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Non-erotic सुमन सुमन
#5
काफी प्रयासों के बाद शिव भवनेश नामक युवक के दिमाग में यह बात बैठाने में सफल हो गया कि गिरीश पागल है और वास्तव में गिरीश इस समय लग भी पागल जैसा ही रहा था। अंत में बड़ी कठिनाई से शिव ने वह विवाद समाप्त किया और गिरीश को लेकर घर की ओर बढ़ा।

रास्ते में शिव ने पूछा–‘‘गिरीश...क्या तुम उन दोनों में से किसी को जानते हो?’’

‘‘नहीं...मुझे नहीं मालूम वे कौन हैं? लेकिन शिव, जब भी कोई लड़की इस तरह के वादे करती है तो न जाने क्यों मैं पागल-सा हो जाता हूं...न जाने क्या हो जाता है मुझे?’’

‘‘विचित्र आदमी हो यार...आज तो तुमने मरवा ही दिया था।’’ शिव ने कहा और वे घर आ गए।

अंदर प्रवेश करते ही नौकर ने गिरीश के हाथों में तार थमाकर कहा–‘‘साब...ये अभी-अभी आया है।’’

गिरीश ने नौकर के हाथ से तार लिया और खोलकर पढ़ा।
‘गिरीश! ७ अप्रैल को मेरी शादी में नहीं पहुँचे तो शादी नहीं होगी।
–तुम्हारा दोस्त
शेखर।’


पढ़कर स्तब्ध सा रह गया गिरीश।
शेखर...उसका प्यारा मित्र...उसके बचपन का साथी, अभी एक वर्ष पूर्व ही तो वह उससे अलग हुआ है...वह जाएगा...उसकी शादी में अवश्य जाएगा लेकिन पांच तारीख तो आज हो ही गई है...अगर वह अभी चल दे तब कहीं सात की सुबह तक उसके पास पहुंचेगा।

उसने तुरंत टेलीफोन द्वारा अगली ट्रेन का टिकट बुक कराया और फिर अपना सूटकेस ठीक करके स्टेशन की ओर रवाना हो गया।

कुछ समय पश्चात वह ट्रेन में बैठा चला जा रहा था...क्षण-प्रतिक्षण अपने प्रिय दोस्त शेखर के निकट। उसकी उंगलियों के बीच एक सिगरेट थी। सिगरेट के कश लगाता हुआ वह फिर अतीत की यादों में घिरता जा रहा था, उसके मानव-पटल पर कुछ दृश्य उभर आए थे...उसके गमगीन अतीत की कुछ परछाइयां। उसकी आंखों के सामने एक मुखड़ा नाच उठा...चांद जैसा हंसता-मुस्कराता प्यारा-प्यारा मुखड़ा। यह सुमन थी।

उसके अतीत का गम...बेवफाई की पुतली...सुमन। वह मुस्करा रही थी...मानो गिरीश की बेबसी पर अत्यंत प्रसन्न हो।

सुमन हंसती रही...मुस्कराती रही...गिरीश की आंखों के सामने फिर उसका अतीत दृश्यों के रूप में तैरने लगा...हां सुमन इसी तरह मुस्कराती हुई तो मिली थी...सुमन ने उसे भी हंसाया था...किंतु...किंतु...अंत में...अंत में...उफ। क्या यही प्यार है...इसी को प्रेम कहते हैं।
~




पौधे के शीर्ष पर एक पुष्प होता है...हंसता, खिलता, मुस्कराता हुआ।

एक फूल...जो खुशियों का प्रतीक है, प्रसन्नताओं का खजाना है...किंतु फूल के नीचे...जितने नीचे चलते चले जाते हैं वहां कांटों का साम्राज्य होता है। जो अगर चुभ जाएं तो एक सिसकारी निकलती है...दर्द भरी सिसकारी।

जब कोई बच्चा हंसता है, तो बुजर्ग कहते हैं कि अधिक मत हंसाओ वरना उतना ही रोना पड़ेगा। क्या मतलब है इस बात का? ये उनका कैसा अनुभव है?

