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Non-erotic सुमन सुमन
#6
वह जानता था–न जाने कितने नौजवान, युवक-युवतियां एक-दूसरे के सौंदर्य से...कपड़ों से...तथा अन्य ऊपरी चमक-दमक से प्रभावित होकर अपनी जवानी के जोश को प्यार का नाम देने लगते हैं। किंतु जब उन्हें पता लगता है कि इस सौंदर्य के पीछे जिसका एक उपासक था, एक घिनौना चरित्र छुपा है...यह सौंदर्य उसका नहीं बल्कि सभी का है। कोई भी इस सौंदर्य को अपनी बाहों में कस सकता है तो उसके दिल को एक ठेस लगती है...उसका जीवन बर्बाद हो जाता है। तभी तो गिरीश सौंदर्य का उपासक नहीं है, वह उपासक है चरित्र का। उसकी निगाहों में नारी का सर्वोत्तम गहना चरित्र ही है–उसका सौंदर्य नहीं। उसे कितनी बार प्यार मिला किंतु वह जानता था कि वह प्यार के नाम को बदनाम करने वाले सौंदर्य के उपासक हैं। कुछ जवानियां हैं जो अपना बोझ नहीं संभाल पा रही हैं।

किंतु आज...आज उसके सामने एक देवी बैठी थी...हां पहली नजर में वह उसे देवी जैसी ही लगी थी।

उसके जिस्म पर साधारण-सा कुर्ता और पजमियां...वक्ष-स्थल पर ठीक प्रकार से पड़ी हुई एक चुनरी...सबसे अधिक पसंद आई थी उसे उसकी सादगी।

‘‘क्या बात है, भैया...क्या देख रहे हो?’’ उसकी बहन ने उसे चौंकाया।

‘‘अ...अ...क...कुछ नहीं...कुछ नहीं।’’ गिरीश थोड़ा झेंपकर बोला।

‘‘लगता है भैया तुम मेरी सहेली को एक ही मुलाकात में दिल दे बैठे हो। इसका नाम सुमन है।’’

और सुमन...।
सुनकर वह तो एक पल भी वहां न ठहर सकी...तेजी से भाग गई वह।

भागते-भागते उसने गिरीश की ये आवाज अवश्य सुनी–
‘‘क्या बकती हो, अनीता?’’ गिरीश ने झेंप मिटाने के लिए यह कहा तो अवश्य था किंतु वास्तव में उसे लग रहा था जैसे अनीता ठीक ही कहती है।

सुमन...कितना प्यारा नाम है। वास्तव में सुमन जैसी ही कोमल थी वह।

बस...यह थी...उसकी पहली मुलाकात...सिर्फ क्षण-मात्र की।
इस मुलाकात में गिरीश को तो वह अपनी भावनाओं की साकार मूर्ति लगी थी किंतु सुमन न जान सकी थी कि गिरीश की आंखों में झांकते ही उसका मन धक् से क्यों रह गया।

उसके बाद–
वे लगभग प्रतिदिन मिलते...अनेकों बार।

दोनों के कदम एक-दूसरे को देखकर ठिठक जाते...नयन स्थिर हो जाते...दिल धड़कने लगता किंतु फिर शीघ्र ही सुमन उसके सामने से भाग जाती।

क्रम उसी प्रकार चलता रहा...किंतु बोला कोई कुछ नहीं...मानो आंखें ही सब कुछ कह देतीं। वक्त गुजरता रहा...आंखों के टकराव के साथ ही साथ उसके अधर मुस्कराने लगे।

वक्त फिर आगे बढ़ा...मुस्कान हंसी में बदली...बोलता कोई कुछ न था किंतु बातें हो जातीं...प्रेमियों की भाषा तो प्रेमी ही जानें...दोनों ही दिल की बात अधरों पर लाना चाहते किंतु एक दूसरे की प्रतीक्षा थी।

दिन बीतते गए।
सुमन पूरी तरह से उसके मन-मंदिर की देवी बन गई। किंतु अधरों की दीवार अभी बनी हुई थी। कहते हैं सब कुछ वक्त के साथ होता है...एक ही मुलाकात में कोई किसी के मन में तो उतर सकता है किंतु प्रेम का स्थान ग्रहण नहीं कर सकता, प्रेम के लिए समय चाहिए...अवसर चाहिए...ये दोनों ही वस्तुएं सुमन और गिरीश के पास थीं अर्थात पहले लाज का पर्दा हटा...आमने-सामने आकर मुस्कराने लगे...धीरे-धीरे दूर से ही संकेत होने लगे।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



thanks
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सुमन सुमन - by neerathemall - 22-04-2019, 10:59 AM
RE: सुमन सुमन - by neerathemall - 22-04-2019, 11:00 AM
RE: सुमन सुमन - by neerathemall - 22-04-2019, 11:01 AM
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RE: सुमन सुमन - by neerathemall - 22-04-2019, 11:02 AM
RE: सुमन सुमन - by neerathemall - 22-04-2019, 11:03 AM
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RE: सुमन सुमन - by neerathemall - 22-04-2019, 11:04 AM
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RE: सुमन सुमन - by neerathemall - 11-07-2022, 06:03 PM
RE: सुमन सुमन - by neerathemall - 11-07-2022, 06:04 PM
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RE: सुमन सुमन - by neerathemall - 11-07-2022, 06:10 PM
RE: सुमन सुमन - by neerathemall - 11-07-2022, 06:11 PM



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