी और चीज़ की कोई तंगी मुझे कभी भी महसूस नहीं हुई, बल्कि ज़रूरत से ज़्यादा हो तो इंसान जल्दी बिगड़ जाता है।
मेरे साथ भी कुछ ऐसा ही था, मैं भी अपने स्कूल के समय से सब पर धौंस जमाती थी, कॉलेज में भी, यूनिवर्सिटी में भी। पढ़ाई में भी होशियार, और बाकी सब कामों में भी। स्कूल कॉलेज में ही मैं पहली बार किसी की लुल्ली से खेली थी और पहली बार चुदवा कर देख लिया था।
मेरे साथ भी कुछ ऐसा ही था, मैं भी अपने स्कूल के समय से सब पर धौंस जमाती थी, कॉलेज में भी, यूनिवर्सिटी में भी। पढ़ाई में भी होशियार, और बाकी सब कामों में भी। स्कूल कॉलेज में ही मैं पहली बार किसी की लुल्ली से खेली थी और पहली बार चुदवा कर देख लिया था।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.