क्या वास्तव में हंसने के बाद रोना पड़ता है?
ठीक इसी प्रकार बुजुर्गों का अनुभव शायद ठीक ही है...प्रत्येक खुशी गम का संदेश लाती है...प्रत्येक प्रसन्नता के पीछे कष्ट छुपे रहते हैं। कुछ ऐसा ही अनुभव गिरीश का भी था।

उसके जीवन में सुमन आई...हजारों खुशियां समेटकर...इतने सुख लेकर कि गिरीश के संभाले न संभले।

उसने गिरीश को धरती से उठाकर अम्बर तक पहुंचा दिया।

गिरीश जिसे स्वप्न में भी ख्याल न था कि वह किसी देवी के हृदय का देवता भी बन सकता है।

पहली मुलाकात...।
उफ! उन्हें क्या मालूम था कि इतनी साधारण-सी मुलाकात उनके जीवन की प्रत्येक खुशी और गम बन जाएंगे उन्हें इतना निकट ला देगी। वे एक-दूसरे के हृदयों में इस कदर बस जाएंगे? एक-दूसरे से प्यारा उन्हें कोई रहेगा ही नहीं।

अभी तक तो वह बाहर पढ़ता था...इस शहर से बहुत दूर।
वह लगभग बचपन से ही अपने चचा के साथ पढ़ने गुरुकुल चला गया था, जब वह पढ़ाई समाप्त करके घर वापस आया तो पहली बार उसने अपना वास्तविक घर देखा।

जब वह अपने ही घर में आया तो एक अनजान की भांति उसके आने के समाचार से घर में हलचल हो गई। वह अंदर आया, मां ने वर्षों बाद अपने पुत्र को देखा तो गले से लगा लिया, बहन ने एक मिनट में हजार बार भैया...भैया कहकर उसके दिल को खुश कर दिया।

खुशी और प्रसन्नताओं के बाद–
उसकी निगाह एक अन्य लड़की पर पड़ी जो अनुपम रमणी-सी लगती थी...उसने बड़े संकोच और लाज वाले भाव से दोनों हाथ जोड़कर जब नमस्ते की तो न जाने क्यों उसका दिल तेजी से धड़कने लगा...वह उसकी प्यारी आंखों में खो गया था। उसकी नमस्ते का उत्तर भी वह न दे सका। रमणी ने लाज से पलकें झुका लीं।

किंतु गिरीश तो न जाने कौन-सी दुनिया में खो गया था।

यूं तो गिरीश ने एक-से-एक सुंदरी देखी थी लेकिन न जाने क्यों उस समय उसका दिल उनके प्रति क्रोध से भर जाता था जब वह देखता कि वे आधुनिक फैशन के कपड़े पहनकर अपने सौंदर्य की नुमायश करती हुई एक विशेष अंदाज में मटक-मटककर सड़क पर निकलतीं। न जाने क्यों गिरीश को जब उनके सौंदर्य से नफरत-सी हो जाती, मुँह फेर लेता वह घृणा से।

किंतु ये लड़की...सौंदर्य की ये प्रतिमा उसे अपने विचारों की साकार मूर्ति-सी लगी।

उसे लगा जैसे उसकी कल्पना उसके समक्ष खड़ी है।
वह उसे उन सभी लड़कियों से सुंदर लगी जो अपने सौंदर्य की नुमायश सड़कों पर करती फिरती थीं।

वह चरित्र का उपासक था...सौंदर्य का नहीं।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



thanks
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सुमन सुमन - by neerathemall - 22-04-2019, 10:59 AM
RE: सुमन सुमन - by neerathemall - 22-04-2019, 11:00 AM
RE: सुमन सुमन - by neerathemall - 22-04-2019, 11:01 AM
RE: सुमन सुमन - by neerathemall - 22-04-2019, 11:01 AM
RE: सुमन सुमन - by neerathemall - 22-04-2019, 11:02 AM
RE: सुमन सुमन - by neerathemall - 22-04-2019, 11:03 AM
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RE: सुमन सुमन - by neerathemall - 22-04-2019, 11:04 AM
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RE: सुमन सुमन - by neerathemall - 11-07-2022, 06:03 PM
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RE: सुमन सुमन - by neerathemall - 11-07-2022, 06:10 PM
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